Sunday, October 25, 2009

ग़ज़ल- छोटी-छोटी सी ख़ुशियाँ हैं


बाबुल की कच्ची कलियाँ हैं
खुशियाँ रंगती फुलझड़ियाँ हैं

नई मिट्टी है मन सोंधा है
कटती-जुड़ती सी कड़ियाँ हैं

तेरा प्यार से गाल चिकुटना
छोटी-छोटी सी खुशियाँ हैं

बचपन के सपनों से अब तक
अम्मा की जगती अँखियाँ हैं

झकमक धूप जो आंगन खेले
थोड़े दिन की रंगरलियाँ हैं

रातों को तेरी यादों से
लुकछुप मिलती दो सखियाँ हैं

अब के इस मौसम में नन्हें
फूलों से महकी गलियाँ हैं

16 comments:

Udan Tashtari said...

ओए होए...गजब!! बहुत खूब मानोशी...अच्छा लिखा है.

ओम आर्य said...

बहुत ही खुबसूरत एहसास से भरी .......बेहद खुबसूरत !

mehek said...

नई मिट्टी है मन सोंधा है
कटती-जुड़ती सी कड़ियाँ हैं

तेरा प्यार से गाल चिकुटना
छोटी-छोटी सी खुशियाँ हैं

behad khubsurat

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
शुभकामनाएँ।

निर्मला कपिला said...

वाह मानसी लाजवाब हर शेर उम्दा ये छोटी छोती खुशियाँ ही तो जिन्दगी हैं शुभकामनायें

अर्कजेश Arkjesh said...

तेरा प्यार से गाल चिकुटना
छोटी-छोटी सी खुशियाँ हैं

बहुत खूब ।

नीरज गोस्वामी said...

बचपन के सपनों से अब तक
अम्मा की जगती अँखियाँ हैं

बहुत सुन्दर भावः...बेहतरीन रचना...
नीरज

Pawan Kumar said...

बहुत ही अच्छी रचना, बहुत मासूम ख्याल......छूते बहार में एक दिलकश रचना. आखिरी शेर में कुछ वज़न में फर्क है मगर कोई बात नहीं....

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

Singhsdm जी,

मक़्ता को बदल दिया है, दोस्त तख़ल्लुस हटा दिया है। शुक्रिया।

M VERMA said...

तेरा प्यार से गाल चिकुटना
छोटी-छोटी सी खुशियाँ हैं

यही छोटी छोटी खुशियाँ है जो स्मृतियों को घनीभूत करती जाती है और बडी खुशी के दरवाजे को और विस्तृत कर जाती है.
बहुत ही सार्थक और नायाब रचना

दिगम्बर नासवा said...

तेरा प्यार से गाल चिकुटना
छोटी-छोटी सी खुशियाँ हैं .......

इन छोटी छोटी खुशियों में ही तो जीवन है ....... बहुत अच्छा लिखा है ........

संजीव गौतम said...

मानसी जी
रातों को तेरी यादों से
लुकछुप मिलती दो सखियाँ हैं

अब के इस मौसम में नन्हें
फूलों से महकी गलियाँ हैं
बहुत प्यारे-प्यारे से शेर हुए हैं.बधाई हो

गौतम राजऋषि said...

आहाहा...ग़ज़ल की ये अनूठी बानगी...क्या बात है।
"तेरा प्यार से गाल चिकुटना"...अहा क्या मिस्रा है।

पूरी ग़ज़ल एकदम बेमिसाल, लाजवाब!

योगेन्द्र मौदगिल said...

भई वाह..... सुंदरतम..... वाह..

पूनम श्रीवास्तव said...

बचपन के सपनों से अब तक
अम्मा की जगती अँखियाँ हैं

झकमक धूप जो आंगन खेले
थोड़े दिन की रंगरलियाँ हैं

आपकी बेहद खूबसूरत गजल में से मुझे इन पंक्तियों ने बहुत प्रभावित किया।
शुभकामनायें।
पूनम

Apanatva said...

ek sunder rachana ke liye badhai .