एक बार कह लेते प्रियतम
घना कुहासा
धुँआ-धुँआ सा
छँट जाता
घुप्प आसमां
बँधा-बँधा सा
कट जाता
कोरों पे ठहरी दो बूँदे
बह जाती चुपके से अंतिम
एक बार कह लेते प्रियतम
कही नहीं पर
कहीं जो बातें
मूक आभास
दो प्राणों के
गुँथे हवा में
कुछ निश्वास
अधरों पर कुछ काँपते से स्वर
भी पा जाते मुक्ति चिरतम
एक बार कह लेते प्रियतम
मौन स्वीकृति
बंद पलकों में
शर्माती
नये स्वप्न के
तानेबाने
सुलझाती
आशाओं के इंद्रधनुष से
रंग-बिरंग हो सज जाता तम
एक बार कह लेते प्रियतम
धुँआ-धुँआ सा
छँट जाता
घुप्प आसमां
बँधा-बँधा सा
कट जाता
कोरों पे ठहरी दो बूँदे
बह जाती चुपके से अंतिम
एक बार कह लेते प्रियतम
कही नहीं पर
कहीं जो बातें
मूक आभास
दो प्राणों के
गुँथे हवा में
कुछ निश्वास
अधरों पर कुछ काँपते से स्वर
भी पा जाते मुक्ति चिरतम
एक बार कह लेते प्रियतम
मौन स्वीकृति
बंद पलकों में
शर्माती
नये स्वप्न के
तानेबाने
सुलझाती
आशाओं के इंद्रधनुष से
रंग-बिरंग हो सज जाता तम
एक बार कह लेते प्रियतम
9 comments:
बढ़िया आगाज है जी।
बधाई!
किस्सी पुराने किले या huge historical structureे में घुमने जैसी... सुखद feeling आई ...इन शब्दों को पढ़ते े हुए..लिखती रहना
इस खुबसूरत रचना के लिए
बहुत -२ आभार
इस खुबसूरत रचना के लिए
बहुत -२ आभार
बधाई ! कविता बहुत अच्छी लगी।
हिन्दी ब्लॉग के क्षेत्र मे मैने नया नया कदम रखा है ।मेरे ब्लोग़ “संहिता“ पर जरूर पधारे । आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है ।
- संहिता पेंडसे ,भोपाल.
प्यारी कविता।
कही नहीं पर
कहीं जो बातें
मूक आभास
दो प्राणों के
गुँथे हवा में
कुछ निश्वास
अधरों पर कुछ काँपते से स्वर
भी पा जाते मुक्ति चिरतम
एक बार कह लेते प्रियतम
मौन स्वीकृति
बंद पलकों में
शर्माती
नये स्वप्न के
तानेबाने
सुलझाती
आशाओं के इंद्रधनुष से
रंग-बिरंग हो सज जाता तम
एक बार कह लेते प्रियतम
bahut pyaare ehsaas
meethi si kavita
"अधरों पर कुछ काँपते से स्वर
भी पा जाते मुक्ति चिरतम"
खूब सुंदर उन्वान है मानोशी गीत का!
आशाओं के इंद्रधनुष से
रंग-बिरंग हो सज जाता तम
इन सुन्दर पंक्तियों की प्रशंशा के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं...कमाल की रचना है ये आपकी...वाह...
नीरज
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