Sunday, March 20, 2016

तब और आज


तुम्हारा खिलखिलाना
हँसते रहना,
बात-बात पर
मेरी बातों का
भँवर सा जवाब देकर 
शरारत से यूँ देखना कि
मैं उस भँवर में डूब जाता,
एक मिनट की गंभीर चुप्पी
के बाद खुद ही को टटोल कर
हँस पड़ता,
और तुम्हारी आँखों की शरारत
दुगुनी हो जाती,
जैसे कुछ पा लिया हो तुमने
और मेरी इच्छा होती,
कि खींच लूँ तुम्हें ,
एक हल्की चपत लगा दूँ गालों पर
और प्यार से भर लूँ बाँहों में
पर कर नहीं पाया कभी,
...
आज तुम चुप हो
आज मैं तोड़ नहीं पा रहा तुम्हारी चुप्पी
आज भी मन है
कि भर लूँ तुम्हें बाँहों में
खींच लूँ अपने पास,
पर कर नहीं पाता
फर्क बस इतना है कि
तब तुम मेरे पास थी बहुत
आज, बहुत दूर हो कहीं...
----मानोशी

1 comment:

Vaanbhatt said...

सुंदर रचना...