tag:blogger.com,1999:blog-11470354.post3195768195071577434..comments2023-09-11T11:20:06.845-04:00Comments on मानसी: ग़ज़ल-मुझे तू आज़मा के देख तो कभीManoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी http://www.blogger.com/profile/13192804315253355418noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-13279496156192564762009-03-22T12:56:00.000-04:002009-03-22T12:56:00.000-04:00अरे ये नायाब ग़ज़ल जाने कैसे मेरी नजरों से रह गयी थी...अरे ये नायाब ग़ज़ल जाने कैसे मेरी नजरों से रह गयी थी....<BR/>रदीफ़ की खूबसूरती पे तो हम फिदा हो गये...गज़ल तो सोना है ही तिस पर सुहागे का काम किया है श्रद्धेय महावीर जी की अनमोल टिप्पनी ने...<BR/>मंदिरों वाला शेर वाकई में सरताज शेर है। मुझे लेकिन ये "मुझे भी जीतना ...’ वाला शेर भी खूब भाया है। लगा कि काश ये शेर मैंने कहा होता...सच्ची।गौतम राजऋषिhttps://www.blogger.com/profile/04744633270220517040noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-13150977413921953022009-03-20T13:22:00.000-04:002009-03-20T13:22:00.000-04:00मानसी जी ,वैसे तो पूरी ग़ज़ल बहुत अच्छी है ..लेकिन...मानसी जी ,<BR/>वैसे तो पूरी ग़ज़ल बहुत अच्छी है ..लेकिन मुझे इन पंक्तियों ने बहुत प्रभावित किया......<BR/>मैं दुश्मनी निभाउंगा तो दोस्ती ही की तरह<BR/>मुझे तू आज़मा के देख तो कभी ज़रा, हाँ सच<BR/>हेमंत कुमारडा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumarhttps://www.blogger.com/profile/03899926393197441540noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-85647957550223716232009-03-20T04:03:00.001-04:002009-03-20T04:03:00.001-04:00मैं मंदिरों में उससे कम ही मिलने आता जाता हूँवो रो...मैं मंदिरों में उससे कम ही मिलने आता जाता हूँ<BR/>वो रोज़ मेरे घर में आ के मुझसे है मिला, हाँ सच<BR/><BR/>....kya baat hae,bahut khub.मोना परसाईhttps://www.blogger.com/profile/12594385907790833725noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-84931975370171355102009-03-20T04:03:00.000-04:002009-03-20T04:03:00.000-04:00मैं मंदिरों में उससे कम ही मिलने आता जाता हूँवो रो...मैं मंदिरों में उससे कम ही मिलने आता जाता हूँ<BR/>वो रोज़ मेरे घर में आ के मुझसे है मिला, हाँ सच<BR/><BR/>....kya baat hae,bahut khub.मोना परसाईhttps://www.blogger.com/profile/12594385907790833725noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-25253514454194590452009-03-19T13:24:00.000-04:002009-03-19T13:24:00.000-04:00बहुत सुंदर ग़ज़ल है - ख़ासकर रदीफ़ में एक सुंदर प्...बहुत सुंदर ग़ज़ल है - ख़ासकर रदीफ़ में एक सुंदर प्रयास जिसमें एक नयापन और अलग सा अंदाज़ - यह बहुत अच्छा लगा। <BR/>दिगम्बर नासवा जी की टिप्पणी से एक बात साफ़ होती है कि यह शे'र आपके भाव को पूरी तरह प्रकट ना कर पाया और आपको स्वयं अपने शे'र का भावार्थ देना पड़ा। <BR/>जहां तक मेरा ताल्लुक़ है, मुझे तो ऐसे शे'र पसंद हैं जहां पढ़ कर कुछ सोचना पड़े, उसका भाव समझने के लिए मस्तिष्क की क़वायद भी हो सके। इस लिए तख़य्युल के लिहाज़ से आपका<BR/>शे'र ख़ूबसूरत है। <BR/><BR/>पुराने ज़माने में ऐसे ही अशा'र ख़ूब चलते थे जैसे:<BR><BR/>आदम का जिस्म जब कि अनासिर से मिल बना <BR/>कुछ आग बच रही थी सो आशिक़ का दिल बना<BR/>('सौदा')<BR><BR/>यहां आग और दिल में क्या संबंध है, सोचना पड़ता है, शे'र को दो तीन बार पढ़ने का भी मौक़ा मिलता है।