धूप थिरके
वासंती चूनरिया
फागुन आया
वासंती चूनरिया
फागुन आया
बिछा पलाश
चहुँ ओर फागुन
रंग गोधूली
चहुँ ओर फागुन
रंग गोधूली
झूमे सरसों
किलक रही हवा
धरा लजाती
कोयल कूके
हरेक दिशा जागी
निठुर पिया
बरसा प्रेम
होरी रंग निराला
भेद मिटाये
पी संग खेले
गोरी जी भर होरी
लाज भुलाये
गोरी जी भर होरी
लाज भुलाये
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(रचना: २००५ प्रकाशित)
10 comments:
अच्छे हाइकु.
खेले सरसों / बासंती हवा संग / धरा लजाये
...वाह!!!
कोई ऐसी भी विधा है,जिस में आपको मास्टरी नहीं हो????
बरसा प्रेम
होरी के रंग संग
भेद मिटाये
सब एक से बढ़ कर एक है ...बहुत सुंदर फागुनी बसंती रंग में भीगे हुए लफ्ज़ हैं यह ..
सभी बहुत बढिया हैं !!
यह ज्यादा अच्छा लगा-
डारा पिया ने
ऐसा प्रेम का रंग
छूटे न अंग
अद्भुत !!! अति सुंदर हाइकू
Aaankhon aur man ko sheetal karte chitra aur laghu kavy.
Bahut sundar,badhai.
बहुत अच्छी रचना है।
Manoshi ji,
apne to hiku ke madhyam se basant,holi...sab kuchh likha .bahut sundar shabd sanyojan.
Hemant
बहुत ही सुंदर हाइकु हैं। आज तुम्हारे हाइकु पढ़ते हुए पुराने हाइकु का ख़याल आगया
जिनमें तुमने हाइकु में ही हाइकु के नियम बता दिये थे।
बहुत ख़ूब!
सबका शुक्रिया मेरी हाइकु को प्संद करने का। हाँ महावीर जी, बहुत ढूँढने पर मुझे वो अपने कुछ हाइकु मिल ही गये- आपको याद रहे, मैं तो भूल चुकी थी :-)
हाइकु के कुछ खास नियम हैं जो हाइकु में ही लिख रही हूं-
सार्थक वो हैं
दृश्य कोई दिखा दे
तीन पँक्तियाँ
वर्ण गिनती
पांच-सात-पांच की
तीन पंक्तियां
हर पँक्ति हो
संपूर्ण अपने में
अर्थ सरल
लँबी सी पँक्ति
तोड़ तोड़ के लिखा
हाइकु नहीं
दिग्गज नहीं
बाँट कर सीखा है
जितना जाना
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