रोज़ सुबह जब मैं उठती हूं, मेरे पास एक सपना होता है। नहीं मैं कोई कविता नहीं कर रही या कोई बडी दार्शनिक बात नहीं कह रही। सचमुच मेरे पास पिछली रात का देखा हुआ एक सपना होता है और मुझे लगता है कि अगर मैं इन सपनों को लिखने लगूं तो एक अच्छी खासी डायरी बन जायेगी। मैं अपने सपनों को पति को सुनाती हूं और वो कहते हैं, "अरे फिर नहीं यार..."। पर मैं सोच रही थी मैं इतने सपने क्यों देखती हूं। और जब से घर पर हूं सपना देखना बढ़ गया है। यानि कि ख़ाली दिमाग़ में सपने ज़्यादा आते हैं। सपने कितने अजीब होते हैं। गाड़ी से शुरु करती हूं सफ़र और प्लेन से उतरती हूँ। बचपन में नीलू से लड़ते लड़ते पति के आगे रोते हुये सपना टूटता है। मेरे सपने ज़्यादातर मेरे बचपन के इर्द-गिर्द ही घूमते हैं। बचपन में जिस घर में मैं बड़ी हुई, आज भी उसी घर के सपने देखती हूं, यानि कि हालात भले ही आज के हों, पर घर वही रहता है। नीलू, दीपाली, संध्या, पूर्णिमा मेरे सपनों के सच्चे साथी हैं। कभी नहीं साथ छोड़ते मेरा जबकि मैं इनसे १० साल से नहीं मिली। लोग सपने देखने के जाने क्या क्या मतलब निकालते हैं। मगर चूंकि मैं बहुत सपने देखती हूं मैं ये दावे के साथ कह सकती हूं कि सपना सिर्फ़ और सिर्फ़ एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है। मैं इसके अंधविश्वासीकरण के आधार को नहीं जानती पर आप अगर सपने देखते हैं तो आप भी ध्यान दीजियेगा तो पाइयेगा कि अगर आपको उस वक्त रात में भूख लग रही है तो आप सपने में खुद को खाते हुये देखेंगे। कल मैंने सपने में देखा कि मेरे घर बहुत मेहमान आये हैं और खाना बनने की बडी धूम है। रायता बनाया पर देना भूल गयी मेहमानों को। इधर पापा घर में एक बहुत बहुत बडी ( व्हेल जितनी बडी) मछली ले कर आये हैं। सुबह उठ कर पति को बताया तो उनका कहना था ,"अरे यार, कभी बख्श दिया करो मुझे..." मगर मेरे सपने का विश्लेषण भी कर डाला जो बिल्कुल सही लगा मुझे। अभी लन्डन में व्हेल के समुद्र से नदी में चले आने की खबर को लगातार सुन रही थी मैं और काफ़ी असर भी किया इस खबर ने तो वही आ गया सपने में। अब मेहमान वगैरा तो घूमते ही रहते हैं दिमाग में। तो कल का सपना समझ आ गया कि क्यों देखा।
सपना है क्या?
फ़्रायड के अनुसार सपना हमारे दिमाग में चल रहे सोच का वो सिलसिला है जो नींद में भी चल रहा है। उनका कहना है कि चाहे सपने कितने भी अजीब हों कितने भी असंयुक्त हों मगर उनका एक उद्देश्य होता है, कहीं हमारी सबकान्श्यस ( कमचेतन) दिमाग में । हमारे कमचेतन दिमाग में चल रहे किसी खयाल को जो हम दिन में अपने परिस्थितियों के चलते पूरा नहीं कर पाते, उसे नींद में सपनों में पूरा करने की कोशिश करते हैं। पर हमेशा ये सपने वो चाह नहीं होती जो हम पूरी होते देखना चाह्ते हैं बल्कि ज़्यादातर वो इच्छायें या खयाल जो हमें परेशान करती हैं, जो वास्तव में शायद पूरी होना मुश्किल हैं। सच्चाई ये है कि किसी भी व्यक्ति के सपने देखे बिना नींद पूरी ही नहीं हो सकती और एक व्यक्ति कम से कम ४-५ बार सपने देखता है अपने नींद में। सपने रंगीन होते हैं या श्वेत-श्याम? ये हमेशा से बहस का विषय रहा है। मेरा कहना है कि सपने रंगीन ही होते हैं मगर हम उस बात पर ध्यान नहीं देते कि वो रंगीन हैं या काले क्योंकि उस वक्त सपने में कोई और बात ज़्यादा महत्वपूर्ण होती है, पर मैं ये ज़रूर कह सकती हूं कि अगर मैं इंद्रधनुष देखने के उद्देश्य से सपने में इन्द्रधनुष देखूं तो वो ज़रूर ही रंगीन होगा।
