tag:blogger.com,1999:blog-11470354.post115582521590307282..comments2023-09-11T11:20:06.845-04:00Comments on मानसी: एक और मंज़िलManoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी http://www.blogger.com/profile/13192804315253355418noreply@blogger.comBlogger14125tag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-1156714398751441372006-08-27T17:33:00.000-04:002006-08-27T17:33:00.000-04:00aaj main pahli baar aapke blog pe aaya..aur sach m...aaj main pahli baar aapke blog pe aaya..aur sach maniye aapke blog mein kahi gayee har baat dil ko chhoo lene wali hai. Aur anup bhargava ji ne jo bhi baatein kahin hain apne comments mein, main usse puri tarah sahmat hun.<BR/><BR/>Aur aapke agle lekh ka intezaar hai.pankajhttps://www.blogger.com/profile/03950773878137466556noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-1156608298273615122006-08-26T12:04:00.000-04:002006-08-26T12:04:00.000-04:00Anoopda, profile badloongi jab tab samay bhi badal...Anoopda, profile badloongi jab tab samay bhi badal doongi. ye galti nahin hai...samay badalne ka samay nahin mila ;)Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी https://www.blogger.com/profile/13192804315253355418noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-1156559501142220252006-08-25T22:31:00.000-04:002006-08-25T22:31:00.000-04:00मानोषी:तुम आ तो टोरोंटो गई लेकिन ब्लौग पर समय अभी ...मानोषी:<BR/>तुम आ तो टोरोंटो गई लेकिन ब्लौग पर समय अभी भी वैनकूवर का दिखा रही हो । <BR/>कभी कभी ऐसी गलतियां पकड़नें में मज़ा आता है :-)अनूप भार्गवhttps://www.blogger.com/profile/02237716951833306789noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-1156340713903837792006-08-23T09:45:00.000-04:002006-08-23T09:45:00.000-04:00हर व्यक्ति कुछ बेहतर की चाह में गाँव से छोटे शहर औ...हर व्यक्ति कुछ बेहतर की चाह में गाँव से छोटे शहर और फिर बडे शहर और फिर महानगर और फिर विदेश की और खिंचता रहता है। माँ-बाप इस चाह में बच्चों को ढकेलते रहते हैं कि जो वो ना कर पाये, बच्चे करें। बाकी सब शब्दों के खेल हैं और सब के पास इतना दिमाग है कि जब चाहा अपना नया 'सच' बना लें। <BR/><BR/>मेरा ये सोचना ज़रूर है कि, अगर मैं जिस ज़मीं पर पैदा हुआ, पला-बडःआ और उसे भूल जाऊं तो यह अहसान-फ़रमोशी होगी। मनुष्य भी किसी जगह के प्राकृतिक उत्पाद है, फल, अनाज, पानी, खनिज की तरह। मेरा अनुभव है कि उस जगह की प्रगति में योगदान आवश्यक ही नहीं वरन एक ऐसा कार्य है जो ऐकाकी/स्वार्थी जीवन की नीरसता को तोडता है और तनाव घटाता है।hemanshowhttps://www.blogger.com/profile/02804491530505719032noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-1156334992886516612006-08-23T08:09:00.000-04:002006-08-23T08:09:00.000-04:00Shahar jitna bada hota hai, Vyaktitva utnahi chhot...Shahar jitna bada hota hai, Vyaktitva utnahi chhota ban jaata hai.<BR/><BR/>Bade shahar Ajgar se hote hain.<BR/>Nigal jaate hain logon ko.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-1156294407603187202006-08-22T20:53:00.000-04:002006-08-22T20:53:00.000-04:00बहुत अच्छा लिखा है मानसी, अपने लिये इतना ही कहूँगा...बहुत अच्छा लिखा है मानसी, अपने लिये इतना ही कहूँगा -<BR/><BR/>अपनी मर्जी से कहाँ, इस सफर के हम हैं<BR/>रूख हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-1155876014474932392006-08-18T00:40:00.000-04:002006-08-18T00:40:00.000-04:00अपने देश में रह कर विदेश के सपने तो बहुत लोग देखते...अपने देश में रह कर विदेश के सपने तो बहुत लोग देखते हैं. वहाँ अधिक पैसा होगा, अधिक आराम होगा, अधिक ऊँचा स्थान होगा, बहुत सी बातें होती हैं. अपने आसपास रहने वालों में विदेशों से छुट्टियों में घर वापस आये लोगों की बातें सुन कर उनके लिए सम्मान और ईर्ष्या देख कर यह सपने और भी मजबूत हो जाते हैं और जब मौका मिलता है तो यह सोचना कि क्या छोड़ कर जा रहें हैं यह सोचने की फुरसत ही कहाँ होती है?