अभिव्यक्ति http://www.abhivyakti-hindi.org/parva/alekh/2006/jagaddhatri.htm पर छपने के बाद, अब इस लेख को यहाँ प्रकाशित कर रही हूँ- जगद्धात्री पूजा
शरद का महीना आते ही शुरु हो जाती है बंगाल में दुर्गा पूजा की धूम। नये कपड़े, नये ज़ेवर, और चार दिन के इस उत्सव के खत्म होते ही जैसे सब उदास हो जाते हैं। मगर फिर कुछ ही दिनों बाद कोजागरी पूर्णिमा के दिन घर घर में लक्ष्मी पूजन के लिये जोड़ तोड़ होने लगती है। और थोड़े ही दिनों में फिर आ जाती है दिवाली। दिवाली या काली पूजा के बाद त्यौहारों का मौसम जैसे खत्म हो जाता है सबके लिये। मगर कलकता शहर से कोई तीस किलोमीटर दूर उत्तर में, हुगली जिला में बसे चन्दरनगोर या चन्दननगर नामक छोटे से शहर में तयारी हो रही होती है एक और की- जगद्धार्त्री पूजा।
चन्दननगर उन कुछ शहरों में से है जो कभी ब्रिटिश के अधीन नहीं रहा बल्कि पांडिचेरी आदि कुछ शहरों जैसे वहाँ भी फ़रासियों राज का आधिपत्य था। बंगाल की हरियाली के बीच, संकरी गलियों और ज़मींदारों की बड़ी हवेलियों के साथ, गंगा किनारे बसा ये शहर अपने में अनुपम है। आज जहाँ बड़ी-बड़ी हवेलियां अब अपने जीर्णावस्था में भी पुराने समय के वैभव का प्रदर्शन करती हैं, वहीं ग्रैंड ट्रंक रोड के किनारे लगी आधुनिक दुकानें और इन्टर्नेट कैफ़े देश में हुई प्रगति को दिखाती हैं।
चन्दरनगोर का नाम शायद इसलिये ऐसा पड़ा क्यों कि नदी के किनारे बसा ये शहर अर्धचंद्रमा जैसा आकार का लगता है। ये भी संभव है कि चन्दन के व्यापार के चलते इस शहर का नाम चन्दननगर पड़ा हो। चन्दननगर का एक और नाम है फ़रासडाँगा अर्थात फ़्रांसिसी ज़मीन। यहाँ फ़्रांसिसी राज होने के कारण ही इसका ऐसा नाम पड़ा। चन्दननगर से कई क्रांतिकारी निकले जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जम कर हिस्सा लिया। ये उस वक्त एक ब्रिटिश के ख़िलाफ़ नामी गढ़ था। पुराना विशाल चर्च, यहाँ का म्यूज़ियम, नन्ददुलाल का पुराना मंदिर और यहाँ का पाताल बाड़ी चन्दननगर को बंगाल के दूसरे शहरों के बीच एक विशेष स्थान दिलवाते हैं। गंगानदी के किनारे बनाये गये पाताल बाड़ी का कुछ हिस्सा नदी मॆं डूबा हुआ है जहाँ रवीन्द्रनाथ ठाकुर आ कर रहते थे और उनकी कई रचनाओं ने यहाँ जन्म लिया। सिर्फ़ यही नहीं यहाँ मनायी जाने वाली जगद्धार्त्री पूजा का पूरे बंगाल में एक विशेष महत्व है। आइये इस पूजा के बारे में ज़्यादा जानें।
दुर्गा पूजा के ठीक एक महीने बाद मनायी जाती है जगद्धार्त्री पूजा। सारा कलकता शहर और आसपास के शहरों से लोग उमड़ पड़ते हैं इस पूजा में शामिल होने के लिये। भव्य मूर्तियां और आलीशान पंडाल इस शहर को एक नया रूप दे देते हैं इन कुछ दिनों मॆं। कहा जाता है कि इंद्रनारायण चौधरी, जो कि उस समय के एक बड़े व्यापारी थे, ने कृष्ननगर के राजा कृष्नचन्द्र की देखादेखी जगद्धार्त्री पूजा का आरंभ चन्दननगर में किया। इंद्रनारायणचौधरी उस समय के एक बड़े हस्ती थे। उन्हें फ़्रांस की सरकार से कुछ उपाधियां भी मिलीं थीं और उन्होंने १७४० में नन्ददुलाल का भव्य मंदिर भी बनवाया था। १७५० में उन्होंने अपने घर में जगद्धार्त्री पूजा शुरु की थी। बाद में हर