मैं मनोविज्ञान की छात्रा तो नहीं रही हूं पर बी.एड. करते समय बाल-मनोविज्ञान पढ़ना पड़ा था, उस वक्त फ़्रायड के सिद्धांतों का थोडा बहुत अध्ययन किया था। मनोविज्ञान की पढ़ाई बहुत आकर्षित करती है मुझे। लोगों का मनोविज्ञान समझ लेना एक कला लगता है। किसी के व्यंग्य की मुस्कान के पीछे का रहस्य जान लेना, या किसी की कोई बात कहने से पहले ही भाँप लेना कि वो व्यक्ति क्या कहेगा बहुत अचंभित करता है और कहीं आनंद भी देता है मुझे। ज्योतिष में इन्ट्युशन को काफ़ी तवज्जो दी जाती है। मुझे लगता है कि इन्ट्यूशन का व्यक्ति की बुद्धिमत्ता से सीधा संपर्क है। तेज़ दिमाग वाले बहुत जल्द अनुमान लगा लेते हैं कि आगे क्या हो सकता है। यही अच्छे मनोवैज्ञानिकों के बारे में भी कहा जा सकता है। वैसे थोड़ा बहुत इन्ट्यूशन या मनोविज्ञान समझने की कला सब में होती है पर कुछ लोगों में ज़्यादा । कहते हैं कि औरतों में सिक्स्थ सेन्स काम करती है। अगर कोई पुरुष किसी स्त्री से किसी गलत मतलब से बात करे तो चाहे वो कितना भी छुपाये, स्त्री को एक मिनट नहीं लगता उस आदमी का मनोविज्ञान समझने में।
सपनों की बात करती हूं तो बचपन में देखा एक सीरियल याद आता है, मुंगेरी लाल के हसीन सपने। उसके स्वप्न दिवास्वप्न होते थे मगर फ़्रायड के सिद्धांत पर खरे उतरते थे। उसकी दबी इच्छाओं को वो देखता था अपने सपनों में। दार्शनिक कहते हैं दिवास्वप्न का किसी व्यक्ति के आगे बढने में, कुछ बन सकने में बहुत बडा हाथ होता है। अगर गंभीरता से सोची जाये बात को तो यहां भी मनोविज्ञान ही काम करता है। दिवास्वप्न ज़्यादा गंभीरता से देखता है इन्सान और उसे पूरा करने की इच्छा भी सशक्त होती है। दिनकर जी की ये कविता मुझे बहुत प्रभावित करती है:
रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद,
आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है!
उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता,
और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है।
जानता है तू कि मैं कितना पुराना हूँ?
मैं चुका हूँ देख मनु को जनमते-मरते
और लाखों बार तुझ-से पागलों को भी
चाँदनी में बैठ स्वप्नों पर सही करते।
आदमी का स्वप्न? है वह बुलबुला जल का
आज बनता और कल फिर फूट जाता है
किन्तु, फिर भी धन्य ठहरा आदमी ही तो?
बुलबुलों से खेलता, कविता बनाता है।
मैं न बोला किन्तु मेरी रागिनी बोली,
देख फिर से चाँद! मुझको जानता है तू?
स्वप्न मेरे बुलबुले हैं? है यही पानी?
आग को भी क्या नहीं पहचानता है तू?
मैं न वह जो स्वप्न पर केवल सही करते,
आग में उसको गला लोहा बनाता हूँ,
और उस पर नींव रखता हूँ नये घर की,
इस तरह दीवार फौलादी उठाता हूँ।
मनु नहीं, मनु-पुत्र है यह सामने, जिसकी
कल्पना की जीभ में भी धार होती है,
बाण ही होते विचारों के नहीं केवल,
स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है।
स्वर्ग के सम्राट को जाकर खबर कर दे
रोज ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं वे,
रोकिये, जैसे बने इन स्वप्नवालों को,
स्वर्ग की ही ओर बढ़ते आ रहे हैं वे।
तो आप भी सपने देखना न छोड़िये, दिवास्वप्न हो या रात्रिस्वप्न, कहीं न कहीं हमें अपनी दबी इच्छाओं को आँकने का मौका मिलता है और जनाब उन पर गंभीरता से सोचिये भी। अब हर सपना भी नहीं...नीलू से लड़ने जैसा...
चलिये आज बस इतना ही...
7 comments:
अभी पढ़ा कि उस व्हेल की मृत्यु हो गयी है। बडा ही दुख हुआ।
http://www.hindu.com/thehindu/holnus/
हम सपना तो नहीं देखते लेकिन जब पिछली पोस्ट लिखी थी-क्या लिखूं तब ही समझ गये थे
कि किसी लंबी पोस्ट की टाइपिंग चालू आहे।बहुत बढ़िया है रोज सपना देखें तथा पोस्ट करती रहें।
सपने तो हम भी खुब देखते है, एक सपने का नजारा यह भी है" :-)
साथ मे फुरसतियाजी का विश्लेषण भी.
आशीष
वैसे सपने हमेशा कोमल ही नहीं होते फुफहा बादलों से, वे सभी के लिए कभी न कभी और कुछ के लिए हमेशा निर्मम होते हैं कठोर कुल्हाड़ी की मानिंद।
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i think u should go to sleep to get sum more dreams!!!
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