जीवन का हर पल है तुम से, तुमको ही अर्पित जीवन हूँ
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रोम-रोम में कस्तूरी ज्यों, आते-जाते
श्वासों में तुम,
कविता के उर के स्पंदन हो, बन कर स्वर सब गीतों में तुम ,
संझा दीपक जलता तुम संग, रैना बाती तुम संग बुझती,
सुबह भोर की किरणें भी आँखों से सपन तुम्हारे चुनतीं,
हृदयांगन में तुलसी बन कर महकूँ मैं चिर संग तुम्हारे,
सुख में हो दुख में हो चाहे, जो माँगो वह अपनापन हूँ।
चंदा बिन आभा के जैसे, यूँ मैं तुम्हारी स्मृति बिन हूँ,
वीणा हो झंकार रहित जब, वैसे प्राणहीन जीवन हूँ ,
लहरें बिन सागर कब सागर, कब छाया बिन तरुवर होता,
केशव-मन्दिर में कब कोई राधा बिन चरणों को धोता ,
कोयल जब हो कूक रहित औ’ मधुबन फूलों से वंचित हो,
तुम्हारे संबल बिन जैसे नीरस जीवन, सूनापन हूँ।
मेरे नयनों में काजल बन चंचलता को बाँध लिया कब?
अश्रु धार में धुलकर पावन पूजा का यह स्थान लिया कब?
नियति डोर में बँध कर जाने कितने रंग के ताने-बाने,
आड़े-तिरछे स्वप्न गढ़े
फिर राह चले हम अदृश अजाने,
तेजस्मय वह रूप तुम्हारा अंकित है मेरे मानस पर
बसा आत्मन कभी सत्य हो, मन ही मन नीरव याचन हूँ।
जीवन का हर पल है तुम से, तुम को ही अर्पित जीवन हूँ
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9 comments:
समर्पण और प्रेम की अद्भुत अभिव्यक्ति।
बढि़या गीत। इसे पढकर नीरज जी के प्रेमगीतों का स्मरण हो आया।
prem se partipurn rachna...
बहुत मार्मिक और प्रभावशाली पोस्ट!! तस्वीर और कविता एक दूसरे का पूरक हैं,,,,,,,,,,,,,,,,,!
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार के चर्चा मंच की जी रही है!
यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
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bahut hi khubsurti se aapne sabdon ko tarasha hai,,,
jai hind jai bharat
बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति।
"केशव-मन्दिर में कब कोई राधा बिन चरणों को धोता"
2 arth aaye man me ise padh kar-
1)bina raadhaji ke,krishna mandir kahi nahi hota.
2) har-ek jo keshav ke charan dhota hai...raadha ji ka hi roop hai.
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itna jabardast pravah hai vicharo(bhavnao),shabdo,abhivyakti ka ki --maatr 3 para hone ke kaaran,JEE NAHI BHARAAYA.aur likho.....
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