Saturday, November 15, 2008

शून्य


शिलाधार!
बड़े बेचैन हो आज
बहुत दिनों बाद
फिर किसी शोर से
भटका है मन तुम्हारा
है न?
रात अनगिनत भटके हो
बहुत अधूरे हो
सुनो,
पूर्णता अहसास है
संपूर्ण कौन हुआ है भला
एक छ्द्म वेश ही सही
धुरी पर अटक कर
स्थिर बने रहने के लिये
कब जन्म लिया था तुमने?
पर रहो स्थिर
स्थिरता ही तो संपूर्णता है
वो आख़िरी बिंदु
जहाँ ’मैं’ समाप्त होता है
’तुम’ समाप्त होता है
और बस रह जाता है
एक शून्य
आओ उस शून्य को पा लें अब...

4 comments:

Vinay said...

शून्य के प्राप्ति असंभव है क्यों कि शून्य स्वयं में शून्य है!

विजय तिवारी " किसलय " said...

मानसी जी
नमस्कार

रचना सारगर्भीत लगी
मुझे आनंद कि प्राप्ति हुई
स्थिरता ही तो संपूर्णता है
वो आख़िरी बिंदु
जहाँ ’मैं’ समाप्त होता है
’तुम’ समाप्त होता है
और बस रह जाता है
एक शून्य
आओ उस शून्य को पा लें अब...

आपका
विजय

विजय तिवारी " किसलय " said...

मानसी जी
नमस्कार

रचना सारगर्भीत लगी
मुझे आनंद कि प्राप्ति हुई
स्थिरता ही तो संपूर्णता है
वो आख़िरी बिंदु
जहाँ ’मैं’ समाप्त होता है
’तुम’ समाप्त होता है
और बस रह जाता है
एक शून्य
आओ उस शून्य को पा लें अब...

आपका
विजय

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

Manoshiji,
Apkee kavita shoonya men ek gambheer jeevan darshan chhupa hua ha.Yadi aj vyakti isee darshan ko samajh le yani kee uske andar se man kee bhavna khtam ho jaye to shayad vah apne jeevan ke sare tanavon,saree pareshaniyon se mukt ho sakta ha.Achchee kavita ke liye badhai.
Hemant Kumar