शेष समय इतना करना|
सपनों का आकाश बड़ा था,
आँखों मुक्ताहार जड़ा था,
चुन-चुन मोती बड़े जतन से
संग-संग हाथों महल गढ़ा था,
स्वप्न नहीं अब एक कहानी
बन मेरी आंखों झरना |
शेष समय इतना करना |
एक स्वप्न था, अंक तुम्हारे
अपना सर रख कर सो जाऊँ,
मांग सितारे, माथे सूरज
पहन जगत में मैं इतराऊँ,
और नहीं तो उस अंतिम क्षण
अपने अश्रु मांग भरना |
शेष समय इतना करना|
जितना हम संग राह चले हैं,
सुख-दुख, सपने संग पले हैं,
बाधाओं, झंझावातों से
हाथ पकड़ कर हम निकले हैं,
अब एकल पथ जाना मुझको
तुम ही मेरा भय हरना |
शेष समय इतना करना |
11 comments:
हृदयस्पर्शी रचना!
shabd vyanjana bahut asardar aur sunder mala si piroyi hui hai.
bahut sunder rachna.
अच्छी पुकार है।
यही तो भारतीय नारी की गरिमा है।
वाह, प्रेम की अद्भुत कृति। बहुत ही सुन्दर।
sundar rachna..
भावपूर्ण!
बहुत अच्छी लगी.
मानसी जी.....
सपनों का आकाश बड़ा था,
आँखों मुक्ताहार जड़ा था,
चुन-चुन मोती बड़े जतन से
संग-संग हाथों महल गढ़ा था,
स्वप्न नहीं अब एक कहानी
बन मेरी आंखों झरना प्रिय ।
शेष समय इतना करना प्रिय ।
बेहद खूबसूरत मर्मस्पर्शी रचना.....!!!!
"kanupriya "-Dharmveer Bharti ki yaad aati hai tumhe padh kar.
bhawbhini......
बहुत सुन्दर भावों को संजोया है ..सुन्दर और मर्मस्पर्शी रचना
स्वप्न नहीं अब एक कहानी
बन मेरी आंखों झरना प्रिय ।
बहुत सुन्दर भाव...
सुन्दर गीत...
सादर बधाई....
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