Sunday, February 08, 2009

चंद दोहे- घर मेरा संसार ये, यहीं बसे भगवान




कोने में है माँ पड़ी, जैसे इक सामान |
रिश्ते भी है तौलती, दुनिया बड़ी दुकान ||
.
छूटे हाथों से खुशी , जैसे फिसले धूल |
ढूँढा अपने हर तरफ़, बस इतनी सी भूल ||

जाना तीरथ को नहीं, ना मूरत में ध्यान |
घर मेरा संसार है, यहीं बसे भगवान ||

चाहे दुनिया भी मिले, मिटती कब है प्यास?
घर में चन्दा उग रहा , फिर भी जगत उदास॥

माँगें तो है कर रहा, हक़ से हर इन्सान।
बस इक मिल सकता नहीं, माँगे से सम्मान॥

खुद को लो पहले बचा, ये कुर्सी का खेल।
भोंक कटारी दोस्त भी, देय भँवर में ठेल॥

कहत सुनो ये मानसी, खायेगा तू चोट।
अति वाणी उसकी मधुर, जिसके मन में खोट॥


9 comments:

Vinay said...

सुन्दर अति सुन्दर

---
चाँद, बादल और शाम

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

मानसी जी
दोहे आपके सभी अच्छे हैं ,लेकिन ये सबसे अच्छा लगा
खु़शी छूटती हाथ से, जैसे फिसले धूल
ढूँढा अपने हर तरफ़, बस इतनी सी भूल
विषय भी अपने समसामयिक उठाया ..बहुत बढ़िया .
हेमंत कुमार

परमजीत सिहँ बाली said...

bahut sunar dhohe hai

कोने में है माँ पड़ी, जैसे इक सामान
रिश्ते भी है तौलती, दुनिया बड़ी दुकान

Harshvardhan said...

bahut sundar post lagi aapki

नीरज गोस्वामी said...

माँग आज है कर रहा, हक़ से हर इन्सान,
बस इक मिल सकता नहीं, माँगे से सम्मा

waah waah...Maansi ji...Waah...har ek doha anmol hai...bahut hi sundarta se gadhe gaye dohe...aaj ke samajik parivesh ko bakhoobi dikhate hue...Badhaii
Neeraj

गौतम राजऋषि said...

सब के सब लाजवाब हैं मानोशी...वाह-नहीं फिर से एक बार वाह !!!!!!
ये खास कर बहुत भाया "चाहे दुनिया भी मिले, मिटती कब है प्यास / चाँद उग आया घर में, फिर भी जगत उदास"

फिर से वही सवाल-कोई विधा छोड़ी भी है कि नहीं?

daanish said...

"jana teerath ko nahi,
na moorat mei dhyaan ,
ghar mera sansaar ye,
yaheen bse Bhagwaan.."

mn ki paavan bhaavnaaoN ki bahut hi
arth-poorn abhivyakti....
dohaawali bahut hi rochak hai...
badhaaee. . . . . .
---MUFLIS---

महावीर said...

बहुत ही सुंदर दोहे लिखे हैं। आनंद आगया पढ़कर।
महावीर शर्मा

Chirag Jain said...

प्रिय मानसी!
आपके दोहे पढ़े
बेहद ज़हीन हैं
अगर आपके और भी कुछ दोहे हैं तो कृपया अधोलिखित ई-मेल पर प्रेषित करें।
दिल्ली के वरिष्ठ शायर आदरणीय राजगोपाल सिंह जी दोहों पर कुछ शोध कार्य कर रहे हैं। उनकी आकांक्षा है कि यदि किसी ने एक भी दोहा "बहुत अच्छा" रचा है तो उसको उद्धृत किया जाए।
यथाशीघ्र अपने दोहे chiragblog@gmail.com पर प्रेषित करें।
यदि कुछ और जानकारी इस विषय में प्राप्त करनी हो तो आप मुझे फोन भी कर सकती हैं।
सृजनात्मक लोगों का सहयोग शोध को बेहतर बनाता है। -
चिराग जैन
9868573612