tag:blogger.com,1999:blog-11470354.post2243088304250323148..comments2023-09-11T11:20:06.845-04:00Comments on मानसी: ऊपर जहां चलता रहा- ग़ज़लManoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी http://www.blogger.com/profile/13192804315253355418noreply@blogger.comBlogger20125tag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-12683771657839654482009-05-14T09:47:00.000-04:002009-05-14T09:47:00.000-04:00उसको अब मुझसे शिकायत है कि मैं कमज़ोर हूँ
’दोस्त’ ज...उसको अब मुझसे शिकायत है कि मैं कमज़ोर हूँ<br />’दोस्त’ जिसकी ख़्वाहिशों में उम्र भर ढलता रहा<br />बहुत सुन्दर ग़जल लिखी है आपने...मैं सोचता हूँ हर शब्द यथार्त के बहुत करीब है..satish kundanhttps://www.blogger.com/profile/01027973607240184874noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-8259140426924076722009-05-07T11:22:00.000-04:002009-05-07T11:22:00.000-04:00उसको अब मुझसे शिकायत है कि मैं कमज़ोर हूँ
’दोस्त’ ज...उसको अब मुझसे शिकायत है कि मैं कमज़ोर हूँ<br />’दोस्त’ जिसकी ख़्वाहिशों में उम्र भर ढलता रहा <br /><br />बहुत ही उम्दा और कामयाब ग़ज़ल कही है आपने <br />मुबारकबाद कुबूल फरमाएं ......<br />मेरी ग़ज़ल को पसंद फरमाने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया <br />---मुफलिस---daanishhttps://www.blogger.com/profile/15771816049026571278noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-36860899436905929632009-05-07T07:34:00.000-04:002009-05-07T07:34:00.000-04:00plz write about voice uploading on my email.....as...plz write about voice uploading on my email.....as you saidप्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' https://www.blogger.com/profile/03784076664306549913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-34926675213315700902009-05-06T13:24:00.000-04:002009-05-06T13:24:00.000-04:00मनोशी, ८ दिन हो गए इस ग़ज़ल को। आज भी इसकी ख़ूबसूर...मनोशी, ८ दिन हो गए इस ग़ज़ल को। आज भी इसकी ख़ूबसूरती, ख़ुश्बू पहले दिन की तरह की ताज़गी लिए हुए है। मतला पूरी ग़ज़ल पर हावी है, लेकिन सारे ही अशा'र बोलते से लगते हैं। नेट पर नव ग़ज़लकारों की ग़ज़लों से तुम्हारी शैली काफ़ी भिन्न है, इस वजह से यह ज़रूर कहूंगा कि तुम्हारा एक अपना अंदाज़ है जो पढ़ने में अच्छा लगता है।महावीरhttps://www.blogger.com/profile/00859697755955147456noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-20773299794719079512009-05-05T01:48:00.000-04:002009-05-05T01:48:00.000-04:00आग थी ना था धुआँ फिर क्या हुआ कि रात भर
बेवजह ही ज...आग थी ना था धुआँ फिर क्या हुआ कि रात भर<br />बेवजह ही जागकर मैं आँख यूँ मलता रहा<br />सिर्फ ये एक शेर ही नहीं पूरी ग़ज़ल ही लाजवाब है...देरी से आया इसके लिए माफ़ी...लेकिन आ कर मन प्रसन्न हो गया...बधाई.<br />नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-79667683465917208482009-05-04T22:59:00.000-04:002009-05-04T22:59:00.000-04:00अरे वाह...इस जगह तो बड़ी गहराई है..
