Thursday, March 12, 2009

जीवनसंगी

ख़्यालों के फ़ाहों से
बारिश की बूँदों तक,

एक नीले कण से
संपूर्ण इंद्रधनुष तक,
और बस दो लहरों का

विशाल सागर...

बारिश भिगोती है आत्मा,
इंद्रधनुष रंगता है मन को,
और समा जाता हैं पूरा समंदर
एक जीवन बन कर,
दो प्राणों में।

एक युग पार करते हैं
ज्यों एक पल में,
जीवन संगी...!

9 comments:

Udan Tashtari said...

क्या बात है:

एक युग पार करते हैं
ज्यों एक पल में
जीवन संगी...

बहुत खूब!!

अनूप शुक्ल said...

सुन्दर!

रंजू भाटिया said...

बहुत खूब

संगीता पुरी said...

बहुत सुदर...

हें प्रभु यह तेरापंथ said...

सुन्दर! बहुत खूब!! क्या बात है:

पूनम श्रीवास्तव said...

ख़्यालों के फ़ाहों से
बारिश की बूँदों तक
एक नीले कण से
संपूर्ण इंद्रधनुष तक
और बस दो लहरों से
एक विशाल समंदर..........

बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ....मानसी जी ....
पूनम

गौतम राजऋषि said...

सुंदर रचना मानोशी....बहुत सुंदर

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

मानसी जी ,
बहुत सुन्दर रचना .जीवन को प्रकृति के साथ आप
बहुत खूबसूरती के साथ जोड़ती हैं .
हेमंत

दिगम्बर नासवा said...

ख़्यालों के फ़ाहों से
बारिश की बूँदों तक
एक नीले कण से
संपूर्ण इंद्रधनुष तक
और बस दो लहरों से
एक विशाल समंदर.....

बहुत खूब है.......
क्या लिख दिया