Friday, October 07, 2005

पहला लेख ब्लाग पर -२ (ज्योतिष)










भाग -१ के लिये यहां देखें:

भाग २

अब आगे चलते हैं , कुछ और बेसिक्स:

हम बहुत ज़्यादा गहराई में नहीं जायेंगे, मगर आधारभूत कुछ बातों को समझेंगे और जन्म पत्रिका देखने के एक दो गुर सीखेंगे।

हम यहां वैदिक ज्योतिष की बात कर रहे हैं। पाश्चात्य ज्योतिष में ट्रापिकल समय या सूर्य के सामान्य गति को जबकि वैदिक ज्योतिष में ग्रहों के साइडेरिअल स्थान ( जो नक्षत्र से संपर्कित है) को काम में लाया जाता है। वैदिक ज्योतिष की गणनायें इसीलिये ज़्यादा सही मानी जाती हैं। ट्रापिकल और साइडेरिअल वर्ष के फ़र्क को आयनाम्श (ayanamsa) कह्ते हैं । भारत में लाहिडी आयनाम्श के द्वारा अधिकतर गणनायें की जाती है मगर कई ज्योतिषी कुंडली बनाने में अन्य आयनांश का पालन करते हैं। ( मैं खुद कृष्णा आयनांश की सहायता लेती हूं जो बहुप्रचलित लाहिडी आयनांश से ५६ मिनट कम है) । वैसे आजकल सब काम साफ़्टवेयर करते हैं। उस साफ़्टवेयर में पहले से ही आयनाम्श तय होते हैं या पूछे जाते हैं कि आप कौन सा आयनाम्श काम में लाना पसंद करेंगे। लाहिडी सबसे प्रचलित है बहुमत से सही भी माना जाता है। इस बारे में और अलग अलग आयनाम्शों के प्रयोग करने से क्या फ़र्क हो जाता है...हम बाद में चर्चा कर सकते हैं...

अभी बेसिक्स की ओर चलें....

अब जन्म पत्रिका में घर या स्थान तो तय हो गये। लग्न, जैसा कि आप देख सकते हैं ( ये जो ऊपर चित्र है, उत्तर भारतीय पद्धति से बनाई गयी कुंडली है, दक्षिण भारत में इसी कुंडली को अलग तरह से बनाया जाता है।), में एक अंक लिखा है, ८ । ये ८ क्या है? हर घर एक राशि के अधीन होता है और हर राशि के लिये एक अंक निर्धारित है। सिर्फ़ यही नहीं एक ग्रह विशेष उस राशि का स्वामि होता है। हर राशि ३० डिग्री की होता है और १२ रशियां हैं ( हर एक राशि एक घर ले लिये) तो ३६० डिग्री।


ऐसे देखे: ऊपर चित्र में, लग्न ( प्रथम स्थान या पहला घर) ८ के अंतर्गत आता है, यानि कि वृश्चिक ( क्योंकि वृश्चिक का अंक है ८) , तो उस व्यक्ति का लग्न हुआ वृश्चिक अब वृश्चिक का स्वामि कौन? मंगल। अत: इस व्यक्ति का ल्ग्नाधिपति हुआ मंगल। तो हम कह सकते हैं कि इस व्यक्ति में मंगल के गुण दिखायी देंगे, शायद गर्म दिमाग हो, काफ़ी साहसी हो (या दुस्साहसी)....

अब ये अंक देखें...

१. मेष--अधिपति है मंगल
२. वृषभ-- शुक्र
३. मिथुन-- बुध
४. कर्कट-- चंद्रमा
५. सिंह-- सूर्य
६. कन्या-- बुध
७. तुला--शुक्र
८. वृश्चिक-- मंगल
९. धनु--बृहस्पति
१०. मकर-- शनि
११. कुंभ-- शनि
१२. मीन--अधिपति है बृहस्पति

लग्नाधिपति तो मालूम हुआ, अब आपकी राशि क्या है? जी, राशि देखने के लिये देखें कि आपका चन्द्रमा कौन से अंक वाले घर में है? इस चित्र में चंद्रमा ११ में है अर्थात कुंभ। तो उस व्यक्ति की राशि हुई कुंभ और व्यक्ति का व्यवहार, स्वभाव शनि (क्योंकि शनि कुंभ का अधिपति है) के गुणों के प्रभाव में रहेगा। लग्न और राशि व्यक्ति विशेष की शारिरिक रचना व मानसिक रचना या सोच दर्शाने में सहायता करती है।

चलिये अब आपको एक लिंक दे दूं जहां आप अपनी कुंडली बना सकते हैं और अपना लग्न और राशि पता कर सकते हैं। आपको चाहिये आपका जन्म स्थान, जन्म समय, और जन्म तिथि।
पहले तो आप इस लिंक से अपने जन्म स्थान का lattitude/longitude पता कर सकते हैं। फिर इस लिंक पर जा कर अपनी कुंडली बनाइये...और देखिये आपका लग्न क्या है और आपकी राशि क्या है और आपके कौन से स्थान (या घर) में कौन सा ग्रह स्थित है। (नोट: अगर आप भारत में पैदा हुये हैं तो ५ घंटे ३० मिनट पूर्व का टाईम ज़ोन होगा।)

अगले भाग में आपकी राशि की स्वभावगत विशेषतायें ( आप देखेंगे कि लग्न और राशि दोनों के स्वभाव का आप पर मिला जुला प्रभाव हो सकता है)...


क्रमश: ( प्रकाशन का कोई निश्चित दिन तय नहीं...)

2 comments:

अनूप शुक्ल said...

राशि की स्वभावगत विशेषतायें देखने के इन्तजार
में हैं हम.सारे अच्छे-अच्छे गुण नोट कर लिये हैं.

Anonymous said...

मानोशी जी, ज्योतिष संबंधी आलेख में आप जिस क्रम में आलेख को आगे बढा रही हॆं, निश्चित ही वह पाठकों को ज्योतिष के संबंध में, उसे समझने में सहायक सिद्ध होगा. रवि जी ने श्रीमाली जी के संबंध में जो बात लिखी हॆ, वह सही हॆ. मनुष्य का लालच ही इस सबका कारण बनता हॆ. मेरा भी पत्राचार हुआ था उनसे उनके जीवनकाल में. लेकिन उनके शिष्यों ने ही जबाव दिये. खॆर यह एक अलग विषय हॆ... आशा हॆ शीघ्र ही इसका अगला भाग भी पाठकों तक पहुंचाने का कष्ट करेंगी. सादर,
-दुर्गेश गुप्त "राज"
संपादक : www.anurodh.com
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