" मानोशी, तुमसे बात करनी थी, ज़रा" ।
"हाँ कहिये"। "
मेरी प्रिन्सिपल मेरे पीठ पर हाथ रख कर बोली, " यार तुम गाड़ी बहुत तेज़ चलाती हो, ज़रा धीरे चलाया करो, मैंने देखा तुम्हें कल"।
" हाँ?...अच्छा" मैं सकुचाई।
रोज़ सुबह इरादा मेरा यही होता है कि जल्दी काम पर पहुँच जाऊँ। सुबह जल्दी उठ भी जाती हूँ रोज़, उन्हें चाय, नाश्ता दे कर, लंच पैक कर के, फिर सो जाती हूँ, आधे घंटे के लिये। ये नींद बड़ी बुरी चीज़ होती है, मुझे आती भी बहुत है, जाने क्यों। मुझे रिपोर्ट करनी होती है काम पर सुबह ८:४० पर, और मुझे लगते हैं १५-२० मिनट पहुँचने में घर से। मैं निकलती हूँ ठीक ८:३० बजे। अब जल्दी पहुँचना हो तो, क्या करे इंसान...तेज़ ही गाड़ी चलाये...सामने की रोड पर स्पीड लिमिट है, ६० कि.मी. प्रति घंटा, और मैं चलाती हूँ ८० पर और प्रार्थना करती रहती हूँ " भगवान मुझे आज पुलिस न पकड़े...भगवान प्लीज़...प्लीज़..." अब तक भगवान मेहरबान हैं। मेरी सुनते हैं।
वैसे तो ये भी मुझे टोकते हैं (टोकना तो पतियों का जन्मसिद्ध अधिकार होता है) कि मैं तेज़ चलाती हूँ, देर से ब्रेक लगाती हूँ आदि आदि। आज तक, वो साथ रहें और मैं स्टीयरिंग व्हील पर हूँ, ये नहीं हुआ कभी...न होगा। अपनी गाड़ी को तो हाथ भी नहीं लगाने देते, दूर से भी। बैठने दे देते हैं यही बहुत है... और ५० हिदायतें, दरवाज़ा ज़ोर से मत पटको, कुछ खाओ नहीं वग़ैरा वग़ैरा....समझ नहीं आता, क्या शौक़ होता है गाडि़यों का इन लोगों को। मैं ग्रोशरी की ख़रीदारी कर रही होती हूँ, और ये किसी दुकान पर खिलौने मैच बाक्स गाड़ियाँ देख कर मुग्ध हो रहे होते हैं। बेड साइड टेबल पर आटो मार्ट की किताबों की दुकान खोल रखी है, हर बार दुकान से एक उठा लाते हैं। गाड़ी चलाते हुये रास्ते में कोई फ़रारी दिख गई तो उनके मुँह से निकलता है, " सलाम साब, आप को मुझे ओवर्टेक करने का पूरा अधिकार है" । हर गाड़ी की मेक, मोडेल, सब कुछ ज़ुबानी याद है, और अपने दोस्तों से घंटों इस पर बात कर सकते हैं ये।
उस दिन मेरी दोस्त, नीलू से बात हुई। उसका ३ साल का बेटा ’गाड़ी-गाड़ी’ चिल्ला रहा था पीछे। मैंने पूछा, " ये क्या कह रहा है?" नीलू के परिवार में वे खु़द ४ बहनें थीं, घर में कोई बेटा/लड़का नहीं था। उसे भी पहली बेटी ही हुई थी। उसने कहा," क्या बताऊँ, ये अजीब जीव आ गया है मेरे घर। सिर्फ़ गाड़ी, नीली, पीली, बस गाड़ी की ही बात करता है, हमारे लिये बड़ा नया अनुभव है"।
लड़कों के क़िस्से...सच! एक बहुत प्यारा देवर/दोस्त है मेरा। उस दिन मुझसे बात कर रहा था। जब कम उम्र थी, उतनी अच्छी गाड़ी ख़रीदने के पैसे नहीं थे, और अमेरिका नया नया आना हुआ था, तब की बात है। " भाभी, एक बी.एम.डब्ल्यू. को पार्किंग लाट में देखा। सोचा, ज़रा लात मार कर देखूँ, कहने को हो जायेगा, बी.एम.डब्ल्यू को लात मारी। और जैसे ही लात मारी, उसका अलार्म बजने लगा। जो भागा फिर वहाँ से..." मैं हँसने के सिवाय क्या कर सकती थी। पर सच, ऐसा क्या है गाड़ियों और लड़कों में रिश्ता समझ नहीं आता....शायद वही जो मेरा अपने घर से है, या घर सजाने, साफ़ रखने से...मेन आर फ़्राम मार्स ऐंड विमेन फ़्राम वीनस...शायद यही है बस....
