टोरांटो के कवि भसीन साहब का लिखा ये भजन, मन को बहुत भाया। यहाँ आयोजित एक कवि गोष्ठी में उन्हें सुनने का मौक़ा मिला इस शनिवार। आप भी सुनें और पढ़ें-
http://www.youtube.com/watch?v=lp6roDcyHFA&feature=channel
http://www.youtube.com/watch?v=yMqo3yDbbbc&feature=channel
देह दलदल में ऐसे धँसे हैं
बिन तुम्हारे उबरना न होगा
रक्त के बीज से हम बने हैं
होगी तामसी प्रवृत्ति अपनी
हम भले हैं बुरे हैं तुम्हारे
तुमको इस बात की लाज रखनी
आप बस जायें आकर इसी में
पापी मन का बिखरना न होगा
देह दलदल में ऐसे धँसे हैं
बिन तुम्हारे उबरना न होगा
पाप जन्मों का ले कर हैं आयें
जो है संचित वो ही खर्च होना
दंभ योगी का पाले भटकते
है ये भाग्य और कर्मों का रोना
खींच लो बांह पकड़ पाप भंजन
गर्त योनि उतरना न होगा
देह दलदल में ऐसे धँसे हैं
बिन तुम्हारे उबरना न होगा
एक पल को जुड़ा हूँ सरण में
तुम आजामिल समझ कर उठा लो
पाप मेरे जला कर प्रभु जी
गणिका जैसे गले से लगा लो
मुझमें रह कर जो छुपते रहोगे
जनमों तक फिर सँवरना न होगा
देह दलदल में ऐसे धँसे हैं
बिन तुम्हारे उअबरना न होगा
6 comments:
very nice sir
thank u manoshi....
Manoshi ji,
achchha bhjan hai adarneeya bhaseen saheb ka.unhen meree badhai.
Poonam
एक पल को जुड़ा हूँ सरण में
तुम आजामिल समझ कर उठा लो
पाप मेरे जला कर प्रभु जी
गणिका जैसे गले से लगा लो
मुझमें रह कर जो छुपते रहोगे
जनमों तक फिर सँवरना न होगा
बहुत सुंदर ...बिलकुल रूह से निकली कविता है...ये पंक्तियाँ ह्रदय तक पहुँची...धन्यवाद
बहुत खूब !!
आनंद..विभोर....
बधाई. . . .
---मुफलिस---
मानोशी जी,
बहुत अच्छी पोस्ट. कई बार सुना और हर बार उतना ही अच्छा लगा.
धन्यवाद!
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