हज़ारों हैं खुशियाँ यहाँ ज़िंदगी में
ग़मों की जगह फिर कहाँ ज़िंदगी में
कटेगा ये मुश्किल सफ़र मुस्कराते
मिले साथी सच्चा जहाँ ज़िंदगी में
हुए कब हैं पूरे हर अरमां किसी के
मिला किस को सब है यहाँ ज़िंदगी में
दरीचे से बाहर खुला आसमां है
ज़रा झाँक आओ वहाँ ज़िदगी मॆं
न जाने हैं शक़्लें भी कितनी तरह की
मुखौटों के पीछे यहाँ ज़िंदगी में
तजुर्बा नया है सिखाता जो लम्हा
कोई याद रखता कहाँ ज़िंदगी में
चलो ’दोस्त’ हम भी समझ लें इन्हें, ये
जो दो चार पल हैं यहाँ ज़िंदगी में
(महावीर जी का तहे दिल से शुक्रिया इस गज़ल को अपने इस रूप तक लाने का। उन्होंने बहुत समय दिया है अपना, वैसे तो हमेशा ही, जब भी मैंने उन्हें अपनी रचनायें भेजी हैं।)
ग़मों की जगह फिर कहाँ ज़िंदगी में
कटेगा ये मुश्किल सफ़र मुस्कराते
मिले साथी सच्चा जहाँ ज़िंदगी में
हुए कब हैं पूरे हर अरमां किसी के
मिला किस को सब है यहाँ ज़िंदगी में
दरीचे से बाहर खुला आसमां है
ज़रा झाँक आओ वहाँ ज़िदगी मॆं
न जाने हैं शक़्लें भी कितनी तरह की
मुखौटों के पीछे यहाँ ज़िंदगी में
तजुर्बा नया है सिखाता जो लम्हा
कोई याद रखता कहाँ ज़िंदगी में
चलो ’दोस्त’ हम भी समझ लें इन्हें, ये
जो दो चार पल हैं यहाँ ज़िंदगी में
(महावीर जी का तहे दिल से शुक्रिया इस गज़ल को अपने इस रूप तक लाने का। उन्होंने बहुत समय दिया है अपना, वैसे तो हमेशा ही, जब भी मैंने उन्हें अपनी रचनायें भेजी हैं।)
8 comments:
"कटेगा ये मुश्किल सफ़र मुस्कराते
मिले साथी सच्चा जहाँ ज़िंदगी में "
सही कहा- "यूं ही कट जायेगा सफ़र साथ चलने से."
धन्यवाद इस ग़ज़ल के लिये .
bahut sundar
न जाने हैं शक़्लें भी कितनी तरह की
मुखौटों के पीछे यहाँ ज़िंदगी में
बहुत खूब....अच्छी ग़ज़ल कही है आपने...बधाई...
नीरज
चलो ’दोस्त’ हम भी समझ लें इन्हें, ये
जो दो चार पल हैं यहाँ ज़िंदगी में
yeh do laaino me puri kavita kaa saar chupa huaa hai. ati sundar...
Pehli baar aayi hun aapke blogpe...Manasi naamne aakarshit kiya(Manoshi, hai waise to, par blogpe pohonch, Manasi dekha)...is naamse koyi behad azeez hai..
Abhi to aapke blogpe sirf ek gazal padhi hai...bohot achhee lagi...aur padhne jaa rahi hun...saath hi aapko apne blogpe aamantrit karna chahti hun..!
bahot khub likha hai aapne bahot hi badhiya bhav bhare hai... dhero badhai aapko....
अच्छी गज़ल मैम....एकदम चाक-चौकस व्याकरण और मीटर दोनों दृष्टि से
महावीर जी तो इस विशाल समुद्र में प्रकाश फेंकते लाइट-हाऊस की तरह हैं हम सब के लिये
जीवन की िविवध िस्थितयों को सुंदरता से शब्दबद्ध किया है । अच्छा िलखा है आपने । भाव और िवचारों का अच्छा समन्वय है । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख िलखा है-आत्मिवश्वास के सहारे जीतें िजंदगी की जंग-समय हो तो पढें और प्रितिक्रया भी दें-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
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