Monday, August 11, 2008

आइ विल कम टू सी यू नेक्स्ट यीयर...

छुट्टियों के और ३ ही सप्ताह बाकी़ हैं। फिर सुबह से शाम तक का ज़िंदगी का जाना पहचाना सा सफ़र शुरु होगा। वैसे तो स्कूल की छुट्टी बक़ायदा होती है साढ़े तीन बजे, मगर कभी भी घर शाम ६ बजे से पहले आना नहीं होता, जब कि घर स्कूल के बिल्कुल ही नज़दीक है। हज़ारों प्लानिंग मीटिंग तो कभी खुद ही अगले दिन की लेसन की प्लानिंग, व्यवस्था करना आदि। मैंने देखा है कि कोई भी टीचर मेरे स्कूल में शाम ५ या ६ से पहले घर नहीं जाती। और फिर जब रिश्तेदारों, दोस्तों से ये सुनने को मिलता है कि वाह क्या अच्छी नौकरी है, ८ से ३ बजे तक, फिर कितनी ही छुट्टियाँ, इतनी फ़सिलिटी... तो लगता है कि कहूँ , हाँ आप क्यों नहीं आ जाते फिर इसी लाइन में? मगर ये नौकरी की बात नहीं, ज़रूरी है कि अपने पेशे से दिल से प्यार किया जाये, उसका दिल से हो जाया जाये। मेरे स्कूल के टीचरों के समर्पण की भावना देखकर प्रेरणा मिलती है। स्टाफ़रूम में भी किसी बच्चे के बारे में ही बात करते हुये, उसके बारे में ऐसा क्या किया जाये कि उस बच्चे में सुधार हो सके, एक बच्चे के लिये ४-४ मीटिंग करती टीचर्स...सच मुझे खुशी है कि मैं ऐसे एक पेशे में हूँ जो कहीं किसी के जीवन में शायद कुछ बदलने, अच्छा करने की का़बिलियत रखती हो।
इस साल मुझे अंग्रेज़ी पढाने दिया गया था, उन बच्चों के लिये जो कि इस देश में नये आते हैं और जिन्हें अंग्रेज़ी की जानकारी कम होती है। कक्षा ५वीं से ८वीं तक। इस ज़िम्मेदारी को निभाते हुये मैंने जितना सीखा इस साल मुझे नहीं लगता कि कभी भी सीखा होगा। इन बच्चों के मनोभाव को समझ, जो कि अपना देश छोड़ कर आये हैं, अपने रिश्तेदारों से दूर, अपने दोस्तों से दूर और बिल्कुल ही अजनबी देश में जहाँ की बोलचाल, भाषा, पहनावा, वातावरण सब ही अलग हैं, उन्हें पढ़ाना और ये आत्मविश्वास भरना कि वो भी दो दिन बाद यहाँ जन्में या बहुत दिनों से रह रहे बच्चों के साथ ही कदम से कदम मिला कर चल पायेंगे, बहुत संतुष्टि देता है। ऐसी अंग्रेज़ी की कक्षाओं में १२ से १५ बच्चे ही होते हैं। हर किसी के लिये उसकी काबिलियत के अनुसार उसकी पढ़ाई के लेसन प्लान तैयार करना, और हर बच्चे के साथ बैठ कर उन्हें समझना और समझाना, एक टीचर को उन बच्चों से सुंदर संबंध बनाने में मदद करते हैं। एक बच्चा आया था चीन से। सत्र के बीच में आया, कक्षा आठवीं का बच्चा था, मगर अंग्रेज़ी का एक अक्षर भी नहीं आता था। शुरु में तो मुझे भी कठिनाई हुई (ये मेरा भी इस तरह के असाइन्मेंट के लिये पहला साल था), मगर धीरे धीरे उसको कम्प्यूटर और अंग्रेज़ी-चीनी डिक्शनरी की मदद से काफ़ी बातें समझाने में कामयाब हुई मैं। फिर भाग्य से, मैंने एक बच्चे की मां से, जो कि चीनी थी और उसे अंग्रेज़ी आती थी को, सप्ताह में २-३ दिन कुछ घंटे आ कर उस बच्चे के लिये अनुवादक का काम करने को कहा। वो सहर्ष मान गयीं और मेरे लिये बात आसान हो गयी। उस बच्चे का गणित अच्छा था, तो उस विषय ने मुझे उसके आत्म्विश्वास को बढ़ाने में मदद की। इस साल वो बच्चा दूसरे स्कूल में (हाईस्कूल) जायेगा। मगर आज उसे टूटी फूटी अंग्रेज़ी में बात करते देख बहुत तसल्ली होती है। उस बच्चे की लगन देखने लायक थी। अगर बच्चा खुद न चाहे तो उसे प्रोत्साहित करना बहुत आसान नहीं होता। उस बच्चे की कल्पना शक्ति बहुत अच्छी थी। मैं उसे एक तस्वीर दे देती और उस पर एक कहानी लिखने कहती। वो अपनी मेहनत से लिखता, अंग्रेज़ी में। बाद में उसे पढ़ कर उसके साथ बैठ कर उसे बताती कि उस कहानी में और क्या सुधार की गुंजाइश है। उसने कई दोस्त बनाये थे इस साल और अपने दोस्तों के बीच काफ़ी प्रसिद्ध भी था। भाषा बच्चों के बीच दोस्ती में कभी बाधा नहीं बनती। उसने स्कूल में बास्केट बाल आदि में काफ़ी नाम भी कमाया था। वो स्कूल के आखिरी दिन कह कर गया मुझसे, " मिसेज़ चटर्जी, आइ विल कम टू सी यू इन द स्कूल नेक्स्ट यीयर।" ये छोटी छोटी बातें दिल को बहुत खुशी देती हैं। हर एक बच्चे के साथ एक कहानी बन जाती है, उनकी सफ़लता के साथ जुड़ जाती है मेरी भी सफ़लता, न सिर्फ़ पेशे से बल्कि मन से भी। ऐसी न जाने कितनी ही घटनायें इकट्ठी हो गई हैं इन चंद सालों में, जो बहुत दूर तक जायेंगी मेरे साथ, मेरी ज़िंदगी में। मुझे इंतज़ार है उस दिन का जब ये बच्चा मेरे पास आयेगा और अपनी सफ़लता की कहानी सुनायेगा, वो भी अंग्रेज़ी में।

3 comments:

ज़ाकिर हुसैन said...

मानसी जी
पहली बार आपके ब्लॉग से परिचय हुआ
बेहद अच्छा और मार्मिक लिखा है आपने. सच बात है कि टीचर बच्चे का भविष्य निर्माता होता है और बच्चे कि सफलता ही टीचर कि असली उपलब्धि होती है.
आप इस सम्मानित काम को अंजाम दे रही हैं .
शुभकामनाएं

डॉ .अनुराग said...

पेशा कोई भी हो उसे इमानदारी ओर निष्ट पूर्व किया जाए वाही जरूरी है.....वैसे मेरा मानना है बच्चो को पढ़ना सबसे मुश्किल कार्य है ओर बहुत जिम्मेदारी का भी ...जैसे किसी कच्चे घडे को रूप देना .....हमें भी अपने अच्छे गुरु आज तक याद

Udan Tashtari said...

निश्चित ही गुरु की भूमिका अतुल्य है. आपको साधुवाद, शुभ कार्य के लिए बधाई एवं अनेकों शुभकामनाऐं.