tag:blogger.com,1999:blog-11470354.post862414840512818247..comments2023-09-11T11:20:06.845-04:00Comments on मानसी: प्रिय! करो तुम यादManoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी http://www.blogger.com/profile/13192804315253355418noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-40342557961030913322009-03-02T13:40:00.000-05:002009-03-02T13:40:00.000-05:00मानसी जी ,आपके इधर के गीत पढ़ते हुए बार बार मैं हि...मानसी जी ,<BR/>आपके इधर के गीत पढ़ते हुए बार बार मैं हिन्दी साहित्य के छायावादी युग में पहुँच जाता हूँ ...बस फर्क यही है की छायावादी साहित्य (खासतौर से प्रसाद जी का )मुझे बहुत कठिन लगता था ..पर आपके गीतों को दो तीन बार तो जरूर पढता हूँ .शुभकामनायें.<BR/>हेमंत कुमारडा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumarhttps://www.blogger.com/profile/03899926393197441540noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-21959088729763358872009-03-01T12:17:00.000-05:002009-03-01T12:17:00.000-05:00उफ़्फ़्फ़...मैं तो बस चकित-सा ठगा-सा शब्दों-इन समस्त ...उफ़्फ़्फ़...मैं तो बस चकित-सा ठगा-सा शब्दों-इन समस्त खूबसूरत शब्दों में उलझा लटपटाया सा कई बार पढ़ गया ये सुंदर गीत...<BR/>एक पंक्ति खास कर-इस विशेष कहन की अदा ने और-और फैन बना दिया आपका मानोशी और वो पंक्ति है "तुम सितारों की लड़ी बन माथ की राहों में सँवरे..."गौतम राजऋषिhttps://www.blogger.com/profile/04744633270220517040noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-7060457102299294322009-02-28T16:16:00.000-05:002009-02-28T16:16:00.000-05:00सुंदर....सुंदर....अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-23000789603339977002009-02-28T13:24:00.000-05:002009-02-28T13:24:00.000-05:00हाथ की पगडंडी पर मैं कब तुम्हारे चल पड़ी औरतुम सिता...हाथ की पगडंडी पर मैं कब तुम्हारे चल पड़ी और<BR/>तुम सितारों की लड़ी बन माथ की राहों में सँवरे<BR/>वेदना से सिक्त रातें अश्रु की हर धार प्रियतम<BR/>जो हमारी आत्म की गहराई में फिर ऐसे उतरे<BR/>बँध के मन के पाश भी मैं हो स्वच्छंद खेलती हूँ<BR/>प्रीत में जल कर कपूर के गंध जैसा फैलती हूँ <BR/><BR/>मानसी जी ,<BR/>आजकल जब नई कविता के रूप में वैचारिक काव्य अधिक लिखे जा रहे हैं ऐसे में अपके गीत ,आपकी रचनाएँ हिन्दी काव्य को एक अलग पहचान देंगी .<BR/>पहले वाले गीत की ही तरह सुन्दर ये गीत .<BR/>पूनमपूनम श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/09864127183201263925noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-42078342248284272902009-02-28T10:20:00.000-05:002009-02-28T10:20:00.000-05:00जल रही अब बन शिखा मैं वक्ष दीप का चूमती हूँबन तुम्...जल रही अब बन शिखा मैं वक्ष दीप का चूमती हूँ<BR/>बन तुम्हारी आत्मा मैं अपनी काया ढूँढती हूँ <BR/><BR/>.... मानोशी जी , एक और सुन्दर रचना आपके कर कमलों से !<BR/>मेरी नित्य शुभकामनाएं आपके साथ हैं.<BR/>सादर प्रणाम,<BR/>अजन्ताअजन्ताhttps://www.blogger.com/profile/08557410702578357219noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-50741569020399357672009-02-28T05:33:00.000-05:002009-02-28T05:33:00.000-05:00खिल उठा था फूल कोई भोर की किरणों को छूकरइक भ्रमर म...