Saturday, March 21, 2009

ग़ज़ल-तेरे सिवा

तुझे ज़रा तो चैन हो मेरे खयाल के सिवा
कहीं नज़र तो आये कोई और भी मेरे सिवा


तु आ के मेरी ज़िंदगी में देख ले है क्या नहीं
हँसी, खुशी, चहक, महक, सभी तो है तेरे सिवा


चलो गुज़र गई जो फिर ये शाम कल की ही तरह
नया तो कुछ हुआ नहीं कभी गुज़रने के सिवा


मुझे कहाँ किसी सहारे की उम्मीद थी मगर
हज़ार हाथ आये थे, बस एक हाथ के सिवा


तू रख ज़रा सा सब्र ’दोस्त’, कर गुमां भरम पे ये
जहां में उसके और कौन है भला तेरे सिवा


(मफ़ाइलुन x 4)
बहरे रज़ज़ मुसम्मन सालिम

4 comments:

दिगम्बर नासवा said...

तु आ के मेरी ज़िंदगी में देख ले है क्या नहीं
हँसी, खुशी, चहक, महक, सभी तो है तेरे सिवा
मुझे कहाँ किसी सहारे की उम्मीद थी मगर
हज़ार हाथ आये थे, बस एक हाथ के सिवा

khoobsoorat हैं सब के सब sher
ये दोनों कुछ अलग ही andaz के है isliye बहुत pasand आये
क्या बात है दो दोनों में, jisko insaan चाहता है उसके siva सब आते हैं

गौतम राजऋषि said...

क्या अंदाज़ है मानोशी....खास कर दूसरे शेर की अदा तो हाय रेssssss "हँसी, खुशी, चहक, महक, सभी तो है तेरे सिवा" वाह !
और मक्‍ता तो as usual you are simply superb with your takkhallus...

पता है इस बहर पे कई दिनों से कोशिश कर रहा हूँ एक गज़ल कहने की, नतीजा अभी तक सिफ़र रहा है और आप कितनी आसानी से कह लेती हो...

Prem Farukhabadi said...

तु आ के मेरी ज़िंदगी में देख ले है क्या नहीं
हँसी, खुशी, चहक, महक, सभी तो है तेरे सिवा
achchha laga.badhaai ho .

संजीव गौतम said...

dhoonte-dhoonte aaj aapke blog par aaya. aapki kai ghazalen padhin. bahut achchhi aur bedaag ghazalez kahati hain aap.badhaai
sanjiv gautam.

aapki utsahvardhan prapt huaa thaa lekin mera thanks shayad aap tak nahin pahuncha. net ka achchha jankar nahin hoon isliye.
phir se thanks preshit karta hoon.
sanjiv gautam