Saturday, November 15, 2008

क्या फ़र्क़ पड़ता है- प्यार का पहला ख़त

कैराओके के साथ गाना कभी रिकार्ड नहीं किया, पर फ़ितूर है, न मिक्सिंग का कोई ज्ञान, न ही माइक अच्छा...फ़्लू...पर क्या फ़र्क़ पड़ता है...मन को जो अच्छा लगे वो करो...

मेरी पसंदीदा ग़ज़ल (जगजीत सिंह जी से माफ़ी के साथ, उनके इस गाने को बिगाड़ने के लिये)

और प्लीज़ प्लीज़, क्रिटिक के कानों से न सुनें...

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प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है
नये परिंदों को उड़ने में वक़्त तो लगता है

जिस्म की बात नहीं थी उनके दिल तक जाना था
लंबी दूरी तय करने में वक्त तो लगता है

गाँठ अगर लग जाये तो फिर रिश्ते हो या डोरी
लाख करें कोशिश खुलने में वक़्त तो लगता है

हमने इलाज-ए-ज़ख़्म-ए-दिल तो ढूँढ लिया लेकिन
गहरे ज़ख़्मों को भरने में वक़्त तो लगता है

3 comments:

सागर नाहर said...

बहुत खूबसूरत आवाज! गज़ल की तो क्या कहें, बरसों से सुन रहे हैं पर बार बार सुनने को मन करता है।
संगीत मिक्सिंग भी बहुत बढ़िया हुआ है, क्या हमें भी सिखायेंगे कि ये कैसे करते हैं?
ना ना... डरिये नहीं हम अपनी आवाज में कुछ नहीं सुनायेंगे आपको :)

Anonymous said...

Manoshi, bahut khoob gaya hai, Karoke ke gaane ka maja ho kuch aur hai.

sagar bhai, ek karoke ka mike khareedna hota hai, uske saath gaano ki ek chip aati hai. Uske baad TV se hook karke chala do, TV per music bachta rahega aur gaane ke bol sangeet ke hisaab se aate rahnege, aap bol parkar gaate raho. End me score bhi bata dega ki kitna achha ya bura gaya.

Maoshiji sahi keh reha hooon na.

अनूप शुक्ल said...

बहुत अच्छा लगा सुनकर इसे। कई बार सुना। कोई फ़ीस तो नहीं है न! शुक्रिया इसे यहां पोस्ट करने का अपनी आवाज में।