<BR/>शायद जिन्हें घूमने के लिए विदेश आने का मौका मिला है या कुछ समय के लिए यहाँ आ कर वापस लौट गये हों, वे यह निर्णय लेते समय समझ पाते हैं कि क्या छोड़ कर जा रहे हैं, कितनी कीमत देनी पड़ेगी, वह लोग यह निर्णय सोच समझ कर लेते हों! और एक बार आ कर, यहाँ बस कर, मेहनत से अपना जीवन बनाना, गोल घूमते झूले पर चढ़ने के समान है, उससे उतरना कठिन हो जाता है.Sunil Deepakhttps://www.blogger.com/profile/05781674474022699458noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-1155874235964900612006-08-18T00:10:00.000-04:002006-08-18T00:10:00.000-04:00बडे दिनों बाद तुम्हारा लेख पढा । आगे के भाग का इंत...बडे दिनों बाद तुम्हारा लेख पढा । आगे के भाग का इंतज़ार है । अनूप जी ,आप ने इतनी सटीक बात कही"अपने अपने सच को जीने की " इसे और विस्तार से लिखें न ।Pratyakshahttps://www.blogger.com/profile/10828701891865287201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-1155865128168414962006-08-17T21:38:00.000-04:002006-08-17T21:38:00.000-04:00ई-स्वामी, आप का कहना सही है, इस संघर्ष के दौर से ह...ई-स्वामी, आप का कहना सही है, इस संघर्ष के दौर से हर पहली इमिग्रेंट पीढी को गुज़रना पड़ता है और वो आगे का रास्ता सरल बनाता है।<BR/>ई-छाया जी, आपने बिल्कुल सही कहा है, यही ख़याल आता है, " इतना तो हम देश में रह कर भी नहीं करते" अप्रवासी भारतीय कुछ मायनों मॆं देश के लिये वहाँ रह रहे भारतीयों से ज़्यादा भी कर/सोच जाते हैं। <BR/>अनूप दा, आपके विचार बहुत सुंदर लगे। आपके इन्हीं ख़्यालों को आगे बढाने का प्रयत्न करूँगी।<BR/>अनूप शुक्ल आपके टिप्पणी का धन्यवाद। आप ने वादा किया है इस विषय पर अपने विचारों के साथ लेख लिखेंगे, हमें इंतज़ार रहेगा।<BR/>समीर, शुक्रिया। मगर मैंने बिल्कुल भी उदासी वाली बात नहीं की। ये हक़ीक़त है और भारत से जो इस तरफ़ की घास ज़्यादा हरी दिखती है और कभी कभी कटाक्ष ये कि हम भारत छोड़ आये कि यहाँ की ज़िंदगी आसान है पर ज़रा सा रोष/दु:ख प्रकट किया है। चलिये आगे का लेख जल्द ही लिखेंगे।Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी https://www.blogger.com/profile/13192804315253355418noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-1155863778048027222006-08-17T21:16:00.000-04:002006-08-17T21:16:00.000-04:00इस तरह की सोच का दौर तो हम सब बेवतनों की जिंदगी मे...इस तरह की सोच का दौर तो हम सब बेवतनों की जिंदगी मे हमेशा आता रहता है.दौर इसलिये, कि यह आता जाता रहता है. बस, सोच का सवाल है.दूरियां तो हैं, मगर अब तो <A HREF="http://udantashtari.blogspot.com/2006/08/blog-post_15.html" REL="nofollow">भूगोल की बात इतिहास हो चुकी है</A>.<BR/>चलो, अब इस का अगला लेख जो कि क्रमशः की श्रेणी मे लिखना है, उसको शुरु करो, एक नयी सोच से.<BR/>टोरंटो जैसे खुशनुमा शहर मे उदासी की बातें ठीक नही.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-1155844736690870392006-08-17T15:58:00.000-04:002006-08-17T15:58:00.000-04:00मानसी के ब्लाग पर लेख बहुत दिन बाद देखा। बहुत अच्छ...मानसी के ब्लाग पर लेख बहुत दिन बाद देखा। बहुत अच्छा लगा। लेकिन के बाद आगे जानने<BR/>का मन है। दोस्तों के कमेंट भी पठनीय हैं। बधाई! <BR/>इस शहर का प्रवास मंगलमय होने की कामना करता हूँ।अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-1155841659889683942006-08-17T15:07:00.000-04:002006-08-17T15:07:00.000-04:00ज़िन्दगी में अधिकांश चीज़ें A La Carte नहीं 'पैकेज़ ड...