पहली है सुमना राय विश्वास की आवाज़ में। मैं उन्हें सुनती थी जब वो सिर्फ़ सुमना राय थीं और उनकी एक गज़ल जो मैंने रायपुर रेडियो स्टेशन से सुनी थी, "जब दिल की रहगुज़र पे तेरा नक्श-ए-पा न था, जीने की आरज़ू थी मगर हौसला न था", बहुत ढूँढने पर भी मुझे कहीं भी बाद में नहीं मिली। पापा ने उस वक्त उसे कसेट में रिकार्ड किया था, उनके पास शायद होगी अभी भी।
(रिकार्डिंग बहुत अच्छी नहीं है इसकी)
|
अगर आप इस लिंक पर जायें तो भी सुन सकते हैं इस ग़ज़ल को:
http://www.musicindiaonline.com/music/ghazals/m/artist.406/
दूसरी है पीनाज़ मसानी की आवाज़ में। व्यक्तिगत रूप से मुझे उनकी गायकी का अंदाज़ पसंद नहीं, मगर ये ख़ास ग़ज़ल उन्होंने बहुत अच्छी गायी है।
2 comments:
I have heard this in Suraiya's voice only (with Talat saab),
Nice to hear in two different voices.
Thanx for a nice presentation.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
एक ही रचना को अलग-अलग आवाजों में सुनना सुखद है.म्रेरे खयाल से यही तो खूबी है संगीत की कि हर बार वह कुछ अलग-सा लगता है.महाकवि बिहारी ने एक दोहे में कहा है कि मैं नायिका को जितनी बार देखता हूं,उतनी बार,हर दफ़ा वह नई-नवेली और सुंदर लगती है.
सुमना राय जी को पहली बार सुना. बहुत अच्छा लगा.
Post a Comment