Tuesday, March 03, 2009

ग़ज़ल-ज़रा कर के दिखाये तो


ज़रा कर के दिखाये तो
मुझे दिल से भुलाये तो

चलो झूठे बहाने से
ही आये, पर वो आये तो

नई बातें तो की उसने
ग़ज़ल भी पर सुनाये तो

हज़ारों हाथ आयेंगे
वो पत्थर को हटाये तो

लड़े है सब मगर कोई
नया मज़हब चलाये तो

मैं उसको आँसू दे दूँगा
मेरा मातम मनाये तो

तमन्ना है सौ सालों की
जो संग वो मुस्कराये तो
.
अरे मैं जां भी दे देता
मगर वो आज़माये तो
.
मनाना भी है क्या मुश्किल
वो पहले हार जाये तो

खुदा भी मिल ही जायेगा
किसी के काम आये तो

कभी ऐ ’दोस्त’ वो मुझे
खु़द अपने से मिलाये तो

.
(चित्र: गूगल इमेज साभार)

18 comments:

Anshu Mali Rastogi said...

गजल पसंद आई।

नीरज गोस्वामी said...

ज़रा कर के दिखाये तो
मुझे दिल से भुलाये तो
मानोशी जी बहुत खूबसूरत मतला है....वाह..
नीरज

"अर्श" said...

bahot hi khubsurat bhav se likhi gai chhoti behar ki achhi gazal... bahot khub..


arsh

गौतम राजऋषि said...

बहुत खूब मानोशी बहुत खूब....छोटी बहर में कयामत बरपाती...
"हज़ारों हाथ आयेंगे/वो पत्थर को हटाये तो"
क्या बात है
लेकिन सातवें शेर के दूसरे मिस्‍रे में कौछ तंगी है। आपने गज़ल मुफ़ाईलुन-मुफ़ाईलुन पे लिखी है और "संग" का वजन हमेशा १२ पे आता है। एक बार देख लेना प्लीज़।
और टिप्पणी प्रकाशित करने से पहले मेरी ये आखिरी वाली पंक्तियाँ हटा देना जिनमें मैं ज्यादा ग्यानी और उस्ताद से ही उस्तादी करने की चेष्टा कर रहा हूँ....

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

नीरज जी, अंशुमाली जी, अर्श जी और गौतम- शुक्रिया ग़ज़ल को पसंद करने का।

गौतम, संग के ’ग’ को गिराया गया है, मैं फिर भी एक बार और चेक करवा लूँगी। और कमेंट्स दे कर सोचो नहीं, जो सही है, उसे लिखो :-)

अजित वडनेरकर said...

खुदा भी मिल ही जायेगा
किसी के काम आये तो

पसंद आई बात ...

द्विजेन्द्र ‘द्विज’ said...

बहुत सुन्दर मतले के साथ बहुत सुन्दर ग़ज़ल
कुछ शेरों को और भी बेहतर बनाया जा सकता है. हाँ बह्र की कोई त्रुटि नहीं है.
प्रिय भाई गौतम जी
,

'सँग'(हिंदी )और संग(उर्दू) दो अलग-अलग शब्द हैं .
एक'सँग' तो 'साथ'जो मानोशी जी ने प्रयोग किया है इसका वज़्न तो 2 ही होता है, जो मानोशी जी ने सही लिया है.

दूसरा 'संग'पत्थर होता है और उसका वज़्न 21 है


भाई गौतम जी आपका ये 12 वाला सुझाव बहुत ही cute लगा.

द्विजेन्द्र ‘द्विज’ said...

और मानोशी जी 'ग' को आपने न तो गिराया है और न ही इसे कभी गिराया जा सकता है.सिर्फ मात्रायें गिराई जाती हैं ,'ग' तो अक्षर है.

जैसे आपने एक शेर में 'सौ' औ की मात्रा गिराई है.

अनूप शुक्ल said...

हमको वजन वगैरह का पता नहीं लेकिन गजल बहुत अच्छी लगी। नित जिम जाती सुन्दरी की किसी स्लिम-ट्रिम सुन्दरी सी। बहुत अच्छी।

पूनम श्रीवास्तव said...

बहुत सुन्दर गजल है मानोशी जी ...
लेकिन मन को छूने वाली पंक्तियाँ ये हैं ....
मैं उसको आँसू दे दूँगा
मेरा मातम मनाये तो

तमन्ना है सौ सालों की
जो संग वो मुस्कराये तो
Poonam

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

शुक्रिया अनूप, पूनम और द्विज जी।

द्विज जी आपसे सीखने को मिलता रहे, बस...

Tarun said...

हमें गजल की बारीकियाँ नही पता, हमें तो मजा आया पढ़ कर

Sundeep Kumar tyagi said...

लिखती रहें क्योंकि.....

बेहद अच्छी बेहद सुंदर।
उतरे सीधी दिल के अंदर॥

ग़ज़ल तुम्हारी गहरी कितनी
छिछ्ले छिछ्ले लगें समन्दर॥

इल्म हुनर क्या क्या बारीकी
क़लमकार सब चकित कलंदर

मानो ना मानो मानोशी
"दोस्त" ग़ज़ल में गज़ब धुरंधर॥

गौतम राजऋषि said...

धोखा...!!!!

मैंने तो आपके इस मौडेरेटर वाली सेटिंग पे भरोसा करके टिप्पणी की थी....

देख लूँगा कभी....!!??!! :)

दर्पण साह said...

(this post is regarding ur comment on my blog)
shukriya manoshi ji apne sahi kaha, 'muflis' ji ne bhi mujhe yahi bataya, asal main, mein is ghazal ko likhte wqut is galat femi mein tha ki 'a' ki matra ko kafiya le sakte hai, (mere is chote se dimag ne bekar sa logice lagay tha) .par muflis ji aur apke ansuaar(which is absloutley right) 'a' ki matra koi matra nahi hoti . To maine socha ki 'daudkar' ke jagah 'daudaa kar' ya aisa koi kafiya use karoon par ye fir common nahi ho pa raha, kya aap koi sujha sakti hai ?
However once again thanks for reading my blog....

दर्पण साह said...

aur jahan tak apke blog aur unki nazm ka sawal hai, bas main comment hi nahi karta hoon, (jaisa ki maine kaha that kahi ki 'Since I hate adevertising'). Nahi to apka blog mere 10 fav blog main se ek hai,main apki har nazm padta hoon, aur mere blog main aake apne meri fav. list to dekh hi li hogi(haath kanagna ko aarsi kya?....)
:) Thanx once again....

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

शुक्रिया तरुण, दर्पण जी, और संदीप जी।

संदीप जी आपकी टिप्पणी तो अपने आप में एक उम्दा कविता बन गई है। हुनर भी हो तो ऐसा।

गौतम :-) तुम्हारी नई ग़ज़ल का इंतज़ार है।

Reetesh Gupta said...

खुदा भी मिल ही जायेगा
किसी के काम आये तो

बहुत सुंदर ...बधाई