Thursday, July 23, 2015

मां तेरी यादों के आगे



मां तेरी यादों के आगे
जग के सारे बंधन झूठे|


जिस उँगली को हाथों थामे
जीवन पथ पर चलना सीखा,
प्राण ऋणी हैं, जिस अमृत के
उस अमृत बिन जीवन फीका,
याद नहीं करने को कहते
बंधु- बांधव, हित में मेरे,
किन्तु भूलकर हर्ष मनाऊँ 
इस से अच्छा जीवन छूटे।


बहुत कठिन है सूखे मरुथल
में पानी बिन प्यासे चलना,
मरीचिका से आस लगाये
अपने को ही खुद से छलना, 
मेरा हृदय बना है तेरी 
स्मृतियों से सज्जित इक आंगन,
जैसे चौबारा तुलसी का 
पूजा का यह क्रम ना टूटे


मां तेरी यादों के आगे
जग के सारे बंधन झूठे।

-- मानोशी

4 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (25-07-2015) को "भोर हो गई ..." {चर्चा अंक-2047} पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

कालीपद "प्रसाद" said...

सुन्दर

Dr.NISHA MAHARANA said...

marmik ma bin suna lagta jag sara ...

संजय भास्‍कर said...

मर्मस्पर्शी पंक्तियाँ बहुत दिनो के बाद आपको लिखते देखकर खुशी हुई।