Friday, April 13, 2012

कुछ मिले काँटे...


कुछ मिले काँटे मगर उपवन मिला,
क्या यही कम है कि यह जीवन मिला|

घोर रातें अश्रु बन कर बह गईं,
स्वप्न की अट्टालिकायें ढह गईं,
खोजता बुनता बिखरते तंतु पर,
प्राप्त निधियाँ अनदिखी ही रह गईं,
भूल जाता मन कदाचित सत्य यह,
आग से तप कर निखर कंचन मिला।

यदि न पायी प्रीति तो सब व्यर्थ है,
मीत का ही प्यार जीवन अर्थ है,
मोह-बंधन में पड़ा मन सोचता कब
बंधनों का मूल भी निज अर्थ है,
सुख कभी मिलता कहीं क्या अन्य से?
स्वर्ग तो अपने हृदय-आँगन मिला।

वचन दे देना सरल पर कठिन पथ,
पाँव उठ जाते, नहीं निभती शपथ,
धार प्रायः मुड़ गई अवरोध से,
कुछ कथायें रह गईं यूँ ही अकथ,
श्वास फिर भी चल रही विश्वास से,
रात्रि को ही भोर-आलिंगन मिला।

क्या यही कम है कि यह जीवन मिला|

10 comments:

संजय भास्‍कर said...

प्राक्रितिक सुंदरता से सराबोर ,कोमल एहसास वाली सुंदर रचना ।

संजय भास्‍कर said...

मन के भावों का मंद मंद झोंका मन प्रसन्न कर गया...!!

दिगम्बर नासवा said...

यदि न पायी प्रीति तो सब व्यर्थ है,
मीत का ही प्यार जीवन अर्थ है,...

बहुत खूब ... सच है प्रेम नहीं है तो जीवन व्यर्थ है ...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
--
संविधान निर्माता बाबा सहिब भीमराव अम्बेदकर के जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
आपका-
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

प्रवीण पाण्डेय said...

कहीं धूप तो कहीं छाँव..

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 19 -04-2012 को यहाँ भी है

.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....ये पगडंडियों का ज़माना है .

देवांशु निगम said...

आज अनूप जी की एक पुरानी पोस्ट पढते हुए आपके ब्लॉग का लिंक मिला, और यहाँ तो खजाना है , एक एक करके पढते हैं !!!!

प्रतिभा सक्सेना said...

'वचन दे देना सरल पर कठिन पथ,
पाँव उठ जाते, नहीं निभती शपथ,
धार प्रायः मुड़ गई अवरोध से,
कुछ कथायें रह गईं यूँ ही अकथ,'
- और अकथ कथायें नये-नये रूप धर मुखर होने लगती हैं !

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

सुन्दर प्रस्तुति... अच्छी रचना... बहुत बहुत बधाई...

Smart Indian said...

सुन्दर गीत!