यह जगह अब तक म...अरे वाह...इस जगह तो बड़ी गहराई है..<br />यह जगह अब तक मेरी पकड़ में क्यूँ नहीं आई है.....<br />यहाँ दिखाई पड़ रही हैं बहुत सी मुकम्मल बातें.....<br />इन बातों में भी प्यार की रौशनाई है.....!!<br />हम तो हैं गाफिल कभी जल्दी से फिसला नहीं करते <br />आज मानसी की बात पर तबियत फिसल आई है.....!!राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ )https://www.blogger.com/profile/07142399482899589367noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-55783823237272544242009-05-04T22:23:00.000-04:002009-05-04T22:23:00.000-04:00मुझसे है ये सारी दुनिया मान कर छलता रहा
अब ज़मीं मे...मुझसे है ये सारी दुनिया मान कर छलता रहा<br />अब ज़मीं में दफ़्न हूँ ऊपर जहां चलता रहा<br /><br />बहुत लाजवाब !प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' https://www.blogger.com/profile/03784076664306549913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-80174451399009061572009-05-03T07:01:00.000-04:002009-05-03T07:01:00.000-04:00पूरी ग़ज़ल बहुत लाजवाब है..........मुझे लगता है भा...पूरी ग़ज़ल बहुत लाजवाब है..........मुझे लगता है भाव अच्छी हों तो ग़ज़ल अच्छी हो ही जाती है <br /><br />बस मुकम्मल होने की उस चाह में ताउम्र यूँ<br />ख़्वाब इक मासूम सा कई टुकड़ों में पलता रहा<br />कितना खूबसूरत एहसास है इस शेर में ..........मासूम से ख्वाब की चाह तो पूरा होने की ही होती है <br /><br />आग थी ना था धुआँ फिर क्या हुआ कि रात भर<br />बेवजह ही जागकर मैं आँख यूँ मलता रहा<br />जीवन की बेबसी इतने मासूम तरीके से कही है .........<br /><br />दुनिया की कुछ रस्मों में मैं यूँ हुआ मस्रूफ़ कि<br />अपने मरने का भी मातम ना मना, टलता रहा<br />इसमें तो जीवन का दर्शन समेटा है..........यथार्थ है ..........दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-8348776747716452632009-05-03T00:25:00.000-04:002009-05-03T00:25:00.000-04:00thanx manoshi, मेरा काम आसान हो गया थोड़ा....thanx manoshi, मेरा काम आसान हो गया थोड़ा....गौतम राजऋषिhttps://www.blogger.com/profile/04744633270220517040noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-66993544456118393432009-05-02T19:20:00.000-04:002009-05-02T19:20:00.000-04:00सभी को शुक्रिया, गज़ल को पसंद करने का।
@ गौतम- ’न...सभी को शुक्रिया, गज़ल को पसंद करने का। <br /><br />@ गौतम- ’ना’ को मैंने दीर्घ ही लिया है। महावीर जी ने कहा कि हिन्दी में ऐसा हो सकता है। इसके अलावा एक बार सुबीर जी को एक गज़ल भेजी थी, अपनी कुछ जानकारी के लिये, रैन्डम। उन्होंने अपने बड़प्पन का परिचय देते हुये, एक शेर सुधारा था जिसमें उन्होंने ’ना’ को दीर्घ लिया था- इस शेर को देखो-<br /><br />कोई बतलाये हमको क्यों मुहब्बत रास ना आती<br />वगरना इश्क़ में हमने कहाँ कोई कमी की हैManoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी https://www.blogger.com/profile/13192804315253355418noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-41967528780698225622009-05-02T15:19:00.000-04:002009-05-02T15:19:00.000-04:00मतले ने तो जान ही निकाल दी...वाह!
और इस ’दोस्त’ तख...मतले ने तो जान ही निकाल दी...वाह!<br />और इस ’दोस्त’ तखल्लुस का इतना बेहतरीन इस्तेमाल आप करती हो कि बस देखते बनता है..<br />एक शक-सा था..."अपने मरने का भी मातम ना मना, टलता रहा" इस मिस्रे में आपने "ना" का वजन दीर्घ {2} में लिया है ना? ये जायज है ना? इसलिये पूछ रहा हूँ एक गज़ल बन रही है तो उसमें मुझे "ना" को दीर्घ में लेने की दरकार है...गौतम राजऋषिhttps://www.blogger.com/profile/04744633270220517040noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-5057170070457239012009-05-02T12:10:00.000-04:002009-05-02T12:10:00.000-04:00मानोशी जी ,
पूरी गजल बहुत बढ़िया .पर इन पंक्तियों ...मानोशी जी ,<br />पूरी गजल बहुत बढ़िया .पर इन पंक्तियों की बात ही और है...<br /><br />मुझसे है ये सारी दुनिया मान कर छलता रहा<br />अब ज़मीं में दफ़्न हूँ ऊपर जहां चलता रहा<br />पूनमपूनम श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/09864127183201263925noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-83592926829483745792009-05-01T14:07:00.000-04:002009-05-01T14:07:00.000-04:00"मुझसे है ये सारी दुनिया मान कर छलता रहा
