...जब प्रेम तुम्हें बुलाता है, उस के पीछे हो लो, भले ही उसके रास्ते कठिन हैं। जब वो अपने परों में तुम्हें समाये, अपने आप को समर्पित कर दो, हो सकता है कि तुम उन परों में छुपे तीक्ष्ण तलवार जैसे धार से आहत हो जाओ। और जब वो तुम से कहे तो उस पर विश्वास करो भले ही उसकी आवाज़ तुम्हारे सपनों को चकनाचूर कर दे और पतझड़ के पत्तों की तरह बिखेर जाये....
...और ये मत सोचो कि तुम प्रेम की धारा को बदल सकते हो, बल्कि अगर ये तुम्हें क़ाबिल समझेगा तो तुम्हारी धारा को बदल देगा। प्रेम की कोई और अभिलाषा नहीं इसके सिवाय कि वो खु़द को परिपूर्ण कर सके। और अगर तुम प्रेम में अभिलाषा रखते हो तो ये हो तुम्हारी अभिलाषा-
एक पिघल कर बहते हुए दरिया की तरह बन सको...हर सुबह उठ कर एक और प्रेम के दिन के लिये, उस आनंद में सराबोर हो पाने के लिये उस का शुक्रिया अदा कर सको...
(खलील जिब्रान के " द प्रोफ़ेट" से टूटे-फूटे अंश)
5 comments:
एक पिघल कर बहते हुए दरिया की तरह बन सको...हर सुबह उठ कर एक और प्रेम के दिन के लिये, उस आनंद में सराबोर हो पाने के लिये उस का शुक्रिया अदा कर सको...
bahut sunder
अच्छी सामग्री ढूंढ़ कर लाई गई है। धन्यवाद।
प्रेम, बस एक बार हो जाए।
wah...
kya baat kahi hai..........
वाह आज फ़िर बहुत समय बाद....बार बार पढा..और फ़िर पढा जब पहली बार पढा..काश के ये जगत जान ले इसे ठीक से...बधाई.
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