मानसी
Tuesday, April 16, 2013
फागुनी क्षणिकायें
१.
महुआ की गंध,
झूमे गगन,
गली-गली पलाश का आलिंगन,
सरसों मचल कर
चूमे धरा,
प्रीतोत्सव मना रहा बसंत।
२.
सोन रंग
भर पिचकारी,
भोर बाला संग
खेले सूरज
होली।
३.
गुज़रता है बसंत
बर्फ़ की पगडंडियों के बीच से,
मंज़िल तलाशने अपनी
गुनगुनी रातों तक।
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