" बेटे 'कारीडर' में भागना मना है स्कूल में। वापस जाओ और चल कर आओ।" टीचर की बात सुन बच्चे ने अपनी गति पर रोक लगाई और बड़े अनमने तरीक़े से वापस नलके तक चल कर गया और वापस आया...चल कर।
मैंने कभी भी किसी बच्चे को अपनी मर्ज़ी से चलते हुये नहीं देखा है। किसी गली में अगर बच्चा अकेला कहीं जा रहा होगा तो दौड़ कर। कभी किसी भी जगह ज़रा सा ध्यान दीजिये, बच्चों की प्रवृत्ति होती है भागने की। सिर्फ़ यही नहीं, कहीं रास्ते में कोई टापूनुमा उबड़खाबड़ स्थान हो तो, बच्चा उसी पर से चढ़ कर जायेगा।
बच्चों का मनोविज्ञान बहुत अचंभित करता है मुझे। एक बच्चा है मेरे स्कूल में। सभी टीचरों की नाक में दम कर रखा है। सातवीं में पढ़ता है। उसकी क्लास-टीचर भारतीय है और बहुत ही कड़ा अनुशासन है उनका। उस दिन मैं उनके क्लास में थी। अचानक बच्चा पूरी तरह झूल गया अपने चेयर पर इस तरह कि सर और पैर ज़मीं पर और पेट चेयर के ऊपर। अजीब स्थिति। टीचर ने कहा" बच्चे, ठीक से बैठो।" बच्चे ने बात मानी, और एक स्लाइड की तरह झूल गया इस बार। मेरी हँसी रुक नहीं रही थी। पर मैं तो हँस नहीं सकती। टीचर ने कहा," ऐसा करते हैं तुम ज़रा देर कक्षा के बाहर जो चेयर है वहाँ ठीक तरीक़े से बैठने की प्रैक्टिस कर के आओ।" बच्चा कक्षा से बाहर चला गया, कुछ इस भाव से कि उसने तो कुछ किया ही नहीं।
क्या आप जानते हैं कि एक बच्चे का ऐटेन्शन स्पैन यानि 'एकाग्रता अवधि' क्या है?- आठ मिनट। और हम बडों का १८ मिनट। इसलिये एकाग्र रूप से अगर बिना किसी हलचल के हमें कोई भाषण सुनना पड़े तो अट्ठारह मिनट से ज़्यादा हमारे लिये सज़ा ही होगी।
उस दिन मेरी कक्षा में एक बच्चा बार बार उठ रहा था, बात कर रहा था। उसे वैसे भी ध्यान देने और एकाग्र बने रहने में दिक्कत होती है। उसे मैंने एक चिट्ठी दी और कहा,"बेटे क्या ये चिट्ठी कक्षा सातवीं के मिस. डेविड (टीचर) के पास ले जाओगे? वो तुम्हें एक और चिट्ठी देंगी, उसे ले आना।" उस चिट्ठी में मैंने लिखा था, "कृपया इसे हस्ताक्षर कर बच्चे को वापस कर दें।" वो टीचर भी जानती है कि ये एक तरीक़ा है बच्चे को 'ब्रेक' देने का।
हमारे समय में तो हमें पढ़ाई में मन न लगे या ज़्यादा उछलकूद करने पर मार पड़ती थी। अब बच्चे के मनोविज्ञान और उसके अहं को ध्यान में रख कर सब काम करने पड़ते हैं जो शायद कारगर भी होते हैं ( वैसे मार भी बड़ा कारगर अस्त्र हुआ करता था)।
तो आइये, हम भी परंपरागत तरीक़े छोड़ कुछ आधुनिक और परखे हुये तरीक़े अपनायें।
अगर आपके बच्चा भी बहुत ही 'हाईपर' है या एकाग्र नहीं रह पाता तो शायद ये कुछ उपाय जो आपकी सहायता कर सकें-
१) उसे किसी दूसरे काम पर जाने दीजिये। जैसे, "बेटे ज़रा पानी पी कर आओ।" या "ज़रा देख कर आओ समय क्या हो रहा है? आते वक्त मेरे लिये पानी लेकर आना।"
२) ये दूसरा उपाय बहुत ही कारगर है। एक स्क्विशी बाल (यानि एक ऐसा नरम गेंद जो हाथ से दबाया जा सके) बच्चे के हाथ में दे दें। बच्चा शांत हो जायेगा और थोड़ी देर बाद वो गेंद उस से ले लें और वो काम पर लग जायेगा।
३) बच्चे का कोई मनपसंद काम उसे दे दें जैसे पेन्सिल की नोक बनाना , या थोड़ी देर उसे उसका मनपसांद चित्र बनाने देना।
४) एक घड़ी पर हर ५ मिनट पर अलार्म लगा दें । और हर पाँच मिनट में वो अपना काम कर ले तो उसे एक ब्रेक दें जो ३-४ मिनट से ज़्यादा न हो। उससे बात करें कि उसके स्कूल मॆं उसने क्या किया? उसके दोस्तों के बारे में आदि।
अगर ये सारे उपाय काम न आयें तो...? मुझे बतायें कौन सा तरीक़ा आपने अपनाया जो काम आया...
12 comments:
पर आज कल तो बच्चों के हाईपर होने को बीमारी माना जाने लगा है. बात बात पर प्रोज़ाक देने के लिए कहते हैं. समझदार शिक्षक मिलना भी सौभाग्य की बात है!