ज़िन्दगी में अधिकांश चीज़ें A La Carte नहीं 'पैकेज़ डील' की तरह मिलती हैं । विदेश में रहने का निर्णय भी कुछ इसी तरह की बात है । इस 'पैकेज़ डील' में कई बातें साथ साथ आती हैं , कुछ अच्छी - कुछ बुरी । अब क्यों कि उन बातों का मूल्य हम सब अलग-अलग, अपनें आप लगाते हैं इसलिये हम सब का 'सच' भी अलग होता है । जो मेरे लिये बेह्तर विकल्प है , वो ज़रूरी नहीं कि आप के लिये भी बेहतर हो । <BR/><BR/>यह कुछ अपनें निज़ी विचार रख रहा हूँ :<BR/><BR/>१. हम यहां रह कर जिन भौतिक सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं , उन की एक कीमत भी दे रहे हैं । परिवार , मित्र और सब से बड़ी बात अपनी माटी से दूर होना । अपनें बच्चों को उन के दादा-दादी , नाना-नानी से दूर रखना एक कीमत ही तो है । अपनी मिट्टी से दूर रह कर अपनी एक नई पहचान बनानें के लिये संघर्ष करना भी एक कीमत ही है ।<BR/>२. यदि मुझे कोई यह कहता है कि वो यहां पर इसलिये है कि इस तरह का काम भारत में सम्भव नहीं है , Blah Blah Blah तो माननें की इच्छा नहीं होती । हम क्यों नहीं इमानदारी से मान लेते कि हम में से अधिक से अधिक ५-१० % को छोड़ कर हम यहां इसलिये हैं कि हमें यहां की सुविधाएं प्यारी हैं ? क्यों Guilty Feeling सी होती है , हमें यह कहते हुए ?<BR/>३. मुझे तब भी चिढ होती है जब कोई मुझे सीधे या अप्रयक्ष तरीके से यह कहनें की कोशिश करता है कि हम नें विदेश आ कर देश के साथ अन्याय किया है । देश में रह कर सरकारी अफ़सर बन कर घूस लेनें से बेह्तर है कि मैं यहां रह कर इमानदारी से अपना काम करूँ और अपनें देश के लिये कुछ विदेशी मुदा जुटाऊँ । आज भारत में जो इतना आउटसोर्सिंग का काम बढ रहा है उस का कुछ तो श्रेय विदेश में रहनें वाले भारतीयों द्वारा स्थापित की गई 'इमेज' को जाता है ।<BR/>४. भारत में हाल में हुई प्रगति के बाद शायद 'भौतिक सुविधाओं' में अन्तर घट गया है , शायद अब 'बैलेन्स' पश्चिम की तरफ़ इतना अधिक नहीं हो जितना आज से २० वर्ष पहले था।<BR/>५. विदेश में रहना 'दलदल' की तरह है , जितना ज़्यादा समय यहां रहेंगे , उतना ही निकलना कठिन होगा । एक समय के बाद यदि आप जाना भी चाहें तो 'बच्चों' तथा अन्य जिम्मेवारियों के कारण नहीं जा पायेंगे।<BR/><BR/>संक्षेप में कहूँ तो यही कि ....<BR/><BR/>सच यह है कि हम सब अपनें अपनें सच को जी रहे हैंअनूप भार्गवhttps://www.blogger.com/profile/02237716951833306789noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-1155841037632996542006-08-17T14:57:00.000-04:002006-08-17T14:57:00.000-04:00यह एक सच्चाई है, कि विदेश में हमारा जीवन कोई कम सं...यह एक सच्चाई है, कि विदेश में हमारा जीवन कोई कम संघर्ष नही। काम काम और काम, कोई भी ऐसे ही तो बाहरी लोगों को नौकरी दे देगा नही, भागदौड, बेहद व्यस्त और तनाव भरी जिंदगी। सप्ताह के सप्ताह कैसे निकलते जाते हैं बस सप्ताहांत आने पर ही पता चलता है। तिनका तिनका जोडकर आशियाना खडा करने की जद्दोजहद। एक एक डालर के पीछे कितना खून पसीना है, हम खटनेवाले ही जानते हैं।<BR/><BR/>सुबह से शाम होती है<BR/>उम्र यूं ही तमाम होती है<BR/><BR/>इस सब के अलावा अपना देश और अपने लोगों को छोड आने का गम। देश की मिट्टी की यादें। हर समय कहीं न कहीं कुछ दिल में खटकता हुआ सा। पुराने गाने सुनकर आंखों में अनायास ही आने वाले आंसू। देश से जुडे रहने के लिये देश की हर खबर का पता लगाते रहने की कोशिश, और फिर लगता है, यार इतना तो हम हमेरे देश में रहकर भी नही करते थे।ई-छायाhttps://www.blogger.com/profile/15074429565158578314noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-1155836784615076412006-08-17T13:46:00.000-04:002006-08-17T13:46:00.000-04:00"नहीं..." के आगे का इंतज़ार रहेगा. विदेशी भूमी पर ज..."नहीं..." के आगे का इंतज़ार रहेगा. <BR/><BR/>विदेशी भूमी पर जमने की प्रक्रिया से भी आत्मविश्वास आता है. संघर्ष का रोना रो कर अलालटप्पूओं से ये सुनना नही चाहते की "वापस आ जाओ क्या रखा है विदेश में". इधर जीवन कोई डालर की सेज भी नहीं. वो पेड पे नही उगते -कम नही खटना पडता. <BR/>मजेदार है ना कई लोगों के लिए आप्रवासी मतलब डालर का बंडल है बेचारे के मार्टगेज की किस्त नहीं! :)Anonymousnoreply@blogger.com