<BR/><A HREF="http://mahavirsharma.blogspot.com" REL="nofollow">महावीर शर्मा</A>महावीरhttps://www.blogger.com/profile/00859697755955147456noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-5179737807605013372009-03-19T08:28:00.000-04:002009-03-19T08:28:00.000-04:00मैं मंदिरों में उससे कम ही मिलने आता जाता हूँवो रो...मैं मंदिरों में उससे कम ही मिलने आता जाता हूँ<BR/>वो रोज़ मेरे घर में आ के मुझसे है मिला, हाँ सच<BR/><BR/>वाह...मानसी जी...बहुत खूब...<BR/>नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-9335823810721376842009-03-19T08:09:00.000-04:002009-03-19T08:09:00.000-04:00शुक्रिया महक जी, मोहिन्दर जी और नासवा जी। मैं मंदि...शुक्रिया महक जी, मोहिन्दर जी और नासवा जी। <BR/><BR/>मैं मंदिरों में उससे कम ही मिलने आता जाता हूँ<BR/>वो रोज़ मेरे घर में आ के मुझसे है मिला, हाँ सच<BR/><BR/>इस शेर में "मेरे घर" से मेरा मतलब है 'मैं खुद', self. मैं ये मानती हूँ कि भगवान खुद में ही होता है, हमें कहीं जा कर पूजा करने की ज़रूरत नहीं होती। बस इसी खयाल से इस शेर की उत्पत्ति हुई है।Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी https://www.blogger.com/profile/13192804315253355418noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-2637155793644401312009-03-19T04:52:00.000-04:002009-03-19T04:52:00.000-04:00वाह बहुत बेहतरीन ग़ज़ल .........क्या कहने आपके तेव...वाह बहुत बेहतरीन ग़ज़ल .........क्या कहने आपके तेवर खूब निकल कर दिख रहे हैं इस ग़ज़ल में <BR/><BR/>मुझे भी जीतना तो आता है मगर, यूँ हार कर<BR/>गु़रूर को तेरे मैं जीतते हूँ देखता, हाँ सच<BR/>kya baat kahi hai......<BR/><BR/>मैं मंदिरों में उससे कम ही मिलने आता जाता हूँ<BR/>वो रोज़ मेरे घर में आ के मुझसे है मिला, हाँ सच<BR/>Is gazal ka behatreen sher....aisee baagi gazalon ke hum diwane hainदिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-29032467866033136912009-03-19T01:30:00.000-04:002009-03-19T01:30:00.000-04:00बहुत से शौक पाले है यूं तो मैने भीगजल पढने का ज्या...बहुत से शौक पाले है यूं तो मैने भी<BR/>गजल पढने का ज्यादा है "हां सच"<BR/><BR/>सुन्दर गजल पढवाने के लिये आभारMohinder56https://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-47895161478243862302009-03-18T22:36:00.000-04:002009-03-18T22:36:00.000-04:00मैं मंदिरों में उससे कम ही मिलने आता जाता हूँवो रो...मैं मंदिरों में उससे कम ही मिलने आता जाता हूँ<BR/>वो रोज़ मेरे घर में आ के मुझसे है मिला, हाँ सच<BR/><BR/><BR/>वो जाते जाते मुझको ढेरों ग़म तो दे गया मगर<BR/>अज़ीज़ है मुझे हरेक अश्क़ जो बहा, हां सच<BR/><BR/>bahut khubsurat haa sach.mehekhttps://www.blogger.com/profile/16379463848117663000noreply@blogger.com