अब पहले सी बात न होगी
वह जीवन सौग़ात न होगी
खिलना खिल-खिल हँसना, झिलमिल
तारों के संग आँख-मिचौली
दौड़म भागी, खींचातानी
लड़ना रोना, हँसी-ठिठोली
सच्चे-झूठे किस्सों के संग
दादी की वह रात न होगी
वह जीवन- सौग़ात न होगी
खुले आसमां के नीचे होती थी
सरगो़शी में बातें
सन्नाटा पी कर बेसुध जब
हो जाती थी बेकल रातें
धीमे-धीमे जलती थी जो,
अपने आप सुलगती थी जो
फिर से आग जला भी लें तो
अब पहले सी बात न होगी
वह जीवन सौग़ात न होगी
अटक गये कुछ पल सूई पर,
समय ठगा सा टंगा रह गया
जीवन लाठी टेक चला फिर
हिचक, ठिठक के खड़ा रह गया
बूढ़ी झुर्री टेढ़ी काया
सर पर रख कर भारी टुकनी
संझा सूरज की देहरी पर
पहले सी बरसात न होगी
वह जीवन सौग़ात न होगी
वह जीवन सौग़ात न होगी
खिलना खिल-खिल हँसना, झिलमिल
तारों के संग आँख-मिचौली
दौड़म भागी, खींचातानी
लड़ना रोना, हँसी-ठिठोली
सच्चे-झूठे किस्सों के संग
दादी की वह रात न होगी
वह जीवन- सौग़ात न होगी
खुले आसमां के नीचे होती थी
सरगो़शी में बातें
सन्नाटा पी कर बेसुध जब
हो जाती थी बेकल रातें
धीमे-धीमे जलती थी जो,
अपने आप सुलगती थी जो
फिर से आग जला भी लें तो
अब पहले सी बात न होगी
वह जीवन सौग़ात न होगी
अटक गये कुछ पल सूई पर,
समय ठगा सा टंगा रह गया
जीवन लाठी टेक चला फिर
हिचक, ठिठक के खड़ा रह गया
बूढ़ी झुर्री टेढ़ी काया
सर पर रख कर भारी टुकनी
संझा सूरज की देहरी पर
पहले सी बरसात न होगी
वह जीवन सौग़ात न होगी
19 comments:
बहुत अच्छी रचना
बहुत -२ आभार
Sundar Abhivyakti.
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क्या आपने लोहे को तैरते देखा है?
पुरुषों के श्रेष्ठता के 'जींस' से कैसे निपटे नारी?
उम्र की वो सौग़ात न होगी...
बड़े दिनों बाद आपसे मुलाकात हो रही है। कैसी हैं आप?
ये कविता पहले भी लगाये थी न आपने?
आने वाले नव-वर्ष की ढ़ेरों बधाईयां और शुभकामनायें....
अटक गये कुछ पल सूई पर,
समय ठगा सा टंगा रह गया
जीवन लाठी टेक के चलते-चलते
ठिठक के खड़ा रह गया
बूढ़ी झुर्री टेढ़ी काया
सर पर रख कर भारी टुकनी
सांझ के सूरज की देहरी पर
पहले सी बरसात न होगी
उम्र की वो सौग़ात न होग
यूँ तो पूरी रच्ना ही बहुत अच्छी लगी मगर ये पँक्तियाँ दिल को छू गयी। सुन्दर रचना के लिये बधाई
सभी का शुक्रिया।
@ गौतम- हाँ, काफ़ी दिनों बाद तुम्हें यहाँ देखा, और मैं ख़ुद भी बिज़ी रही। ये कविता लिखते ही पोस्ट की है, बिल्कुल ताज़ा- ताज़ा :-) ये कविता किसी और कविता की याद दिलाती हो तो बताना।
बहुत सुन्दर रचना है।बधाई स्वीकारें।
सर पर रख कर भारी टुकनी
सांझ के सूरज की देहरी पर
पहले सी बरसात न होगी
उम्र की वो सौग़ात न होगी
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
उम्र की वो सौग़ात न होगी
-यही जीवन का नियम है...
एक सुन्दर रचना के लिए बधाई!
अब पहले सी बात ना होगी ...उम्र की सौगात ना होगी ...
नहीं होगी कुछ और नयी बात हो जायेगी ...बढती उम्र की सौगात भी कम निराली नहीं ...!!
सच्चे-झूठे किस्सों के संग
दादी की वह रात न होगी
उम्र की वह सौग़ात न होगी ...
जीवन में ऐसा समय आता है जब सब कुछ जुड़ा खो जाता है पर नया जुड़ जाता है .......... अच्छी रचना है ..........
नहीं, पूरी कविता तो नहीं...मगर मुखड़ा कुछ याद दिला रहा है। मुझे लगा कि आपकी ही लिखी ग़ज़ल का शेर था कोई। जैसे ही याद आता है, बताता हूं।
खुले आसमां के नीचे होती थी
सरगो़शी में बातें
सन्नाटा पी कर बेसुध जब
हो जाती थी बेकल रातें
धीमे-धीमे जलती थी जो,
बिना हवा सुलगती थी जो
फिर से आग जला भी लें गर
अब पहले सी बात न होगी
उम्र की वह सौग़ात न होगी
लयबद्ध सुंदर अभिव्यक्ति
...अचानक से याद आया ये बशीर बद्र का मतला। यूं आपके मुखड़े से भिन्न है, लेकिन शायद काफ़िया मेल खाने से सुना-सुना लग रहा था। मुझे तो शुरु में लगा कि आपका ही शेर है
"कहाँ आँसुओं की ये सौगात होगी
नए लोग होंगे नयी बात होगी "
shabdo ki kushnuma barish to hogi
jajbato ki yah sunder kavita to hogi
shabdo ki kushnuma barish to hogi
jajbato ki yah sunder kavita to hogi
मानोशी जी,
काफ़ी दिनों के बाद आपका गीत पढ़ना अच्छा लगा--बहुत ही प्यारा गीत सुन्दर भावों के साथ ।
पूनम
"अटक गये कुछ पल सूई पर,
समय ठगा सा टंगा रह गया
जीवन लाठी टेक के चलते-चलते
ठिठक के खड़ा रह गया
बूढ़ी झुर्री टेढ़ी काया
सर पर रख कर भारी टुकनी
सांझ के सूरज की देहरी पर
पहले सी बरसात न होगी
उम्र की वह सौग़ात न होगी"
कितना सुन्दर रचना सौंदर्य ! आभार कविता के लिए | नव-वर्ष की शुभकामनाएँ |
मानसी, आभी कविता पढ़ी..बिंब बन गया..
कई स्तरों पर पैर रख कर बहुत सुंदर ढ़ँग से खड़ी है यह कविता ..पर सब भावों को बाँधती हुई..बधाई।
नववर्ष की बहुत सी शुभकामनायें
शैलजा
आश्चर्य चकित हूँ...कहाँ से लेकर आती हैं आप ऐसे बेजोड़ शब्द और भाव...सच्चाई से रूबरू करवाती आपकी ये रचना विलक्षण है...
नीरज
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