दो अश्रु
एक अश्रु मेरा
एक तुम्हारा
ठहर कर कोरों पर
कर रहे प्रतीक्षा
बहने की
एक साथ
रात
पिघलती जाती है
क़तरा क़तरा
सोना बन कर निखरने को,
कसमसाती है
ज़र्रा ज़र्रा
फूल बन कर खिलने को,
हर रोज़
रात
दो बातें
दो बातें,
एक चुप
एक मौन
कर रहे इंतज़ार
एक कहानी बनने की
अजनबी
चलो फिर बन जायें अजनबी
एक नये अनजाने रिश्ते में
बँध जायें फिर,
नया जन्म लेने को
सप्तऋषि
जुड़ते हैं रोज़
कई कई सितारे
बनाने एक सप्तऋषि
हर रात
हमारे बिछड़ने के बाद
13 comments:
बहुत सुन्दर कोमल प्रस्तुति!! बधाई!
ख़ूबसूरत ब्लॉग के कलेवर में ख़ूबसूरत रचनाएं।
एक अश्रु मेरा
एक तुम्हारा
ठहर कर कोरों पर
कर रहे प्रतीक्षा
बहने की
एक सा
जुड़ते हैं रोज़
कई कई सितारे
बनाने एक सप्तऋषि
हर रात
हमारे बिछड़ने के बाद
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती है बधाई
कमाल की हैं सब क्षणिकाएँ ......... दो बातें और अजनबी तो बेमिसाल लगीं .........
मानसी जी
बेहतरीन रचना
पढ़ कर मज़ा आगया
बधाई कुबूल करें !
सभी शब्द चित्र बहुत ही मखमली हैं!
अच्छी क्षणिकाएँ हैं. विचारशील.
आप ने मेरा उत्साहवर्धन किया, इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद। योग्य़ जन द्वारा प्रशंसित होना सुखदायी होता है।
इन कविताओं को कया कहें! जैसे क्षणों को, अनुभूतियों को फ्रेम दर फ्रेम सँजो दिया गया हो! जैसे कोई उम्दा चित्रकार, फोटोग्रॉफर एकदम सही समय पर क्लिक कर दे और फ्लैश के प्रकाश तले क्षण दब जाँय...
अच्छी लगीं आपकी ये क्षणिकायें।
चलो फिर बन जायें अजनबी
एक नये अनजाने रिश्ते में
बँध जायें फिर,
नया जन्म लेने को
एक अश्रु मेरा
एक तुम्हारा
ठहर कर कोरों पर
कर रहे प्रतीक्षा
बहने की
एक साथ
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
बधाई!
एक अश्रु मेरा
एक तुम्हारा
ठहर कर कोरों पर
कर रहे प्रतीक्षा
बहने की
एक सा
acchi rachna......kam shabdon me bahut kuch kah diya aapne.....
वाह! आंसुओं में भी टीम भावना होती है। वाह!
मानसी जी,
बहुत ही खूबसूरत एवम कोमल भावनाओं से युक्त ये
क्षणिकायें मन को छू गयीं।
पूनम
bahut samvedansheel rachanayen hain Manasi.
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