Friday, November 18, 2005

आखिरकार भक्तों की गुहार सुनी गयी

इस कथा के सभी पात्र, घटना , स्थान काल्पनिक हैं. इस घटनाक्रम का किसी भी जीवित व्यक्ति से कोई सरोकार नहीं है...वगैरह वगैरह

त्रस्त चिकग नारद पर बिगडे नज़र आये, देवी प्रति पर भी ज़रा-ज़रा खफ़ा......इधर शुकुल देव अति प्रसन्न। शुकुल देव अमरीश पुरी अंदाज़ में बोले,"हा हा हा, फ़ुर आज खुश हुआ" और फिर प्रेम चोपडा स्टाइल में" मेरा नाम शुकुल है, मेरा कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता"। त्रस्त चिट्ठाकार गणों ने मीटिंग बुलाई, किया क्या जाये। और कई घंटों की मीटिंग में सभी विषयों पर बात की गयी। आखिर शुकुल देव इतना अच्छा कैसे लिखते हैं? और तो और हर चिटठे पर टिप्पणी भी ज़ोरदार। लिखते तो हम सभी अच्छा हैं पर हमारे साथ ऐसा क्या है कि हम वो नहीं कर पाते जो शुकुल देव कर जाते है। काफ़ी विचार विमर्श के बाद शुकुल देव के भक्त जीत देव जो ज़रा गुस्से में लग रहे थे, ( क्योंकि उन्हीं को सबसे ज़्यादा सताया था शुकुल देव ने) ने कहा,"हम तो बहुत लिखते हैं मगर थोडी ज़्यादा देर पी.सी पर रहें तो पास से आवाज़ आती है-खाना खाने आ जाओ, ठंडा हो जायेगा। अभी आपका पी.सी. आफ़ कर दूं क्या?-और हमें सब छोड, खाने की मेज़ पर होना पडता है। बस इसी लिये शुकुल देव राज कर रहे हैं। वरना हम भी आदमी थे काम के..." और मीटिंग में चिकग ने निर्णय लिया कि एक बार और प्रभु के पास जाया जाये, और उन्हें बात खुल कर समझाई जाये।

चिकग पहुंचे प्रभु के पास," प्रभूऊऊऊऊऊऊऊऊ....हमारे याचना पत्र को एक बार फिर अपने फ़ाइल से निकालिये प्रभु...और कुछ कीजिये प्रभु..." प्रभु नहीं पसीजे मगर ऐसे में देवी अनकही (जो अपने नामानुसार कह तो कुछ नहीं पायी) के आंखों से दो आंसू ढुलक पडे...बस, प्रभु गये पसीज, एक टिशू पेपर निकाला और अपने आंसू पोछने लगे ( परेश रावल स्टाइल) और कहा, "देवी, रोइये नहीं, कहें क्या करना है। आप सब की व्यथा को हम अब तनिक तनिक समझ रहे हैं।" और कह दिया ,"तथास्तु, आप सब घर में अब आराम कीजिये, आप लोगों का काम हो जायेगा। "

प्रभु ने भक्तों का काम कर दिया था...

सोमवार की शाम...शुकुल देव अभी देव-स्वामि की खिचाई का रफ़ ड्राफ़्ट तैयार ही कर रहे थे शुकुल देव की पत्नी की आवाज़ आई, "आते हो खाना खाने कि लैप टाप उठा के फेंक दूं?" शुकुल देव की पत्नी जो मानव सेवा केलिये धरती पर पोस्टेड थीं अब शुकुल देव के साथ जन्म-जन्मांतर के लिये उनके कुंज में रहने को आ गयीं थीं। शुकुल देव का लैप टाप फूला नहीं समा रहा था और बेहाल कुंजीपट मन ही मन बहुत बहुत खुश ज़रा सुस्ताने की सोचने लगा...

( वैसे अनूप को बधाई सुमन भाभी के ट्रांसफ़र पर...)

4 comments:

अनूप शुक्ल said...

हम देख रहे हैं हमारे प्रति कितना प्रेम रस से लबालब है 'चिकग'। सारे लोग चिकाई पर जुटे हैं। लेकिन प्रयासों में उत्साह अधिक विश्वास कम रहता है। फिर भी यह खिंचाई काबिले तारीफ है। पत्नीश्री कुछ दिन के लिये कानपुर आ रहीं हैं(मार्च तक के लिये)। सब लोग खुश हैं । सिर्फ हम ही हैं जो कह रहे हैं-सुख भरे दिन बीते रे भइया! वैसे हम अभी एक वकील से सलाह भी ले रहे हैं कि पत्नी की मानहानि का मुकदमा यहां से ठोका जा सकता है या नहीं?(उनको अपने पक्ष में रखने का यह सबसे आसान उपाय होगा शायद)"आते हो खाना खाने कि लैप टाप उठा के फेंक दूं?" यह संभावित सच लिखकर हमारी पत्नी को अभी से एक अमेरिकन-कनाडियन महिला की तरह झगड़ालू दिखाने का जो प्रयास किया गया है यह अच्छी बात नहीं है।तमाम और खूबसूरत हथियार हैं उनके पास। रही बात खिंचाई की तो लगता है हमें भी कुछ करना पड़ेगा जन भावना के सम्मान के लिये।वैसे आप तीनों 'मचिकग' देखें कि आपकी कविताओं के मुकाबले गद्य की कितनी मांग है। चाहें खिंचाई करें चाहे बचपन की यादें दोहरायें।इसी तरह लिखती रहें। जल्दी ही आपके खिलाफ भी 'चिकग' कहीं अपील करेंगे।

Anonymous said...

अनकही देवी के आंसुओं से प्रभु तो पसीज गये.लेकिन सृजन "ख्वाब आंखो में" लिये बेकरार है.
http://shabdanjali.com
बॄजेश

Pratyaksha said...

बुनो कहानी स्टाईल में चिकाई और खिंचाई रिले रेस की तरह यूँ ही आगे बढता जाये. अब आयेगा और मज़ा. वैसे मेरी भी अगली किश्त तैयार है.(......महोदय सावधान हो जायें )
"रही बात खिंचाई की तो लगता है हमें भी कुछ करना पड़ेगा जन भावना के सम्मान के लिये "
कैसी जन भावना ???

प्रत्यक्षा

Jitendra Chaudhary said...

मानसी जी, आप गद्य भी बहुत अच्छा लिखती है। लगातार लिखती रहिये...बहुत अच्छा लगा पढकर। मैने कमेन्ट करने मे देर इसलिये कर दी, मै सोच रहा था, थोड़ी आलोचनात्मक टिप्पणी करूंगा। वैसे सबसे पहले मैने(आपके बाद, आइ मीन) ही आपका ब्लॉग पढा था। और शुकुल को पढवाया भी था।

आपने शुकुल की खिंचाई करने की कोशिश तो की, लेकिन जाने क्यों मुझे लगा कि जैसे सरकार महिला विधेयक लाती है ना, वैसा ही,कंही ना कंही इच्छाशक्ति की कमी दिखी। आप खिंचाई करने के मूड मे तो थी, लेकिन दिल नही माना।इसलिये दिल ने आपके कीबोर्ड पर कब्जा कर लिया। खैर आगे आपसे और ज्यादा खिंचाई(कानपुर मे हम इसे चिकाई बोलते है) की उम्मीद है।