Thursday, November 18, 2010

आओ साथी जी लेते हैं

उदीयमान गीतकारों में मुझे अमिताभ त्रिपाठी ’अमित’ के गीत अच्छे लगते हैं। इलाहाबाद में रह रहे, अमित जी कई विधाओं में पारंगत हैं मगर उनके गीतों में जो सरसता और सहजता होती है, वह आजकल के गीतकारों में बहुधा नहीं पाई जाती है।  आप उनके ब्लाग रचनाधर्मिता  पर जा कर उनकी अन्य रचनायें पढ़ सकते हैं।आज उनका एक गीत प्रेषित कर रही हूँ।



आओ साथी जी लेते हैं
विष हो  या अमृत हो जीवन
सहज भाव से पी लेते हैं

सघन कंटकों भरी डगर है
हर प्रवाह के साथ भँवर है
आगे हैं संकट अनेक, पर
पीछे हटना भी दुष्कर है।
विघ्नों के इन काँटों से ही
घाव हृदय के सी लेते हैं
आओ साथी जी लेते है

नियति हमारा सबकुछ लूटे
मन में बसा घरौंदा टूटे
जग विरुद्ध हो हमसे लेकिन
जो पकड़ा वो हाथ न छूटे
कठिन बहुत पर नहीं असम्भव
इतनी शपथ अभी लेते हैं
आओ साथी जी लेते है

श्वासों के अंतिम प्रवास तक
जलती-बुझती हुई आस तक
विलय-विसर्जन के क्षण कितने
पूर्णतृप्ति-अनबुझी प्यास तक
बड़वानल ही यदि यथेष्ट है
फिर हम राह वही लेते हैं
आओ साथी जी लेते हैं

--अमिताभ त्रिपाठी ’अमित’

11 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

सरलता, तरलता, प्रवाह, उछाह, सब पिरो लाये हैं। बहुत ही अच्छी कृति।

सु-मन (Suman Kapoor) said...

बहुत सुन्दर......गहरी अभिव्यक्ति..........

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

खूबसूरत प्रस्तुति

vandana gupta said...

बेह्द उम्दाऽउर गहन प्रस्तुति…………।

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

sundar rachna ..gehrai ko liye huve..

अनुपमा पाठक said...

सहजता के साथ बहता हुआ सा गीत !!!!
सुन्दर!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

यह रचना तो मुझे इतनी अच्छी लगी कि आज इसे ही चर्चा मंच का हैडिंग बना डाला!

Asha Lata Saxena said...

बहुत सुन्दः भाव और शब्द चयन |बधाई
आशा

ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι said...

सघन कंटकों भरी डगर है,हर प्रवाह के साथ भवर है।

सुन्दर अभिव्यक्ति, बधाई।

Manav Mehta 'मन' said...

आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ........

Unknown said...

गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई !
http://hamarbilaspur.blogspot.com/2011/01/blog-post_5712.html