अब ज़मीं म..."मुझसे है ये सारी दुनिया मान कर छलता रहा<br />अब ज़मीं में दफ़्न हूँ ऊपर जहां चलता रहा"<br /><br />This is FANTASTIC...<br /><br />"There is no one who is irreplaceable." <br /><br />We used to say that in IAF. And that is always true.<br /><br />~Jayantजयंत - समर शेषhttps://www.blogger.com/profile/13334653461188965082noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-71937108741583001522009-05-01T13:57:00.000-04:002009-05-01T13:57:00.000-04:00दुनिया की कुछ रस्मों में मैं यूँ हुआ मस्रूफ़ कि
अप...दुनिया की कुछ रस्मों में मैं यूँ हुआ मस्रूफ़ कि<br />अपने मरने का भी मातम ना मना, टलता रहा<br /><br />बढ़िया गजल का बढ़िया शेर ......<br />शुभकामनाएं .<br />हेमंतडा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumarhttps://www.blogger.com/profile/03899926393197441540noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-50393493281305823092009-05-01T12:38:00.000-04:002009-05-01T12:38:00.000-04:00दुनिया की कुछ रस्मों में मैं यूँ हुआ मस्रूफ़ कि
अपन...दुनिया की कुछ रस्मों में मैं यूँ हुआ मस्रूफ़ कि<br />अपने मरने का भी मातम ना मना, टलता रहा<br />umda sher!<br /><br />bahut hi achchee ghazal hai.<br />sabhi sher bahut achchey lagey.Alpana Vermahttps://www.blogger.com/profile/08360043006024019346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-80727195465520793002009-05-01T00:29:00.000-04:002009-05-01T00:29:00.000-04:00मानसी, आपकी पिछली अभिव्यक्तियों में ये ज्यादा पसंद...मानसी, आपकी पिछली अभिव्यक्तियों में ये ज्यादा पसंद आई-<br /><br />उसको अब मुझसे शिकायत है कि मैं कमज़ोर हूँ<br />’दोस्त’ जिसकी ख़्वाहिशों में उम्र भर ढलता रहाअजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-84326648082680852362009-04-30T15:11:00.000-04:002009-04-30T15:11:00.000-04:00मुझसे है ये सारी दुनिया मान कर छलता रहा
अब ज़मीं मे...मुझसे है ये सारी दुनिया मान कर छलता रहा<br />अब ज़मीं में दफ़्न हूँ ऊपर जहां चलता रहा<br /><br />-वाह वाह!! क्या बात कही है, बहुत खूब!!Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-54072503834313881072009-04-29T22:02:00.000-04:002009-04-29T22:02:00.000-04:00बहुत खूब। भाव, शब्द और रवानगी के साथ बेहतर प्रस्तु...बहुत खूब। भाव, शब्द और रवानगी के साथ बेहतर प्रस्तुति। बधाई। चलिए एक त्वरित तुकबंदी मेरी ओर से भी-<br /><br />आँधियाँ थीं जोर पे और थी कमी बस तेल की।<br />फिर भी दीपक रात भर कैसे यहाँ जलता रहा।। <br /><br />सादर <br />श्यामल सुमन <br />09955373288 <br />www.manoramsuman.blogspot.com<br />shyamalsuman@gmail.comश्यामल सुमनhttps://www.blogger.com/profile/15174931983584019082noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-24747921729758126082009-04-29T20:40:00.000-04:002009-04-29T20:40:00.000-04:00मुझसे है ये सारी दुनिया मान कर छलता रहा
अब ज़मीं मे...मुझसे है ये सारी दुनिया मान कर छलता रहा<br />अब ज़मीं में दफ़्न हूँ ऊपर जहां चलता रहा<br /><br />बहुत खूब। मुझसे है सारी दुनिया के भ्रम में हम ताउम्र जीते हैं और एक दिन खाली हाथ जमीन में दफ्न हो जाते हैं।Ashok Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/14682867703262882429noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-62472687977343406552009-04-29T19:58:00.000-04:002009-04-29T19:58:00.000-04:00एकदम से सुबह जागकर पहली पोस्ट यही पढ़ी । इन पंक्तिय...एकदम से सुबह जागकर पहली पोस्ट यही पढ़ी । इन पंक्तियों ने खासा प्रभावित किया -<br /><br />"आग थी ना था धुआँ फिर क्या हुआ कि रात भर<br />बेवजह ही जागकर मैं आँख यूँ मलता रहा"Himanshu Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/04358550521780797645noreply@blogger.com