बहुत अच्छा विषय लिया आपने। मेरे बेटे के साथ भी यह समस्या है (खैर समस्या हमारे लिये बच्चे के लिये नहीं, मुझे हमेशा यह लगता है कि हम बड़े बच्चों को अपने पैमाने पर तोल दोषारोपण करते रहते हैं)।
मेरा बेटा भी हायपरएक्टिव है, बाहर जाने पर उस नियंत्रण रखना असंभव हो जाता है। मेरी पत्नी ने बच्चे का किसी काम में मन लगवाने और व्यवहार पर नियंत्रण रखने के लिये एक और विधि अपनाई। उसने एक बड़ी शीट पर विभिन्न कामों से जुड़ी तस्वीरें चिपकाईं और हर दिन स्कूल, किसी सहेली के घर, बाजार इत्यादि से लौटने पर वो बच्चे से पूछती है कि उसके हिसाब से उसने कैसा बिहेव किया फिर व्यवहार के हिसाब से उसे स्टार के स्टिकर चिपकाकर रेटिंग देती है। हमने नोट किया कि ये रेटिंग उसके लिये खासा मायने रखते हैं और बाहर जाने पर या होमवर्क करते समय या किसी अन्य काम के लिये ज़रा याद दिलाने पर ही वो थोड़ा संयमित होने लगा है, अच्छे स्टार चाहिये तो काबू रखो, ये काम करता है। पता नहीं मनोविज्ञान के मुताबिक सही है या नहीं, पर पत्नी बीएड हैं तो उन पर भरोसा करना चाहिये :)
आपके बताए नुस्खे आज़माने पडेंगे.मुझे लगता है यह "आज और कल " का फ़्रर्क है .शायद दौडती भागती ज़िन्दगी का असर बच्चों में यह "हाइपर " के रूप में हुआ है.मुझे याद है हम बचपन में किताब लेकर घंटों बैठ जाते थे.आज के बच्चों को प्रभावित करती है टी वी और अंतर्जाल की अस्थिरता.
बाल मनोविज्ञान पर अच्छी जानकारी…
उम्मीद है आगे भी यह जानकारी आती
रहेगी…।
वाह,यह जानकर अच्छा मानसी बालमनोवैज्ञानिक भी हैं। आज से ही ये तरकीबें अपनायी जायेंगी किसी हाइपर बच्चे पर। क्या ये किसी हाइपर ब्लागर पर भी काम करेंगे?
मानसी जी
लगता है मुझे भी इस नुस्खे को आजमाना होगा एक बार।
बहुत अच्छा लेख है । मैं कक्षा आरम्भ होते ही बच्चों को पानी पीने को कहती हूँ, जिसे टॉयलेट जाना हो, जाने देती हूँ । फिर कुछ देर पढ़ाकर उसी विषय पर कुछ मिनट कुछ पुस्तक से हटकर चर्चा कर लेती हूँ , ऐसी चर्चा जिसमें वे भी भाग ले सकें । यह सब करने में काम खत्म करने में समय अधिक लगता है किन्तु बच्चों का ध्यान लगा रहता है । मेरे खयाल से किसी के भी साथ व्यवहार करने में यदि हम स्वयं को उसके स्थान पर रख कर उसे समझने का यत्न करें तो सब सरल हो जाता है । यदि हम अपना बचपन याद रखें तो पढ़ाना सरल हो जाता है ।
घुघूती बासूती
धन्यवाद सभी को। ये सारे नुस्खे मैंने यहाँ स्कूल मॆं पढ़ाते हुये अनुभव से सीखे। इसके अलावा यहाँ मैं एक कोर्स कर रही थी जिसमें ये नुस्खे हमें बताये गये। और साथ ही यहाँ की अनुभवी शिक्षक नाना प्रकार के तरीक़े आज़माते हैं जो मुझे हैरान भी करते हैं और शिक्षकों की केपेबिलिटी पर उन्हें बधाई देने को बाध्य।
देबाशीष, आपकी पत्नी भी सही तरीक़ा आज़माती है। पर हर बात के लिये ये तकनीक 'लांग टर्म' में शायद बच्चे को 'मोटिवेशन' पर निर्भर बना देती है। (ऐसा लिखा है "टीचिंग बाइ प्रिन्सिपल्स" में डग्लस ब्राउन ने) पर हम भी ऐसे तरीके रोज़ आज़माते हैं स्कूल में।
हॉं कुछ तरीके सीखे तो थे CIE में (ये वाकई एक अच्छा संस्थान है शिक्षक प्रशिक्षण का। खैर इन सिद्धांतो की पोटली सर पर (और प्रेमिका साथ में) लेकर निकले। फिर हम दोनों के दर्जन भर सिद्धांत भी दो अदद बच्चों के लिए कम पड़ रहे हैं। पर हमें चूकि किसी नकली चाइल्ड एब्यूस कानून से पाला नहीं पड़ता है इसलिए कहता हूँ कि इन उपायों के साथ साथ वही पिताजी वाले औजार यानि कभी कभी एक हाथ कान के नीचे (तेज नहीं) काम करता है।
लोपर (आलसी) को मोटिवेट कैस करें उस पर भी लिखियेगा कभी.
wow, How come so many people know the typing in hindi :)). It's good..
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