गली नुक्कड़ पर ये पूजा होने लगी और आज जगद्धार्त्री पूजा एक विशाल उत्सव का रूप ले चुका है। कार्तिक महीने में मनायी जाने वाली इस पूजा में देवी जगद्धार्त्री चार हाथों में नाना शस्त्र लिये होती हैं। शेर पर सवार इस देवी की भव्य मूर्तियाँ जगह जगह पंडाल की शोभा बढ़ा रही होती हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार, महिषासुर पर विजय के बाद, देवताओं में अहंकार घर कर गया। उन्हें लगा कि मां दुर्गा उनके प्रदान किये हुये शस्त्रों की वजह से ही महिषासुर का वध कर पायीं हैं। तब यक्ष ने उन्हें सबक सिखाया और ये अहसास दिलाया कि एक महान शक्ति जो कि सबकी रक्षा करती हैं दर असल हर विजय के पीछे हैं। उस शक्ति को जगद्धार्त्री कहा गया और देवी के रूप में इसकी पूजा की गयी।
चन्दननगर का जगद्धार्त्री पूजा मशहूर है विसर्जन के दिन के जुलूस के लिये। सिर्फ़ चन्दनगर के निवासी ही इस दिन की प्रतीक्षा नहीं करते हैं बल्कि इस जुलूस को देखने दूर दूर से लोग आते हैं। बाहर से चन्दनगर को जोड़ने वाली सारी सड़कें बंद कर दी जाती हैं और कलकता से विशेष लोकल रेलगाड़ियाँ चन्दनगर के लिये रवाना की जाती है जिसमें हज़ारों की संख्या में लोग इस जुलूस को देखने आते हैं। इस जुलूस में ख़ास बात होती है रोशनी प्रदर्शन की। महीनों से यहां के लोग जुटे होते हैं बिजली के तारों के सूक्ष्म काम में इस दिन के लिये। बड़े बड़े जेनरेटर ट्रक पर रखे जाते हैं और उनसे जुडे होते हैं बाँस पर लगे छोटे छोटे बल्ब जो कि एक प्रसंग या विषय को दर्शाते हैं। कभी मदर तेरेसा का पूरा आश्रम दिखाया जाता है इन बांस के ढाँचों पर तो कभी महिषासुर वध ही पूरा का पूरा जलते बुझते बल्ब एक कहानी की तरह कह जाते हैं। हैरत होती है इतनी अच्छी तकनीकी विशेषज्ञता देख कर। इस तरह सिर्फ़ एक नहीं बल्कि ३०-४० के करीब जुलूस निकलते हैं एक के बाद एक ट्रकों पर। लोगों का उत्साह देखते बनता है और सारी रात चलता है ये जुलूस। इस जुलूस को देखे बग़ैर मानना मुश्किल है कि इस छोटे से शहर में कैसे ये लोग इतना कुछ कर पाते हैं। इस जुलूस के लिये प्रतियोगिता रखी जाती है और कौन से गली के किस पूजा कमिटी ने ये रोशनी प्रदर्शन जीता अगले दिन के अखबार की खबर का हिस्सा होती है। इस तरह ये पूजा सम्पन्न होती है और अगले साल फिर इन दिनों के लिये बेसब्री से इंतज़ार करने लगते हैं लोग।
हमारे देश में विभिन्न संस्कृति और रीति रिवाज़ों के चलते हर प्रदेश, हर प्रांत मे जाने कितने ही ऐसे उत्सव मनाये जाते हैं जो बड़े उत्सवों की भीड़ में खो जाते हैं। मगर इन उत्सवों का अपना महत्व होता है और हमारे देश की संस्कृति की गरिमा को बनाये रखने में इनका अपना योगदान होता है। चन्दननगर का जगद्धार्त्री पूजा भी ऐसे ही त्यौहारों में से एक है जो सिर्फ़ चन्दननगर का ही सम्मान नहीं बढ़ाता बल्कि भारत देश की संस्कृति को और दृढ़ करता है।
3 comments:
माता जी की फोटो भी लगा दें, जो अभिव्यक्ति में लगी है!
अच्छा लगा जानकारी पाकर. फोटो लगा दें जैसा समीरजी ने कहा.
अच्छा लगा जानकारी पाकर. फोटो लगा दें जैसा समीरजी ने कहा.
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