Friday, November 07, 2008

पायलिया झंकार मोरी...

शाम ढल रही है, तेज़ धूप से थका दिन, अब आराम चाहता है। बहुत थक चुका है, दौड़ धूप, छल कपट से निहाल, अब थोड़ी देर का चैन... रात की गोद में सांस लेना चाहता है।

दूर तैरती आवाज़ ...पायलिया झंकार मोरी...राग पूरिया-धनश्री दिन ढलने का संदेश देती है...एक पिंजरे में फड़फड़ाते पंछी को देख कर मन दु:खी हो कि खु़श... उस मैना की छटपटाहट देख कर तड़पूँ... जो बंद है, जिसकी शाम और रात और दिन, सभी ऐसे ही बीतेंगे... या अपनी स्वतंत्रता पर गर्व करूँ?

भोर की किरण फूट रही है, मद्धम रोशनी...भोर हो रही है... मेरे घर के आंगन में तुलसी को पानी डालती हूँ... मन निश्चिंत है...

बहुत सुंदर ये गीत, राग पूरिया धनश्री में...पायलिया झंकार मोरी...

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2 comments:

Udan Tashtari said...

आभार इस गीत के लिए..बहुत सुन्दर गीत रहा!!

Anonymous said...

bahut khubsurat get hai shukran