Tuesday, March 09, 2021

मन कहाँ को चल चला तू

 मन कहाँ को चल चला तू, 


छोड़ आया बाग़ सारे

आसमाँ भर के सितारे

चाँद हाथों से फिसल कर 

गिर गया सागर किनारे 

ढूँढता क्या अब भला तू 

मन कहाँ को चल चला तू 


बहुत देखे प्रेम-बंधन, 

मोह में फँस झुलसता तन,

दौड़ता मन दिग्भ्रमित सा 

और फिर ढल गया यौवन|

अब गिने क्यों कब जला तू ,

मन कहाँ को चल चला तू||


रात हो जब बहुत काली

फूटती तब भोर-लाली 

आस जब मुरझा रही हो, 

 विहँस आती बौर डाली 

हारता क्यों हौसला तू ,

मन कहाँ को चल चला तू ||

==मानोशी 


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