Sunday, March 22, 2009

आख़िरकार ४०१ पर


पिछले किन्हीं दो पोस्ट में (लिंक पर क्लिक कर के आप उन्हें पढ़ सकते हैं) मेरी हाइवे ड्राइविंग की गाथा लिख चुकी हूँ। अब इस बात को एक साल होने को आये और उसके बाद फिर मैंने कभी हाइवे पर ड्राइव करने का ख़तरा नहीं उठाया। ज़रूरत न पड़े तो क्या ज़रूरी है कि खुद को टेन्शन दी जाये। ख़ुद से ज़्यादा मेरे पतिदेव को...मगर आज....


आज बैंक के किसी काम से शहर से कोई ५० कि.मी. दूर (मिसिसागा नाम का सुंदर सा सबर्ब है) वहाँ जाना पड़ा। हम जहाँ रहते हैं वहाँ से ४०१ हाइवे ले कर जाना पड़ता है। कहते हैं कि ये यहाँ का सबसे बिज़ी हाइवे है। पिछली बार जब ४०४ पर पहली बार गाड़ी चलाई थी तो मेरे चाचा जी ने कहा था, " अब ४०४ भी कोई हाइवे है, ४०१ पर चला कर दिखाओ तो..."। तो ख़ैर, जब भी ये साथ होते हैं तो मैं कभी भी गाड़ी के स्टीयरिंग व्हील के सामने नहीं बैठती। क्योंकि ड्राइव तो मैं करती हूँ, पर स्ट्रेस्ड ये होते हैं। ये और इनकी गाड़ी...मैं बीच में आती ही नहीं। बाप रे! वैसे भी शामत आई है जो इनकी गाड़ी को मैं हाथ लगाऊँ।


तो हम पहुँचे बैंक। वहाँ पहुँच कर जब बैंक के आदमी ने इनसे इनका डेबिट कार्ड माँगा तो सब जेबों को अच्छी तरह से सर्च करने पर भी उनका वालेट उन्हें नहीं मिला। तो समझ आया कि हमारे साहब तो वालेट घर पर ही भूल आये हैं। यानि कि इतनी दूर ये बिना लाइसेंस के गाड़ी चला कर आये थे। तो ख़ैर, मेरे बैंक कार्ड से काम हुआ, मगर घर जाने के लिये तो अब...बिना लाइसेंस ड्राइव करना तो खै़र हो नहीं सकता था (एक बार तो इन्होंने कहा भी कि पुलिस पकड़ेगी तब न...मैं ही कर लेता हूँ ड्राइव, मगर ऐसा हुआ नहीं)... तो मुझे ही ड्राइव करना था।


तो मैंने आज हाइवे ४०१ पर गाड़ी चलाई। बड़े ही दुखी हो कर चाभी मुझे दी इन्होंने, मेरी सौत को मुझे हाथ लगाने दिया, और ५ हिदायतें दीं...और आखिरकार हम घर पहुँचे। ११०-१२० कि.मी./घंटे की गति से इनकी गाड़ी में...सच मज़ा ही आ गया।

अब सोच रही हूँ, मेरी छुटकी गाड़ी को छोड़ अक्सर इनकी गाड़ी को मैं ही चलाया करूँगी...अपनी मंशा बताई नहीं है अभी तो वैसे इन्हें...पर अंजाम पता है... :-)


4 comments:

L.Goswami said...

उन ५ हिदायतों में एक यह भी थी क्या "ज्यादा सोंचना मत गाड़ी चलाते हुए "..?
क्या है की अक्सर मुझे भी मिलती है. :-)

गौतम राजऋषि said...

पढ़कर सोचने लगा हूँ कि सच में मैं भी तो संजीता के साथ ऐसा ही करता हूँ जबकि कितना अच्छा तो चला लेती है वो....लेकिन क्या करें कमबख्त ये "पुरूषत्व" नामक कीड़ा यूँ थोड़े ना घुसेड़ा गया है हमारे अंदर।
वैसे भी महिला-ड्राइविंग से जुड़े करोड़ों किस्से जुड़े हैं और संसार के समस्त पतियों को ये एकाधिकार है कि पत्नियों को ड्राइविंग पे लगातार हिदायत देते रहें...
ठीक है?

द्विजेन्द्र ‘द्विज’ said...

आपको बहुत-बहुत बधाई

बहुत अच्छा लगा पढ़कर
.

पूनम श्रीवास्तव said...

सचमुच ११०-१२० की स्पीड में गाडी ड्राइव करना बहुत रोमांचक रहा होगा ...
पूनम