Friday, September 12, 2008

माछ भात और खुशी

स्कूल आज १०:३० बजे ही छूट गया था मेरा, मगर काम करते करते, शाम ४ बजे ही घर पहुंच पाई। बहुत दिनों बाद आज कुछ गाने बैठी, राग पूरिया धनाश्री, पायलिया झनकार मोरी, पर आधा अधूरा गा कर ही उठ गई। मन चंचल हो जाता है कभी कभी। थकावट, कुछ कड़वाहटें, दुनियादारी। फिर सरंजाम न हो ठीक तो गाने का मन भी तो नहीं करता। इस बार भारत जा कर एक तालमाला (इलेक्ट्रानिक तबला) ले आना है। सुरमाला (इलेक्ट्रानिक तानपुरा) भी। संगीत ब्लाग भी मेरा ऐसा ही अधूरा मुलतानी लिये पड़ा है। एक दोस्त की जन्मदिन की बधाई के लिये उसे फ़ोन किया। बात खत्म कर फिर वही सोच, क्या खाना बनाऊँ । शाम को उन्होंने आ कर गाना लगाया, आमि जे जलशाघरे, मन्ना दे की आवाज़। पिछले सप्ताह तलापिया माछ ला कर रखा था, चाइनीज़ मार्केट से। आज माछेर झोल ही बनाऊँगी वो नहीं खाते, मछली, इसलिये अपने लिये कौन बनाये, अकेले के लिये, के आलस के चलते कम ही बन पाता है आजकल। पसंदीदा गाना, और माछ-भात, और क्या चाहिये। मन अचानक बहुत खुश हो उठा। कहाँ कहाँ छुपी होती है ये छोटी छोटी खुशियाँ। कब किस कोने से आकर बेवजह खिलखिला जाये, क्या पता।

मन्ना दे की आवाज़ में " आमि जे जलशाघरे" सुनिये नीचे:

http://www.youtube.com/watch?v=D6CcZ4FJv2U

3 comments:

Satyendra Prasad Srivastava said...

बहुत खूब। अच्छा गाना सुनाया। ये गाना मुझे इतना पसंद है कि वीसीडी में बार-बार इसी गाने को सुनता हूं। सुर,शब्द और उत्तम कुमार की अदाकारी। ऐसा बेजोड़ संयोग कहां मिलता है। बहुत अच्छा गाना।

अमिताभ मीत said...

क्या बात है. मुझे कॉलेज के दिन याद दिला दिए .... मेरा एक दोस्त (जो आज कल यहीं कलकत्ते में है) ये गीत सुनाता था .... कटक में ... एक टूटे-फूटे से मकान की छत पर ..... बहुत सुंदर....

Pramod Kumar Kush 'tanha' said...

sangeet saadhna ke liye bahut badhaayee...mujhe bhi kafee 'inspiration' milee hai..jald se riyaaz par baithne ki ichchhaa hai...