Wednesday, March 18, 2009

ग़ज़ल- पलक झपक न जाये


मेरे से वो ख़फ़ा हुआ
खुद अपने से जुदा हुआ
.
चलो उसे तसल्ली हो
चलो मैं ही बुरा हुआ
.
मैं मुस्करा रहा था पर
उसे ये भी गिला हुआ
.
नहीं मिला मुझे वो, पर
मिला जो वो मेरा हुआ
.
पलक झपक ना जाये कि
ये अश्क़ है रुका हुआ
.
किसी ने बाज़ी हार ली
किसी का जीतना हुआ

बनेगा कैसे दोस्त वो
जो दुश्मनों का ना हुआ

जो अश्क़ आँखों में सजा
था राह में गिरा हुआ


ऐ ’दोस्त’ रुक के देख ले
है दर मेरा खुला हुआ

7 comments:

गौतम राजऋषि said...

वाह !!!

"चलो उसे तसल्ली हो/चलो मैं ही बुरा हुआ"
बहुत खूब मानोशी...
और जिस खूबसूरती से आप तखल्लुस का इस्तेमाल करती हो कि मजा आ जाता है\ बहुत सुंदर मक्‍ता भी....

रंजना said...

वाह !!! रवानगी लिए बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल....आभार.

दर्पण साह said...

last ke 4 5 sher to kehar dhaate hain...
khaskar ye wala:

पलक झपक ना जाये कि
ये अश्क़ है रुका हुआ

apki ye ghazal jaise jaise apni pariniti ko pahnchti hai aur sundar lagne lagti hai...

mehek said...

bahut badhiya,khas kar 5 aur 6 sher waah

"अर्श" said...

पलक झपक ना जाये कि
ये अश्क़ है रुका हुआ

UFFF KAMAAL KA SHE'R BAHOT HI BADHIYA LIKHA HAI AAPNE ... SAARE KE SAARE SHE'R UMDA...
DHERO BADHAAEE...

ARSH

पूनम श्रीवास्तव said...

मानसी जी ,
बहुत बढ़िया ग़ज़ल .....खासकर ये लाइन बहुत अच्छी लगीं .....

जो अश्क़ आँखों में सजा
था राह में गिरा हुआ

मैं मुस्करा रहा था पर
उसे ये भी गिला हुआ
पूनम

दिगम्बर नासवा said...

जो अश्क़ आँखों में सजा
था राह में गिरा हुआ

पलक झपक ना जाये कि
ये अश्क़ है रुका हुआ

ऐ ’दोस्त’ रुक के देख तो
है दर मेरा खुला हुआ

Yw teeno sher to bahoot khoobsoorat hain....alag andaaj hai in sab mein.