Friday, September 14, 2007

पड़ाव-२- अम्स्टर्डाम

हमारे टूर गाईड का नाम था मनीष। बहुत ही मिलनसार और अच्छे स्वभाव वाला। उसके साथ टूर पर कभी कभी लगता कि हम सब फिर अपने बचपन में पहुँच गये हैं। किसी टीचर के साथ फ़ील्ड ट्रिप पर हों जैसे। बस में जाते हुये हमें आने वाले मंज़िल की पूरी जानकारी के साथ साथ, कहाँ क्या मिलेगा, कहाँ हमें जेबकतरों से सावधान रहना चाहिये से लेकर कहाँ सबसे अच्छी आइसक्रीम मिलती है तक की ख़बर वो हमें देता था। १२ साल से इसी पेशे में रहने की वजह से शायद टूरिस्ट के मनोविज्ञान से वो भली भाँति परिचित था। इस टूर पर हम सब छोटे-बड़े मिलाकर ३७ लोग थे। हमें यहाँ हमारे पड़ोसी भी मिले...मतलब ये कि हमारे पास के शहर में, हमारे घर से २० मिनट की दूरी पर रहने वाले एक दम्पत्ति, जो कि इसी सैर के लिये आये हुये थे। दुनिया कितनी छोटी है सच!

ब्रसल्स से हम पहुँचे आइंडहोवन। सारी दोपहर के सफ़र के बाद प्राय: शाम हो चुकी थी जब हम अपने होटल पहुँचे। बहुत सुंदर होटल, और सबसे अच्छी बात, खाना भारतीय। मेरा तो वैसे भी भारतीय खाने के बग़ैर गुज़ारा नहीं होता। भारत से खानसामा आये हुये थे हमारे लिये, जिन्होंने खाना बनाया था। शाकाहारी, माँसाहारी, सभी तरह के व्यंजन थे..वाह!

मनीष साहब ने हमें हमारे अगले दिन का कार्यक्रम बता दिया था। सुबह ६ बजे उठो, ७ बजे नाश्ता, और ८ बजे अगले पड़ाव की ओर रवाना। वापस रात को इसी होटल में बसेरा। अगले दिन सुबह बस में चढ़ कर सभी सो गये। रोज़ ही ऐसा होता था। होटल से किसी मंज़िल की ओर सुबह जाते हुये २ से ३ घंटे का सफ़र होता था, जब हम सभी सोया करते थे। हम पहुँचे अम्स्टर्डाम शहर। सबसे पहले हम गये वहाँ की हीरे की फ़ैक्ट्री देखने। छोटे-बड़े, सुंदर, रंगीन, जाने कितने तरह के हीरे। कारीगर काम करते हुये हीरों पर। और आखि़र में हीरे की ख़रीदारी। इस टूर के बाद अब हीरे ख़रीदने के पैसे कहाँ थे। खै़र... (दुखी मन मेरे...)

हमें शहर का क्रूज़ करवाया गया, एक नौका पर। कनाल के दोनों तरफ़ थे हाउस्बोट जहाँ लोग रहते हैं और ये हाउस्बोट बहुत महँगे होते है। रहने वालों को उस के आसपास की ज़मीं भी ख़रीदनी पड़ती है। आम्स्टर्डाम को साइकिल सवारों की राजधानी कहा जाता है। बहुत सुंदर और स्वच्छ शहर।



हालैंड के लकड़ी के जूते बहुत प्रसिद्ध हैं। तो हम गये अब लकड़ी के जूतों की फ़
ैक्ट्री में। वहाँ लकड़ी के जूते बनते हुये देखे। आज भी शादी के समय रिवाज़ अनुसार जोडों को लकड़ी के जूते दिये जाते हैं, दूल्हा-दुल्हन के नाम खुदवा कर। लड़की के जूते लाल होते हैं और लड़कों के पीले।

जूतों की फ़ैक्ट्री से हम गये दोपहर का खाना खाने, शहर के बीच खुले एक भारतीय रेस्तराँ में। यही बात सबसे अच्छी है एस.ओ.टी.सी. के टूर की...रोज़ भारतीय खाना...क्या कहने। खाना खा कर, हम पहुँचे वोलेन्डाम, जो कि अम्स्टर्डाम की एक मछुआरों की बस्ती है। यहाँ साफ़ दिखाई देता है कि किस तरह समुद्र की सतह ज़मीन की सतह से ऊँची है। रास्ते में हमने पुरानी विंड मिल भी देखी, तस्वीरे खींची और दो घंटे के क़रीब वोलन्डाम में शांति से बिताने के बाद हम गये विश्वविख्यात मड्यूरोडाम में।

मड्यूरोडाम है एक बौना शहर यानि कि इस शहर में पूरे अम्स्टर्डाम को बौना कर के दिखाया गया है। विंडमिल, कथिड्रल, एयरपोर्ट आदि सभी बौनाकार। अपने आप में एक अनोखा देश। काफ़ी समय यहाँ बिता कर, हम वापस पहुँचे अपने उस रात के बसेरे में, थक कर चूर। पहुँचते पहुँचते शाम ढल चुकी थी। अम्स्टर्डाम की यादों को दिल में बसाये, अगले दिन एक नये पड़ाव की ओर निकलने की मानसिक तैयारी में लग गये हम, एक और सुबह के इंतज़ार में, कुछ नये याद संजोने, ब़ड़ी बेसब्री से...

2 comments:

अनूप भार्गव said...

अरे वाह ! इतने कम समय में , घर बैठे , बिना पैसा खर्च किये , इतनें स्थानों की सैर करवाने के लिये धन्यवाद ।

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

dhanyawad Anoopda.