सचिन देव वर्मन की पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजली के रूप में ये पोस्ट मेरी। मेरा बचपन उनकी आवाज़ और उनके गानों के साथ बीता है। पापा उन्हें ’सचिन कर्ता’ कहते थे और उनके गाने गाते थे, और विश्वदेव चटर्जी के भी, बंग्ला में। इनके गाने सुन कर पापा के मधुर गाने की याद आती है, बचपन की...
संगीत की कोई भाषा नहीं होती। मेरे इस हिन्दी ब्लाग पर बंग्ला के ये दो गाने, सचिन देव वर्मन की आवाज़ में-
कुहू कुहू कोयलिया, कुहोरिलो महुआ बोने..
(क्या शब्द हैं- बाहिरे झरे फूल, आमि झोरी घरे...यानि बाहर फूल झरते हैं और मैं झरता हूँ घर में...)
निशीथे जाइयो फूलो बोने रे भँवरा, नीशीथे जाइयो फूलो बोने...
संगीत की कोई भाषा नहीं होती। मेरे इस हिन्दी ब्लाग पर बंग्ला के ये दो गाने, सचिन देव वर्मन की आवाज़ में-
कुहू कुहू कोयलिया, कुहोरिलो महुआ बोने..
(क्या शब्द हैं- बाहिरे झरे फूल, आमि झोरी घरे...यानि बाहर फूल झरते हैं और मैं झरता हूँ घर में...)
निशीथे जाइयो फूलो बोने रे भँवरा, नीशीथे जाइयो फूलो बोने...
2 comments:
दूसरा गीत हिन्दी गीत
" धीरे से जाना बगियन मेँ भँवरा " जैसा लगा -
सुँदर गीत हैँ मानोशी -
अनूठा प्रयास है आपका. सचीन दा की याद आज आती ही कितनों को है !!! शुभकामनाएं. स्वागत मेरे ब्लॉग पर भी.
Post a Comment