Thursday, January 29, 2009

ग़ज़ल- मैं समंदर सा पिये बैठा हूँ सारा दर्द


आशना हो कर कभी नाआशना हो जायेगा
क्या ख़बर थी एक दिन वो बेवफ़ा हो जायेगा
(आशना- friend, confidant नाआशना- stranger)
.
मैंने अश्क़ों को जो अपने रोक कर रक्खा, मुझे
डर था इनके साथ तेरा ग़म जुदा हो जायेगा

क्या है तेरा क्या है मेरा गिन रहा है रात-दिन
आदमी इस कश्मकश में ही फ़ना हो जायेगा
(कश्मकश- confusion, फ़ना- destroy, end)
.
मैं अकेला हूँ जो सारी दुनिया को है फ़िक्र, पर
तारों के संग चल पड़ा तो क़ाफ़िला हो जायेगा
.
मुझको कोई ख़ौफ़ रुसवाई का यूँ तो है नहीं
लोग समझाते हैं मुझको तू बुरा हो जायेगा

(रुसवाई- disgrace, bad name)

मैं समंदर सा पिये बैठा हूँ सारा दर्द जो
एक दिन गर फट पड़ा तो जाने क्या हो जायेगा

पत्थरों में ’दोस्त’ किसको ढूँढता है हर पहर
प्यार से जिससे मिलेगा वो खु़दा हो जायेगा
.
(मुझे ग़ज़ल की बहर-ओ-वज़न और दूसरी बारीक़ियों से वाक़िफ़ करवाने के लिये महावीर जी की हमेशा ही बहुत आभारी हूँ।)

17 comments:

अनूप शुक्ल said...

वाह,वाह!
ये शेर एक दम सवा सेर लगा-

मैंने अश्क़ों को जो अपने रोक कर रक्खा, मुझे
डर था इनके साथ तेरा ग़म जुदा हो जायेगा

पहले वाला शेर पढ़कर वसीम बरेलवी का शेर याद आ गया:
मोहब्बत में बुरी नीयत से सोचा नहीं जाता,
कहा जाता है उसे बेवफ़ा, समझा नहीं जाता।


लिखती रहो दनादन!

दर्पण साह said...

ENTIRE GHAZAL IS MARVELLOUS....
THIS LINE IS THE BEST LINE,HOWEVER.

"मैं अकेला हूँ जो सारी दुनिया को है फ़िक्र, पर
तारों के संग चल पड़ा तो क़ाफ़िला हो जायेगा"

DARPANSAH.BLOGSPOT.COM

परमजीत सिहँ बाली said...

बढिया लिखा है।बधाई।

यह खास अच्छा लगा
पत्थरों में ’दोस्त’ किसको ढूँढता है हर पहर
प्यार से जिससे मिलेगा वो खु़दा हो जायेगा

निर्मला कपिला said...

maine ashkon ko jo apne rok kar rakha------- bahut hi khoob kaha hai sari gazal hi sunder hai bdhai

mehek said...

bahut sundar

bijnior district said...

पत्थरों में ’दोस्त’ किसको ढूँढता है हर पहर
प्यार से जिससे मिलेगा वो खु़दा हो जायेगा
बहुत बढि़या गजल

के सी said...

मेरी दाद स्वीकारें

gazalkbahane said...

snehil manoshi ji,

aapki gazal khoobsoorat hai ,kahan me, bhavon men ,bahar men bhi hai magar kuchh bunyadi baten hain jo gazal ko aur sundar banati hain

agar aap gzl par aalochna n padhna chahen to ise aage n padhen,

aur aage padhen aur meri koi tipni galat lage to agrim muafi chahunga



abhi ek she`r par kah raha hun

मैं समंदर सा पिये बैठा हूँ सारा दर्द जो
एक दिन गर फट पड़ा तो ज़लज़ला हो जायेगा

badal ke fatne se zalzla aata hai smnder ke fatne se nahin



main smndr pi ke baitha hun yahan badal bna

गर kahin jo फट पड़ा तो ज़लज़ला हो जायेगा

shyamskha shyam

gazalkbahane said...

u may visit my three blogs at www.gazalkbahane.blogspot.com
2nd batanribat
i posted my comments after knowing moderationmis on otherwise i would haven`t left

Himanshu Pandey said...

क्या है तेरा क्या है मेरा गिन रहा है रात-दिन
आदमी इस कश्मकश में ही फ़ना हो जायेगा"

पंक्तियाँ दूर तक ले जायेंगी मुझे। आभार ।

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

सभी को बहुत बहुत धन्यवाद। श्याम सखा जी, ये तो अच्छा हुआ कि मैंने moderation on रखा हुआ है, वरना आपकी बहुमूल्य टिप्पणी से वंचित रह जाती। इस तरह सीखने को मिले तो बस और क्या चाहिये। आपको बताऊँ कि यही बात महावीर जी ने भी कही थी कि धरती के फटने से ज़लज़ला आता है, तो इसे बदलो, मैंने कहा, सुनामी तो समुद्र में ही आता है न? तो बस अपनी ज़िद से इस शेर को ऐसा ही रख लिया। अब आप भी इसी तरफ़ इंगित कर रहे हैं। इसे ज़रूर बदल दूँगी। आपके वेबसाइट पर भी जाउँगी। आप को पर्सनल ईमेल करती हूँ।

आपको ग़ज़ल अच्छी लगी, बहुत शुक्रिया।

daanish said...

"क्या है तेरा, क्या है मेरा. गिन रहा है रात-दिन ,
आदमी इस कशमकश में ही फना हो जाएगा..."

बहोत ही उम्दा और मेयारी ग़ज़ल कही है आपने ...
हर शेर पुर-उम्मीद, पुर-कैफ़ ...
पूरा पैगाम दिल में उतर जाने को बेताबसा महसूस होता है ...
मुबारकबाद . . . .
और आपने जो रुक्न पूछा है ...
फाएलातुन फिइलातुन फिइलातुन फेलुन
(२१२२ ११२२ ११२२ २२)
---मुफलिस---

महावीर said...

श्याम सखा जी ने हमारी लाज रख ली। धन्यवाद!
मनोशी, तुम्हारी ये ग़ज़ल बहुत पसंद आई है। बस अब मिस्रा बदलिये जिससे यह और भी ख़ूबसूरत हो जाए।

गौतम राजऋषि said...

बहुत खूब...और साथ में श्याम सखा श्याम जी की टिप्पणी तो माशाल्लाह,काश कि सब जो इतनी बेबाक टिप्पणी दे दिया करे...

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

मैं समंदर सा पिये बैठा हूँ सारा दर्द जो
एक दिन गर फट पड़ा तो ज़लज़ला हो जायेगा
बहुत बढ़िया पंक्तियाँ हैं मानसी जी .मैं ग़ज़ल का
मीटर या तकनीकी पक्ष तो ज्यादा नहीं जनता ,
लेकिन विषय की दृष्टि से आप की गज़लें भीड़ से
अलग हट कर हैं
हेमंत

पूनम श्रीवास्तव said...

Manoshi ji,
apkee rachnaon men kuchh aisa hai ki ..apke blog par khinchee chali atee hoon.achchhee gazal.
Poonam

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

आदरणीय सभी,

अब उस शेर को बदल दिया है-

पहले ये शेर था-

मैं समंदर सा पिये बैठा हूँ सारा दर्द जो
एक दिन गर फट पड़ा तो ज़लज़ला हो जायेगा

अब इसे किया है-

मैं समंदर सा पिये बैठा हूँ सारा दर्द जो
एक दिन गर फट पड़ा तो जाने क्या हो जायेगा

शुक्रिया सभी का।