खिल उठा था फूल कोई भोर की किरणों को छूकर<BR/>इक भ्रमर मदमस्त हो झूमा सहर्ष बन्दी बना कब<BR/>प्रेम धारा डूबकर सागर में परिचय पा गई फिर<BR/>तुम असीम में खो गई मैं तुच्छ कोई अर्घ्य बन कर<BR/>जल रही अब बन शिखा मैं वक्ष दीप का चूमती हूँ<BR/>बन तुम्हारी आत्मा मैं अपनी काया ढूँढती हूँ <BR/>बहुत बढ़िया ।शोभाhttps://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-16517692638927297172009-02-28T03:27:00.000-05:002009-02-28T03:27:00.000-05:00प्रेम धारा डूबकर सागर में परिचय पा गई फिरतुम असीम ...प्रेम धारा डूबकर सागर में परिचय पा गई फिर<BR/>तुम असीम में खो गई मैं तुच्छ कोई अर्घ्य बन कर"<BR/><BR/>इन पंक्तियों ने मुग्ध कर दिया. पूरी कविता ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति का उदाहरण है. धन्यवादHimanshu Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/04358550521780797645noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-34756382549290153372009-02-28T00:02:00.000-05:002009-02-28T00:02:00.000-05:00चिर नूतनता काव्य के कलेवर को कमनीय बना देती है।कमल...चिर नूतनता काव्य के कलेवर को कमनीय बना देती है।कमल कुसुम में रातभर बंदी बना रहा द्विरेफ(भ्रमर) अपनी गुमसुमता तोड़ कर प्रात:प्रेम का प्रभात पा प्रसन्न हो झूम उठता है। रात्रिर्गमिष्यति भविष्यति सुप्रभातम श्लोक के भाव को मौलिक नवीनता मिल जाती है। विशेषतया शिखा का दीप वक्ष को बोसा देना कल्पना का नया प्रयोग प्रतीत हुआ।यूँ तो सारी पंक्तियाँ सुन्द्र बन पड़ी हैं लेकिन अधोलिखित पंक्तियां मन को कुछ गहराई तक छू गई।<BR/><BR/>खिल उठा था फूल कोई भोर की किरणों को छूकर<BR/>इक भ्रमर मदमस्त हो झूमा सहर्ष बन्दी बना कब<BR/>प्रेम धारा डूबकर सागर में परिचय पा गई फिर<BR/>तुम असीम में खो गई मैं तुच्छ कोई अर्घ्य बन कर<BR/>जल रही अब बन शिखा मैं वक्ष दीप का चूमती हूँ<BR/>बन तुम्हारी आत्मा मैं अपनी काया ढूँढती हूँSundeep Kumar tyagihttps://www.blogger.com/profile/07724782816238554067noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-75020085310504781142009-02-27T23:58:00.000-05:002009-02-27T23:58:00.000-05:00चिर नूतनता काव्य के कलेवर को कमनीय बना देती है।कमल...चिर नूतनता काव्य के कलेवर को कमनीय बना देती है।कमल कुसुम में रातभर बंदी बना रहा द्विरेफ(भ्रमर) अपनी गुमसुमता तोड़ कर प्रात:प्रेम का प्रभात पा प्रसन्न हो झूम उठता है। रात्रिर्गमिष्यति भविष्यति सुप्रभातम श्लोक के भाव को मौलिक नवीनता मिल जाती है। विशेषतया शिखा का दीप वक्ष को बोसा देना कल्पना का नया प्रयोग प्रतीत हुआ।यूँ तो सारी पंक्तियाँ सुन्द्र बन पड़ी हैं लेकिन अधोलिखित पंक्तियां मन को कुछ गहराई तक छू गई।<BR/>खिल उठा था फूल कोई भोर की किरणों को छूकर<BR/>इक भ्रमर मदमस्त हो झूमा सहर्ष बन्दी बना कब<BR/>प्रेम धारा डूबकर सागर में परिचय पा गई फिर<BR/>तुम असीम में खो गई मैं तुच्छ कोई अर्घ्य बन कर<BR/>जल रही अब बन शिखा मैं वक्ष दीप का चूमती हूँ<BR/>बन तुम्हारी आत्मा मैं अपनी काया ढूँढती हूँSundeep Kumar tyagihttps://www.blogger.com/profile/07724782816238554067noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-11470354.post-67960237010504570522009-02-27T23:38:00.000-05:002009-02-27T23:38:00.000-05:00अद्भुत शब्द चयन और कमाल के भावः....मन भावन रचना......अद्भुत शब्द चयन और कमाल के भावः....मन भावन रचना...बधाई .<BR/>नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.com