Saturday, January 31, 2009

सोहेल राणा साहब के साथ


" ये स्वर मुझसे नहीं लगते ठीक से राणा साहब..."
"नहीं, स्वर यहाँ कुछ ऐसे लगाइए- म॑ ध नि सां नि ध म॑ म ग"
" जी...."
" जब मैं ख़ां साहब को ये ग़ज़ल बता रहा था...१९७८ में...तब..."

खु़द अपने नसीब पर यक़ीन कर पाना मुश्किल होता है कि सोहेल राणा साहब से मुझे ग़ज़ल गाने की तालीम लेने का अवसर मिल रहा है । उनका मुझे एक ही लाइन को पचास बार गवाना कि उनके कानों में वो बात नहीं आती जो वो सुनना चाहते हैं, वो छोटी छोटी बारीक़ियाँ, वो लफ़्ज़ों का गाते वक़्त सही उच्चारण, और फिर बीच बीच में उनका अपने पुराने दिनों में खो जाना और अपने क़िस्से बताना कि किस तरह ’आज जाने की ज़िद न करो’ उन्होंने सबसे पहले हबीब वाली मोहम्मद से गवाई थी, और बाद में फ़रीदा ख़ानम ने उसे गाई और वो मशहूर हुई...हर लम्हा मेरे लिये सीखने का होता है उनके साथ।

अभी जो ग़ज़ल सिखा रहे हैं वो मुझे, मेहंदी हसन साहब की आवाज़ में है ये कहीं, मगर मेरे पास नहीं वरना अपलोड कर देती, अभी सिर्फ़ ग़ज़ल पढ़ने का मज़ा लीजिये-

वो सुबह को आयें तो करूँ बातों में दोपहर
और चाहूँ कि दिन थोड़ा सा ढल जाये तो अच्छा

ढल जाये अगर दिन तो करूँ बातों में फिर शाम
और शाम से चाहूँ कि वो कल जाये तो अच्छा

हो जाये अगर कल तो कहूँ कल की तरह से
गर आज का दिन भी यूँ ही टल जाये तो अच्छा

अलक़िस्सा नहीं चाहता वो जायें यहाँ से
जी उसका यहीं गरचे बहल जाये तो अच्छा।

चलते चलते, सोहेल राणा साहब की मशहूर "आज जाने की ज़िद न करो" यू ट्यूब के सौजन्य से जनाब हबीब वाली की आवाज़ में सुनिये


5 comments:

azdak said...

अपनी-अपनी किस्‍मत, कैसी-कैसी किस्‍मत?..

श्रद्धा जैन said...

Wah kya baat hai

गौतम राजऋषि said...

शुक्रिया मानोशी.....ढ़ेरों शुक्रिया,इस गज़ल का ये डिजिटल वर्सन नहीं था मेरे पास.

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

मनोशी जी ,
आपके इस लेख से आपके अन्दर संगीत सीखने की
तीव्र इक्षा ,एक मशहूर संगीतज्ञ सोहेल राना
जी से सीखने का उत्साह ..सभी कुछ झलकता है .आपकी सफलता की शुभकामनायें .
आप जल्द सीख लें तो कभी मैं भी आपसे अपने कुछ बालगीत गवाऊंगा .
मैंने फुलबगिया नाम से बच्चों का नया ब्लॉग शुरू किया है .लिंक मेरे ब्लॉग पर है .मौका
लगे तो पढियेगा .
हेमंत

महावीर said...

राणा साहब की शागिर्दा होना ही एक ख़ूशनसीबी है। यह ग़ज़ल जो मेहदी हसन साहब ने गाई है, शीघ्र ही तुम्हारी आवाज़ से भी सुनी जाएगी।
हबीब की ग़ज़ल 'आज जाने की ज़िद न करो' बहुत अच्छी लगी।