Tuesday, October 20, 2009

ग़ज़ल-मिलते ही मैं गले नहीं लगता

लोग मुझको कहें ख़राब तो क्या
मैं जो अच्छा हुआ जनाब तो क्या

कुछ नहीं मुश्त-ए-ख़ाक से बढ़ कर
आदमी का है ये रुआब तो क्या

उम्र गुज़री उन आँखों को पढ़ते
इक पहेली  है वो किताब तो क्या

मैं हूँ जुगनू अगर तो क्या कम हूँ
और कोई हैआफ़ताब तो क्या

ज़िंदगी ही लुटा दी जिस के लिये
आज माँगे वही हिसाब तो क्या

मिलते ही मैं गले नहीं लगता
फिर किसी को लगे ख़राब तो क्या

हम फ़ना हो गए मुहब्बत में
’दोस्त’ मरकर मिला सवाब तो क्या


(फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन)
(२१२२ १२१२ २२)

24 comments:

शरद कोकास said...

मुश्तेख़ाक का जवाब नहीं ।

श्यामल सुमन said...

मिलते ही मैं गले नहीं लगता
फिर किसी को लगा खराब तो क्या

बहुत खूब। बशीर बद्र साहब कहते हैं कि-

कोई हाथ भी न मिलायेगा जो मिलोगे तपाक से
ये नये मिजाज का शहर है जरा फासले से मिला करो

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

@
मिलते ही मैं गले नहीं लगता
फिर किसी को लगा खराब तो क्या

फ्रैंकनेस और अभिव्यक्ति भा गई।
शीर्षक के 'मिलत्ते' को 'मिलते' कर दीजिए।

mehek said...

मैं जो जुगनु हूँ गर तो क्या कम हूँ
कोई है गर जो आफ़ताब तो क्या
behad lajawab,bahut dino baad aapki khubsurat dilkash gazal padhi,waah.

पूनम श्रीवास्तव said...

मिलते ही मैं गले नहीं लगता
फिर किसी को लगा खराब तो क्या
आ गया जो सलीका-ए-इश्क अब
’दोस्त’ मरकर मिला सवाब तो क्या

आपकी गजलो का भी जवाब नहीं .
पूनम

निर्मला कपिला said...

मैं जो जुगनु हूँ गर तो क्या कम हूँ
कोई है गर जो आफ़ताब तो क्य

आ गया जो सलीका-ए-इश्क अब
’दोस्त’ मरकर मिला सवाब तो क्या
मानसी जी लाजवाब गज़ल कही है बधाई

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

आ गया जो सलीका-ए-इश्क अब
’दोस्त’ मरकर मिला सवाब तो क्या

ये सबक है-बाकी शेर सवाल से थे
ये एक जवाब है।
शुभकामनाएँ

दिगम्बर नासवा said...

मैं जो जुगनु हूँ गर तो क्या कम हूँ
कोई है गर जो आफ़ताब तो क्या ......

कमल का शेर है यह .... सच में किसी के कुछ भी होने से क्या फर्क पड़ता है ... इंसान जो खुद है उसपर ही गर्व करना चाहिए ......... खूबसूरत ग़ज़ल है .......

RAJNISH PARIHAR said...

आजकल ज़माना भी ऐसा ही है,जल्दी से गले लगना भी नहीं चाहिए...

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर।

मैं जो जुगनु हूँ गर तो क्या कम हूँ
कोई है गर जो आफ़ताब तो क्या

Alpana Verma said...

मैं जो जुगनु हूँ गर तो क्या कम हूँ
कोई है गर जो आफ़ताब तो क्या
bahut khuub!

gazal achchhee lagi.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

है ही क्या मुश्तेख़ाक से बढ़ कर
आदमी का है ये रुआब तो क्या

गज़ल के सभी शेर बढ़िया हैं।

BAD FAITH said...

लोग मुझको कहें ख़राब तो क्या
और मैं अच्छा हुआ जनाब तो क्या
आपका नाम सार्थक है. आपका मनस धवल है.
साधुवाद

रविंद्र "रवी" said...

जिंदगी लुटा दी जिसके लिए
मांगता है वाही हिसाब तो क्या
क्या खूब कही है आपने.

अमिताभ त्रिपाठी ’ अमित’ said...

मानोशी जी,
बढ़िया है।
मिलते ही मैं गले नहीं लगता
फिर किसी को लगा खराब तो क्या

अब गले लगने वालों को तो ख़राब लगेगा ही।
सुना था कि दूसरों की भावना का बहुत ख़याल रखते हैं आप। :)

अजय कुमार said...

मिलते ही मैं गले नहीं लगता
लोग मुझको कहें ख़राब तो क्या
laajawab sher

जसबीर कालरवि - हिन्दी राइटर्स गिल्ड said...

mai jo jugnu hoo ...

sachmuch aacha hai

जसबीर कालरवि - हिन्दी राइटर्स गिल्ड said...

mai jo jugnu hoo


bhut accha hai

अबयज़ ख़ान said...

मानसी जी... पहली बार आपके ब्लॉग से गुज़रा.. कम अल्फ़ाज़ों में कितना कुछ कह जाती हैं आप... अब अक्सर आया करूंगा... यू-ट्यूब का कलेक्शन काफ़ी अच्छा लगा...

संजीव गौतम said...

लोग मुझको कहें ख़राब तो क्या
और मैं अच्छा हुआ जनाब तो क्या
वाह वाह मानसी जी बहुत-बहुत अच्छा शेर हुआ है.
है ही क्या मुश्तेख़ाक से बढ़ कर
आदमी का है ये रुआब तो क्या
आ गया जो सलीका-ए-इश्क अब
’दोस्त’ मरकर मिला सवाब तो क्या
ये भी बहुत अच्छे शेर हैं.
दरअसल इस ग़ज़ल में कमाल 'तो क्या' रदीफ का है. काश ऐसी रदीफ मिल जाय तो कहने ही क्या. बहुत बधाई

गौतम राजऋषि said...

बेमिसाल ग़ज़ल...पहले तो इ-कविता पे पढ़ा और अब यहां।
रदीफ़ का जादू सर चढ़ कर बोल रहा है। मतला जानदार है और दूसरा शेर तो आह...
जुगनु वाले की तो सब तारीफ़ कर ही चुके हैं।
...और फिर मिलते ही मैं गले नहीं लगता का अंदाज़ तो हाय रेssssssss

और दीपावली खूब अच्छी मनी होगी उधर तो?

श्रद्धा जैन said...

waah kya kamaal ki gazal hui hai
bahut khoob kisi ko laga khraab to kya

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

हर शेर भले लगे...ग़ज़ल बहुत पसंद आई.

Indu lal said...

Badhai,

Kamal ki gazal hai. Har Sher Dil ko choo gayi.

Man bhaybhit tha, mil na jaaye sher,
Jab mila to bhala-bhala sa laga sher.

Aap se ye pahli mulakat achchi lagi. Kisi din fursat me yahan aayunga.

Ek bar Punnh badhai.