सखि बसंत आया ।
कोयल की कूक तान,
व्याकुल से हुए प्राण,
बैरन भई नींद आज,
साजन संग भाया ।
सखि बसंत आया ।
लगी प्रीत अंग-अंग,
टेसूओं के लाल रंग,
बिखरी महुआ सुगंध,
मदिरा मद छाया ।
सखि बसंत आया ।
सखि बसंत आया ।
पाँव थिरक देह हिलक,
सरसों की बाल किलक,
धवल धूप आज छिटक,
सोन जग नहाया ।
सखि बसंत आया ।
सखि बसंत आया ।
अमुवा की डार-डार,
पवन संग खेल हार,
उड़ गुलाल रंग मार,
सुखानंद लाया ।
सखि बसंत आया ।
10 comments:
बहुत सुंदर....
बसंत का बहुत सुंदर वर्णन है
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चाँद, बादल और शाम
वाह ! वाह ! वाह !
अतिसुन्दर मधुर गीत....इसे तो सस्वर सुनने का आनद ही कुछ और होगा...बहुत बहुत आनंद आया पढ़कर.
आभार.
मानसी जी ,
बसंत का इतना अच्छा वर्णन पढने के बाद नहीं लग रहा की इन पंक्तियों को कनाडा में बैठ कर लिखा गया है .
महुए की गंध ,अमराई ,पीली पीली सरसों सभी कुछ इस गीत में है ..खास कर ये पंक्तियाँ बहुत आकर्षक लगीं ....
पाँव थिरके देह डोले
सरसों की बाली झूमे
धवल धूप आज छिटके
जगत सोन नहाया
सखी बसंत आया
पूनम
इस मधुर गीत को अपनी मधुर आवाज़ में गाकर भी सुनाइये.
पाँव थिरके देह डोले
सरसों की बाली झूमे
धवल धूप आज छिटके
जगत सोन नहाया
सखी बसंत आया
...शायद पहले भी आपके ये रचना मानोशी मैं ने कहीं पढ़ी थी,तब भी झूम उठा था और आज भी पढ़ कर झूम उठा हूँ।
सुंदर कहने के लिये कुछ और पर्याय ढ़ूंढ़ कर लाता हूँ....
मानसी जी ,
इलाहबाद का हूँ ,पन्त जी ,महादेवी जी ,डा .राम कुमार वर्मा जी को बचपन में देखा है निराला जी के बारे में अपने पिता जी द्वारा बनाई फिल्म से बहुत कुछ जानने को मिला था .
आपकी कविता पढ़ते समय मुझे केवल महादेवी जी ही याद आयीं .....पता नहीं क्यों ..
हेमंत कुमार
बहुत धन्यवाद संगीता जी, विनय जी।
रंजना जी और द्विज जी, कभी गा कर भी पोस्ट करूँगी।
हाँ गौतम, ये अनुभूति पर बसंत संकलन में पिछले सप्ताह प्रकाशित हुई थी।
पूनम जी, पैदाइश तो भारत की ही है, वहाँ के बसंत ज़्यादा देखे हैं न, इसलिये अभी भी वही सुंदर बसंत कविताओं में आता है।
हेमंत जी, अब क्या कहूँ। आपकी टिप्पणी ने मेरा सम्मान बढ़ाया है।
अद्भुत गीत है बसंत पर...मैंने इंतज़ार किया की आप इसे गा कर अपनी पोस्ट पर लगाएंगी लेकिन अब इतने दिन बाद भी निराशा ही हाथ लगी तो सोचा की तारीफ तो कर ही दूं...कभी जब गा कर लगाएंगी तो दुबारा तारीफ करने चला आऊंगा...
नीरज
saras geeti rachna.
sanjiv 'salil'
divyanarmada.blogspot.com
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