Wednesday, January 06, 2010

प्रिय क्या हो जो हम बिछड़ें तो



प्रिय, क्या हो जो हम बिछड़ें तो ?

बीतें कई बरस तब आ कर
कोरों में चुपचाप मिलूँगी,
अनायास गहरे सागर से
पानी बन झरना झर लूँगी,
लाली बन के शाम रँगूंगी
रात सपन बन- बन बिखरूँगी,
प्रिय क्या हो जो हम बिछड़ें तो|

सदी बाद अपनी उंगली से
लिपटा जो इक क्षण पाओगे,
जिस पल थाम हथेली मैंने
कुछ धीरे से चूम लिया था,
अपने हाथों में पढ़ लोगे
उन बंधन के स्मृति चिह्नों को
उन स्मृतियों को संग मैं बाँधे
हाथ थाम कर साथ चलूँगी
प्रिय, क्या हो जो हम बिछड़ें तो|

बहुत दिनों के बाद कभी तुम
इसी राह पर चलते होगे,
पतझड़ होगा, तेज़ हवा में
सूखे पत्ते गिरते होंगे,
मेरा नाम लिखा इक पत्ता
बाँहों से आकर लिपटेगा
ख़ुशबू मेरी जान सकोगे?
महक बनी मैं संग रहूँगी,
प्रिय क्या हो जो हम बिछड़ें तो?

कई सालों के बाद कभी तुम
चाँद ढूँढते जगते होगे
आधा चंदा पूरा होने
रातें-रातें गिनते होगे
फिर कभी कोई तारा जब
आसमान से टूट गिरेगा
मेरे छोटे से सपनों के
आंगन में चुपचाप जुड़ेगा
मैं मुट्ठी में चांद औ’ तारा
दोनों को संभाल रखूँगी।
प्रिय क्या हो जो हम बिछड़ें तो?

13 comments:

निर्मला कपिला said...

बहुत सुन्दर रचना है शुभकामनायें

vandana gupta said...

waah ........bahut sundar bhav.

श्रद्धा जैन said...

कई सालों के बाद कभी तुम
आधे चाँद को ढूँढते होगे
आधा चंदा पूरा होने
रातें रातें गिनते होगे
और कभी कोई तारा जब
आसमान से टूट गिरेगा
मेरे छोटे से सपनों के
आंगन में चुपके से जुड़ेगा
मैं मुट्ठी में चाँद औ’ तारा
दोनों को संभाल रखूँगी
प्रिय क्या हो जो हम बिछड़ें तो


bahut bhavuk rachna

abcd said...

अथाह प्रेम का कितना 'GRACEFUL' expression !!
" ऐसी कविता हो जो आप लिखे तो " , इसलिए लिखती रहना ......

Udan Tashtari said...

सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति!!

वाणी गीत said...

रहे ना रहे हम ....स्मृतियों , सूखे पत्तों , बहते झरनों , टूटते तारों में अक्श नजर आता ही रहेगा ...प्रिय..जो हम बिछड़े तो ...
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ....!!

रविकांत पाण्डेय said...

भावों के सुंदर संयोजन ने मन मोह लिया। बहुत सुंदर एवं जीवंत रचना।

नीरज गोस्वामी said...

मेरे नाम का भी कोई पत्ता
बाँह से आकर जो लिपटेगा
मेरी खुश्बू जान तो लोगे
मैं खुश्बू बन संग रहूँगी

वाह मानोशी जी वाह....शब्द और भाव का अनूठा संगम है ये आपकी रचना...वाह...भाव विभोर कर दिया आपने.
नीरज

sanjeev kuralia said...

vah.. bahut sunder bhav hain....abhaar

Pawan Kumar said...

मानसी जी
हमेशा की तरह फिर एक बार उसी पेस पर आपने कविता लिखी है...
एक ही शब्द है आपकी रचना के लिए सटीक है..वो है "लाजवाब"

Pawan Kumar said...

मानसी जी
हमेशा की तरह फिर एक बार उसी पेस पर आपने कविता लिखी है...
एक ही शब्द है आपकी रचना के लिए सटीक है..वो है "लाजवाब"

Razi Shahab said...

कई सालों के बाद कभी तुम
आधे चाँद को ढूँढते होगे
आधा चंदा पूरा होने
रातें रातें गिनते होगे
और कभी कोई तारा जब
आसमान से टूट गिरेगा
मेरे छोटे से सपनों के
आंगन में चुपके से जुड़ेगा
मैं मुट्ठी में चाँद औ’ तारा
दोनों को संभाल रखूँगी
प्रिय क्या हो जो हम बिछड़ें तो
sundar rachna

nagarjuna said...

ati sunder!!!! Waah Waah...