Thursday, September 11, 2008

ये रातें ये मौसम और वो यादें

"ये रातें ये मौसम ये हँसना हँसाना, मुझे भूल जाना इन्हें ना भुलाना", पापा की मधुर आवाज़ तैर रही है हारमोनियम के साथ, और ५ साल की मैं मंत्र मुग्ध हो पापा का हारमोनियम बजाना देख रही हूँ, इस आशा के साथ कि अब पापा गाना बंद करें तो मुझे उस हारमोनियम से खेलने का मौका मिले। भैया अपने कमरे में पढ़ाई कर रहे हैं और माँ हमारे लिये रात का खाना तैयार कर रही हैं रसोई में। मैं अभी भी सैर कर आती हूँ ऐसे ही बिंब में जो मेरे मानस पटल के एक कोने में मधुर याद बन कर चिह्नित है, हमेशा के लिये। आज इस गाने को सुना तो, ये याद और ताज़ा हो गई। दिन गुज़रते जाते हैं, ज़िंदगी नये नये रंग ले लेती है और हर रंग अपनी एक पहचान छोड़ जाती है, एक सुंदर याद बनकर।

इस गीत को यहाँ सुनिये पंकज मलिक की आवाज़ में:



ये रातें ये मौसम ये हँसना हँसाना
मुझे भूल जाना इन्हें ना भुलाना

ये बहकी निगाहें ये बहकी अदायें
ये आँखों के काजल में डूबी घटायें
फ़िज़ां के लबों पर ये चुप का फ़साना
मुझे भूल जाना इन्हें ना भुलाना

चमन में जो मिल के बनी है कहानी
हमारी मुहब्बत तुम्हारी जवानी
ये दो गर्म साँसों का इक साथ आना
ये बदली का चलना ये बूँदों की रिम झिम
ये मस्ती के आलम में खोये से हम तुम
तुम्हारा मेरे साथ ये गुनगुनाना
मुझे भूल जाना, इन्हें ना भुलाना

10 comments:

अमिताभ मीत said...

सुबह सुबह .. वाह ! दिन की शुरुआत बड़ी अच्छी हुई ..... पंकज मल्लिक के दो गीत यहाँ भी हैं ... अगर सुनना चाहें :
http://kisseykahen.blogspot.com/search/label/%E0%A4%AA%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A4%9C%20%E0%A4%AE%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%95

Anonymous said...

बढ़िया है। लेकिन ये अपनी आवाज में सुनाओ तो सुने!

Pratyaksha said...

हाँ मानोशी , अपनी आवाज़ में कुछ सुनाओ .. अभी तक कभी तुमने भेजी थी अपने गाने का एक क्लिप , सुनती हूँ ... यहाँ भी सुनाओ ..

Unknown said...

bahut badhiya

mamta said...

खूबसूरत पेशकश।

फ़िरदौस ख़ान said...

सुब्हान अल्लाह...

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

आप सब का शुक्रिया। अनूपजी और प्रत्यक्षा, कभी करूँगी अपनी आवाज़ में भी पोस्ट। वैसे मेरे संगीत ब्लाग पर कुछ पोस्ट कर रखा है, हाँ फ़ार्मल कुछ नहीं।

शोभा said...

मधुर गीत . आभार.

Shastri JC Philip said...

आभार इस चुनाव एवं प्रस्तुति के लिये !



-- शास्त्री जे सी फिलिप

-- समय पर प्रोत्साहन मिले तो मिट्टी का घरोंदा भी आसमान छू सकता है. कृपया रोज कम से कम 10 हिन्दी चिट्ठों पर टिप्पणी कर उनको प्रोत्साहित करें!! (सारथी: http://www.Sarathi.info)

सागर नाहर said...

मजेदार.. आनंद आ गया।
मेरे पास संग्रह में है पर ब्लॉग पर सुनना अलग ही मजा आता है।
और हाँ उपर अनूपजी फरमाईश वास्तव में मेरी भी फरमाईश है। आपकी खुद की आवाज में कुछ बढिया सा गीत सुनाईये।