Saturday, January 17, 2009

मिला जो तेरा हाथ - ग़ज़ल



मैं राह में गिरा तो जैसे टूट कर बिखर गया
मिला जो तेरा हाथ तो वजूद ही सँवर गया

वो फिर से कह रहे थे मुझसे, देँगे मुझपे जान भी
मगर मैं ऐतबार के ही नाम से सिहर गया

जो उसके रुख़ से गिर गया हिजाब मेरे सामने
मेरी नज़र से धुल के वो कुछ और भी निखर गया

सुना जो उनकी बज़्म में हुआ था तेरा ज़िक्र, मैं
हज़ार बार तेरा हाल जानने उधर गया

जो ज़र्रे को भी चल गया पता अब अपनी हस्ती का
वो उड़ के थोड़ी देर फिर ज़मीन पर उतर गया

अभी तक उसकी खुश्बु से महक रही है ज़िँदगी
वो कौन था ऐ 'दोस्त' जो क़रीब से गुज़र गया
.
वज़न-१२१२
बहर-मफ़ाइलुन-४

21 comments:

Himanshu Pandey said...

महक रही है ज़िंदगी अभी भी जिसकी खुश्बु से
वो कौन था ऐ 'दोस्त' जो क़रीब से गुज़र गया"

अच्छी पंक्तियां. इस सुन्दर गजल के लिये धन्यवाद.

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर रचना।

Udan Tashtari said...

महक रही है ज़िंदगी अभी भी जिसकी खुश्बु से
वो कौन था ऐ 'दोस्त' जो क़रीब से गुज़र गया

??

बेहतरीन!! उम्दा गज़ल.

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

शुक्रिया हिमांशु, संगीता जी। समीर, शुक्रिया आपको भी जी...आपके ?? के लिये भी :-)) टोरांटो कब आना हो रहा है आपका वापस? बहुरानी से मिलने को उत्सुक हैं हम।

Udan Tashtari said...

जल्दी ही आते हैं..तब तक ऐसे ही बेहतरीन गज़ल सुनवाती रहो. :)

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

Manoshi ji,
Vaise to pooree gazal hee bahut achchhee rachee gayee hai.lekin..
Jo pooree ek umra kee bechinee uske pas thee,vo jate jate apnee poonjee mere nam kar gaya...Ye panktiyan to bahut behtareen lagee.
Hemant

गौतम राजऋषि said...

कातिल शेर सब के सब...
"सुना जो उसकी बज़्म में हुआ था तेरा ज़िक्र, मैं
हज़ार बार तेरा हाल जानने उधर गया"

और इस शेर पे तो मर मिटे हैं

daanish said...

"खयाल भी नफ़ीस है, सुखन भी लाजवाब है ,
ग़ज़ल के हर मुरीद तक कमाल का असर गया.."

बहोत ही उम्दा और तरहदार ग़ज़ल कही है आपने .
एक एक शेर अपने आप में मुकम्मिल है ...
मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ...!
---मुफलिस---

विधुल्लता said...

जो पूरी एक उम्र की बेचैनी उसके पास थी
वो जाते जाते अपनी पूंजी मेरे नाम कर गया
ye panktiyaan sundar lagi

श्रद्धा जैन said...

मैं राह में गिरा तो जैसे टूट कर बिखर गया
मिला जो तेरा हाथ तो वजूद ही सँवर गया

wah ky abaat chedh di hai

वो कह रहा था मुझसे कि हाँ देगा मुझपे जान भी
मगर मैं ऐतबार के ही नाम से सिहर गया

bahut sach dhoodh ka jala hai

जो उसके रुख़ से गिर गया हिजाब मेरे सामने
मेरी नज़र से धुल के वो कुछ और भी निखर गया

सुना जो उसकी बज़्म में हुआ था तेरा ज़िक्र, मैं
हज़ार बार तेरा हाल जानने उधर गया

kya kare ye dil aakhir hai pagal

जो पूरी एक उम्र की बेचैनी उसके पास थी
वो जाते जाते अपनी पूंजी मेरे नाम कर गया

जो ज़र्रे को भी चल गया पता अब अपनी हस्ती का
वो उड़ के थोड़ी देर फिर ज़मीन पर उतर गया

महक रही है ज़िंदगी अभी भी जिसकी खुश्बु से
वो कौन था ऐ 'दोस्त' जो क़रीब से गुज़र गया
bhaut hi khoobsurat gazal
har sher kamaal
dil ko thandak deta hua

bahut bahut achha likhti ho

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

शुक्रिया हेमंत, गौतम, विधु जी, और श्रद्धा। मुफ़्लिस जी आपने तो बड़ा ही सुंदर शेर जोड़ा। एक और शेर जोड़ रही हूँ यहाँ, गज़ल का हिस्सा नहीं बना रही-

चले गये सुबह से जो वो काम पर शनि को भी
बड़ा ही ख़ाली ख़ाली सा मेरा ये दो पहर गया :-)

गौतम राजऋषि said...

सुभानल्लाह मनोशी...आप तो-उफ्फ्फ्फ !!

नीरज गोस्वामी said...

हर शेर बहुत मेहनत कर के लिखा हुआ है...गहरा और सलीके दार...बहुत खूब...
नीरज

Anonymous said...

Subhaanallah!!!!!!!!
hamko bhi shani ko kaam par jana padta hai :(

Dr. Shailja Saksena said...

Bahut Sunder Mansi!!

Jo Poori ek umra ki baichaini uske paas thee...

bahut hi sunder sher hai..

sneh
shailja

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

शुक्रिया वर्षा, नीरज जी, और गौतम एक बार फिर। अरे शैलजा! तुम्हारे आने से बड़ी खु़शी हुई, शुक्रिया। तुम ने तो ब्लाग पर लिखा ही नहीं कई दिनों से, अपनी कुछ कवितायें या लेख डालो उस पर। इतना अच्छा लिखती हो।

Vinay said...

सुन्दर भाव वाली रचना, पढ़कर अच्छा लगा


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Manuj Mehta said...

वाह बहुत खूब. आपके ब्लॉग पर आने पर हर बार एक नया अनुभव होता है. आपकी लेखनी यूँ ही जादू बिखेरती रहे.

पूनम श्रीवास्तव said...

Manoshi ji,
Bahut achchhee ,samvedanapoorna gazalen,kavitaen hain apkee.Kuchh pahle ke lekh bhee maine padhe.achchhe lage.main bhee thoda likhane kee koshish kar rahee hoon.Kabhee mere blog par aiye .apka hardik svagat hai.
Poonam

महावीर said...

वाह! मज़ा आगया।
मक़ते में जो महक आ रही है, वह पूरी ग़ज़ल में आरही है। गहरे भावों को बहर में बड़ी ही ख़ूबसूरती से सजाया है। काश कि इसे प्लेयर पर भी यहां सुनते तो सोने में सुहागे का काम करता। कोई बात नहीं, फिर कभी सही।
ऐसे ही लिखती रहो।

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

सबको शुक्रिया। महावीर जी आपसे तो ग़ज़ल लिखना सीखा है। आप तारीफ़ करें तो आशीर्वाद होता है।