कल की शाम बड़ी भारी थी
मूसलाधार बारिश में
कहीं बहुत कुछ भीग रहा था
हर पंखुडी़ पर जमा थी कई
पुराने उधडे़ लम्हों की दास्तां
एक छोटा सा लम्हा टपक पड़ा
किसी पंखुड़ी के कोने से
बडा सहेज कर रखा था
मैने उस लम्हें को
छितर गयी वो बूंद आज
कि उस बूंद के पीछे
बूंदों का सिलसिला जो चल पडा
एक रुका हुआ सैलाब
बाँध तोड कर टूट पडा
कि बहुत दिनो बाद बारिश हुई थी
मूसलाधार बारिश....
सुनिये- सावन बीतो जाये पिहरवा, मन मोरा घबराये...
मूसलाधार बारिश में
कहीं बहुत कुछ भीग रहा था
हर पंखुडी़ पर जमा थी कई
पुराने उधडे़ लम्हों की दास्तां
एक छोटा सा लम्हा टपक पड़ा
किसी पंखुड़ी के कोने से
बडा सहेज कर रखा था
मैने उस लम्हें को
छितर गयी वो बूंद आज
कि उस बूंद के पीछे
बूंदों का सिलसिला जो चल पडा
एक रुका हुआ सैलाब
बाँध तोड कर टूट पडा
कि बहुत दिनो बाद बारिश हुई थी
मूसलाधार बारिश....
सुनिये- सावन बीतो जाये पिहरवा, मन मोरा घबराये...
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13 comments:
छितर गयी वो बूंद आज
कि उस बूंद के पीछे
बूंदों का सिलसिला जो चल पडा
एक रुका हुआ सैलाब
बाँध तोड कर टूट पडा
badi hi khubsurati se boondo ke sailab ka varnan kiya hai,badhai.
बेहतरीन रचना...और साथ में अभूतपूर्व गीत...सोने में सुहागा...वाह...बहुत बहुत आभार आपका...
नीरज
कितनी खूबसूरत शुरुआत.........बारिश की बूँद से रची हुयी लाजवाब रचना
अच्छी लगी आपकी यह रचना ... आभार।
मूसलाधार बारिश की इस अनोखी भूमिका ने चकित कर दिया...
नेट की गति इतनी मद्धिम है कि आडियो क्लिप चल ही नहीं रहा...
इन पुराने उधडे़ लम्हों की दास्तां में डूबता जाता मन...
भारतवर्ष में अप्रैल की गर्मी और लू के थपेडों की शुरुआत हो चुकी है ..ऐसे में बारिश की कविता पढना बहुत सुखद लगा .
हेमंत
बूंदों का सिलसिला जो चल पडा
एक रुका हुआ सैलाब
बाँध तोड कर टूट पडा
कि बहुत दिनो बाद बारिश हुई थी
मूसलाधार बारिश....
बूंदों का सिलसिला जो चल पडा
एक रुका हुआ सैलाब
बाँध तोड कर टूट पडा
कि बहुत दिनो बाद बारिश हुई थी
मूसलाधार बारिश....
बहुत सुन्दर कविता ...मानसी जी ...भावः भी अच्छे ..
पूनम
आंटी,
आपकी कविता पढी ,बहुत अच्छी लगी,.....मैंने अपनी एक नई कहानी झरोखा पर पोस्ट करी है.....आप पढ़ के देखियेगा ...आपकी सजेशन्स की प्रतीक्षा में ..
नेहा शेफाली
मानसी जी,'रेत का तकिया' पर आपकी टिप्पणी का शुक्रिया..आशा करता हूँ कि आप द्वारा की गई हौसला आफजाई हिम्मत बढाएगी...आपने कहानी को पूरे मन से पढ़ा इसलिए भी आभारी हूँ..कहानी के सच अथवा कल्पना होने का निर्णय मैंने पाठक के विवेक पर छोड़ दिया था..पर यह घटना जिस माँ से कई बरस पहले सुनी थी,तब से एक फांस सी मन में चुभ रही थी, कन्या शिशु वध की वीभत्स परम्परा के बारे में तथ्य टुकडो में एकत्र किये गए थे.जिन इलाको में यह आज भी प्रचलित है,उनमे कई गावों में सौ सालो से किसी बेटी की डोली नहीं उठी है..कोई बारात नहीं आई है.आज भी पश्चिमी भारत के कई गावों में दुधमुहे बच्चो के अलग कब्रिस्तान है जिन्हें शम्शानिया,मसानिया,दभालिया या दुध्नाडिया कहते है.... आपकी सुन्दर रचनाओं पर टिप्पणी फिर कभी करूंगा........पी एस
ब्लौग का नया कलेवर....आहहा
बहुत खूब
sunder rachana, prikriti ke karib.
Raj
Shabdo me bahut khubsurti se barish ki bundo ko aapne piroya hai.
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