13 comments:
कहते हैं लडके कभी बडे नहीं होते - उम्र के साथ-साथ मात्र उनके खिलौने बदल जाते हैं और कार तो हर उम्र में उनका पसंदीदा खिलौना होती है!
मजेदार किस्सा है!
Men are from Mars and Women from Venus [:)]
बहुत अच्छा लिखा है। ऐसे लेख भी लिखने चाहिये। मजेदार।
बढिया लिखा वैसे अगर आप सच मे गाडी तेज़ चलाती हैं तो रफ़्तार पर नियंत्रण रखें क्योंकि ज़रुरी नही है दुर्घटना आप की ही गल्ती से हो।इश्वर ना करे कभी ऐसा हो मगर कई बार सामने वाले की गल्ती भारी पड जाती है।मै भुक्तभोगी हूं एक नही दो बार ट्रक ने मेरी कार को ठोकर मारी है और अब मै फ़ोर लेन के अलावा कही भी हवा से बात नही करता। आपकी प्रिंसिपल आपकी शुभचिंतक है उनकी सलाह पर गौर करियेगा।पहली बार आपके ब्लोग पर आया,बहुत अच्छा लगा आपको पढ कर ।
मेरे खिलौने का नाम कार नहीं बाईक है.. :)
और Y2K सबसे महंगा खिलौना है जिसे मैं कभी नहीं ले पाऊंगा.. क्योंकि यह बिकने के लिये उपलब्ध नहीं है.. :(
वैसे कहानी अच्छी है..
ईस्वामी, अनूप, अनिल, शुक्रिया। प्रशांत देखो, तुम्हारी इच्छा पूरी हो, तुम्हारा खिलौना भी तुम्हें मिले शायद। और भई, ये कहानी कहाँ से लगी तुम्हें?
लड़के ज़रा अजीब होते हैं, क्यों होते है इसका वैज्ञानिक कारण एलन और बारबरा पीज़ ने अपनी दो बेस्टसेलर पुस्तकों, why men don't listen and women can't read maps(2001) और why men lie and women cry (2003) में विस्तृत रूप से दिया है, इसे पढने के बाद मर्दों का खिलौनों के प्रति आकर्षण बिल्कुल भी अजीब नहीं लगेगा.
मैंने ऊपर लिखी दोनों ही पुस्तके पढ़ी हैं उनके मूळ अंग्रेजी वर्जन में.
परन्तु कई मुद्दों पर मैंने ख़ुद को उनसे असहमत पाया. वजह सिर्फ़ इतनी सी थी की ये भारतीय परिवेश के लोगों पर उनती सच नहीं थी. पर जो भी हो, ई स्वामी जी की बात से पूर्णतया सहमत.. की लड़के वाकई कभी बड़े नही होते.
great lines about guys
but wanna say
the way u describe
interesting to read
do visit my blog if have a time
regards
जिस तरह हर स्त्री के भीतर एक लड़की छिपी होती है हर पुरूष के भीतर एक लड़का होता है......
मैने तो कभी ध्यान भी नहीं दिया इस बात पर, हाँ सचमुच लड़कों को बस गाड़ी गाड़ी खेलना ही पसन्द होता है, अब भले ही उनके हाथ में गाड़ी वाला कोई खिलौना हो या बाथरूम का मग.... वे उससे भी गाड़ी चला ही लेते हैं।
मैने भी बचपने में एक गाड़ी का अविष्कार किया था, दुर्भाग्य से एक महान वैज्ञानिक (:)) के अविष्कार पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। कई सारे अविष्कारों पर तो पिटाई भी हुई थी।
...बहुत शानदार लेख पढ़कर बचपन याद आया। और हाँ गाड़ी जरा धीरे ही चलाया कीजिये कई बार अपनी गलती ना होते हुए भी दुर्घटना हो जाती है।
मै अपने गाड़ी के बारे में लापरवाह हूँ. मेरा अनुभव है कि जब भी किसी लड़की या स्त्री ने मेरी गाड़ी चलाई, समझो ठुकी. पढ़ के मज़ा आ गया. आभार.
आज फ़िर से पढ़ा इसे। अच्छा लगा फ़िर से। :)
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