Sunday, September 14, 2008

तोहफ़ा

आज हिन्दी दिवस के अवसर पर यहाँ के भारतीय दूतावास ने एक कवि सम्मेलन का आयोजन किया था। उन्हें हिन्दी कवि सम्मेलनों में ले जाना ज़रा मुश्किल काम होता है मेरे लिये। मगर आज ख़ास था। पहले कवि सम्मेलनों में ये समय काटने के लिये अपनी पढ़ाई की किताबें ले कर जा चुके हैं। गलती उनकी भी नहीं, उनका बचपन देश से बाहर अमेरिकी स्कूल में बीता। हिन्दी के साथ उनकी मुलाक़ात अचानक कक्षा सातवीं में हुई, और किसी तरह दसवीं तक हिन्दी में पास हो कर वे अपने को भाग्यशाली महसूस करते रहे। तो खै़र, आज वो मेरे साथ गये और धैर्य के साथ बैठे रहे, सबको सुना। आज हमारी रजिस्ट्री की शादी को १० साल भी हो गये। तो एक तरह से तोहफ़ा ही रहा उनका मेरे लिये ये। तो खैर, मैं उन्हें अपने ब्लाग खींच खींच कर पढ़ाती रहती हूँ (कविता वाले बहुत कम)। आज वहाँ से आने के बाद उनसे कहा कि क्यों न वो भी कुछ लिखें। उनसे हिन्दी में लिखने की आशा तो नहीं कर सकती, मगर उनका १७-१८ साल बाद फिर से कलम उठाना, और लिखना मेरे लिये आज एक और तोहफ़ा हुआ उनकी तरफ़ से। उन्होंने अपना ब्लाग शुरु किया the reluctant blogger के नाम से। मैं आशा करूँगी कि वो अब नियमित लिखते रहें और अपनी रचनात्मक शक्ति को निखारते रहें।

3 comments:

फ़िरदौस ख़ान said...

बहुत ख़ूब...

Anonymous said...

शादी की सालगिरह की बधाई!

kavitaprayas said...

सही है मानोशी ! तुमने उनको भी लिखना सिखा दिया !!!
सही है चंदन का संग खुश्बू बिखेरता ज़रूर है....

keep it up !
-Archana