महावीर जी के ब्लाग पर होली के नाना रंग बिखरे हैं इस होली पर। वहाँ प्रकाशित है मेरा ये गीत, मगर फिर भी होली के इस अवसर पर एक बार फिर ये गीत यहाँ भी सुनिये-
सरर सरर सर मारी पिचकारी
ऐसा रंग डारा पी ने
मैं तन मन हारी
बइयाँ खींची मोरी
पकड़ी कलाई
गुलाल मले मुख पे जो
छूटी रुलाई
भीगी चोली और घाघर मोरी
खेलूँ कैसे मैं पी संग होरी
समझे न पी मोरी
इक भी बात
घर कैसे जाऊँ
रंग लै के साथ
जाने जग सारा मैंने लाज तो छोड़ी
पर कैसे खेलूँ मैं पी संग होरी
सरर सरर सर मारी पिचकारी
ऐसा रंग डारा पी ने
मैं तन मन हारी
बइयाँ खींची मोरी
पकड़ी कलाई
गुलाल मले मुख पे जो
छूटी रुलाई
भीगी चोली और घाघर मोरी
खेलूँ कैसे मैं पी संग होरी
समझे न पी मोरी
इक भी बात
घर कैसे जाऊँ
रंग लै के साथ
जाने जग सारा मैंने लाज तो छोड़ी
पर कैसे खेलूँ मैं पी संग होरी
होली २००९ की बहुत बहुत शुभकामनायें।
9 comments:
बेहतरीन!!
आपको होली की मुकारबाद एवं बहुत शुभकामनाऐं.
सादर
समीर लाल
बहुत ख़ूब! होली की हार्दिक शुभकामनायें।
मानसी जी ,
होली का बहुत अच्छा गीत /कविता ...
साथ में बहुत सुन्दर चित्र ...होली के शुभ अवसर पर ढेरों शुभकामनायें .
हेमंत कुमार
मानसी जी ,
होली का बहुत अच्छा गीत /कविता ...
साथ में बहुत सुन्दर चित्र ...होली के शुभ अवसर पर ढेरों शुभकामनायें .
हेमंत कुमार
Holi ki badhayee Manishi ji va Kaushik bhai aapka Geet sunder laga ..
होली मुबारक.........
मानसी जी ,
बहुत अच्छा होली का गीत पढ़ा भी ..और सुना भी (इतनी अच्छी आवाज ..........आपकी ही है शायद )
आपको भी होली की ढेरों शुभकामनायें.
पूनम
मानसी, बहुत ख़ूब, होली का गीत बहुत ही सुन्दर है। होली की बहुत बहुत बधाई हो।
बहुत सुन्दर मानसी जी। जितनी सरस आपकी लेखनी है उतना ही सरस आपका गायन। आज हिन्दी राइटर्स गिल्ड के कार्यक्रम में आपकी कमी तो खली ही पर इस गीत को सुनने के बाद और भी खल रही है। होतीं और यह गीत वहाँ पर गातीं तो बहुत से अंतरजाल से अजनबी लोग भी आनन्द ले पाते।
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